बस्तर सरल है ...ख़ूबसूरत है
....मगर दहशत में है।
ये दहशत क्यों है? कौन हैं ये दहशतगर्द ?
अमन का वायदा करते हैं जो .....कहाँ हैं अब?
कौन हैं ज़िम्मेदार ...दहशत के लिये ....और अमन का झूठा वायदा करने के लिये?
कौन हैं इस ख़ूबसूरती के दुश्मन ?
कौन हैं वे
जो छीन लेना चाहते हैं इस ग्राम्य सरलता को ?
किसे नहीं भाती ये ख़ूबसूरती?
कौन हैं वे
जो नहीं चाहते कि बस्तर में अस्पताल हों ....स्कूल हों ......पेड़ हों ....जंगल हों ....
और हों सीधे सरल लोग
ग़र्मी में धरती झुलस रही है
पर यहाँ करंज फूल रहे हैं
कभी देखे हैं धरती पर बिखरे इतने सारे करंज के फूल?
कोई भूखा नहीं रहता यहाँ
सैकड़ों चिड़ियाँ और बन्दर देख रहे हैं छीन्द (खजुरिया) के पकने की राह ।
लद गये हैं पेड़ खट्टे-खट्टे आमों से
कुटज की भीनी-भीनी सुगन्ध से भर गया है पूरा जंगल
आग लगाने के लिये गुलमोहर क्या कम है!
इन्हें किसी से नहीं है कोई शिकायत
श्रमिक हैं .....निर्धन हैं ....पर प्रसन्न हैं ।
पर लोग क्यों छीन लेने पर तुले हैं इनकी ख़ुशियाँ? माओवाद के नाम पर वे क्या देना चाहते हैं इन्हें ? कौन सी गुप्त समस्यायें दूर करना चाहते हैं इनकी?
ग्रीष्म हो ...शीत हो ....या वर्षा
ये यूँ ही परिश्रम करते हैं
और जंगल इन्हें वह सब कुछ देने का वायदा पूरा करता है
जो इन्हें चाहिये।
जैसे ही बन्द हुयीं पाठशालायें
जंगल ने बड़े प्यार से बुलाया इन बच्चियों को ...और कहा ..
कि तैयार हो गया है हरा सोना (तेन्दू पत्ता) .... आओ और तोड़ कर ले जाओ
जंगल के लोगों ने वह सब कुछ सहेज कर रखा है जो अब शहरी रिवाज़ों से बहुत दूर जा चुका है।
कांसे का लोटा .......शहरी पीढ़ी को किसी संग्रहालय में ही मिल सकता है देखने को
पर बस्तर के वनांचल में यह आम घरों में रोज़ की ज़िन्दगी का हिस्सा है आज भी ।
थाली भी कांसे की
और भोजन !
बचपन के भोजन का स्वाद ....एक लम्बी मुद्दत के बाद।
ऐसा सुस्वादु भोजन तो लाख रुपये ख़र्च करने के बाद भी नसीब नहीं होता ।
प्रसन्न्मुद्रा में वाहन चालक कार्तिक का तो यही कहना है।
(अरहर की गाढ़ी दाल, पेठे की ख़ुश्बूदार बड़ी की सब्ज़ी, पत्थर के सिल पर पिसी जंगली टमाटर और धनिया की चटनी, नीबू-प्याज़ का सलाद और ढेकी के कुटे चावल का भात ....किस्मत वालों को ही नसीब हो पाता है। इस भोजन का स्वाद और आदिवासी परिवार का निश्छल प्यार कभी नहीं भूल पाऊँगा। पिछले महीने आयी स्टेला पॉल की भी यही अनुभूति थी)
बस्तर की कहानी अधूरी रह जायेगी यदि ज़िक्र न किया
भूमकाल के महानायक गुंडाधुर का।
गुण्डाधुर ....यानी
बस्तर में अंग्रेज़ों के छक्के छुड़ाने वाला लंगोटीधारी एक धुरवा आदिवासी।
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