बनेर और मांझी नदियों के संगम पर स्थित कांगड़ा नगर 1905 के भूकम्प में खण्हडर बन गया, किंतु कटोच राजवंश की शौर्यगाथा सुनाने के लिए ये खण्डहर आज भी पूरी तरह समर्थ हैं । जिला कांगड़ा का जिला मुख्यालय है वहाँ से मात्र18 किलोमीटर दूर स्थित धर्मशाला, जहाँ की धौलागिरि पर्वत चोटियों से निकली हैं जीवनदायिनी छोटी-बड़ी कई नदियाँ ।
धौलागिरि और शिवालिक पर्वतों के मध्य स्थित कांगड़ा घाटी अपने प्राकृतिक सौन्दर्य के लिए देशी-विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र रही है । कला की कांगड़ा शैली और लोक संगीत ने हर किसी को मुग्ध किया है ।
बाणगंगा से घिरा कांगड़ा का किला पुराने कांगड़ा में स्थित है । नये कांगड़ा में है मेडिकल कॉलेज । अभी हम पुराने कांगड़ा में भग्न किले के सामने हैं ....उसकी शौर्यगाथा सुनने के लिए ।
एक दीर्घावधि तक कटोच राजवंश की वैभवशाली राजधानी रहे कांगड़ा के प्रति सीमांत उत्तरी क्षेत्र के देशी-विदेशी राजाओं और विदेशी आक्रमणकारियों की लुब्ध दृष्टि ने शांत कांगड़ा घाटी को कई बार अशांत किया था।
किले में एक के बाद एक कई प्रवेशद्वार हैं, हर प्रवेशद्वार अपनी एक कहानी कहता है । 1620 में जब जहाँगीर ने इसे अपने छल-बल से हथिया लिया तो इसके मौलिक हिन्दू स्वरूप को नष्ट कर मुगलिया पैबन्द लगाने के प्रयास किये गये जिन्हें बड़ी आसानी से पहचाना जा सकता है । इस प्रवेश द्वार के दोनो ओर गंगा और यमुना की ख़ूबसूरत प्रतीकात्मक मूर्तियों को क्षतिग्रस्त कर दिया गया ।
किले की सुदृढ़ प्राचीरों ने तो इसे अविजित बनाने में कोई कमी नहीं की किंतु विश्वासघात और छल के आगे सुदृढ़ प्राचीरों की क्या बिसात !
बहुत ऊँचाई पर बने इस किले में कई प्रांगण हैं, मन्दिर हैं और महल भी ।
भग्नावशेष ...किंतु वैभव और शौर्य के इतिहास से परिपूर्ण ।
किले की वास्तुकला चप्पे-चप्पे पर आपको मोहित करने के लिए तैयार है ।
ऊपर देखिये, दीवाल को तोड़कर बनाया गया इस्लामिक शैली का दरवाज़ा आक्रमणकारियों की कुटिल चालों का असफल प्रतीक बन कर रह गया ।
बाणगंगा किले के विशाल प्रांगण में दो वृक्षों की जुगलबन्दी ।
किले का प्रवेश द्वार
कांगड़ा किले से मैक् लॉड्गंज स्थित धौलागिरि पर्वत की एक हिमाच्छादित चोटी का चित्र लेने का प्रयास .....बीच में आ गयी एक हिम बदली ।
किले के भग्नावशेष से दुःखी एक वृक्ष ने भी त्याग दिये अपने प्राण ...अब दोनो एकरूप हैं । मित्रता का यह अनुपम उदाहरण आपको भावुक कर देगा ।
खजूर का यह पेड़ बड़ा नहीं, छोटा है ....फल भी ...अभी लग रहे हैं लेकिन अति दूर नहीं ....समीप ही हैं ; और छाया ......आप देख ही रहे हैं कि सुस्ताने के लिए काफ़ी है । अब कभी खजूर के पेड़ के बार में कुछ ऐसा-वैसा मत कहिएगा ।
कांगड़ा किले के नीचे बनेर खड्ड के पास एक पर्वत के वक्ष से होता हुआ राष्ट्रीय राजमार्ग, सामने है धौलागिरि की हिमाच्छादित पर्वत श्रंखला ।
कांगड़ा से धौलागिरि पर्वत
बर्फ़ीले बादलों की एक धुन्ध ने तस्वीर को भी धुंधला कर दिया ।
ध्यान से निहारिये ....आपको कुछ आकृतियाँ मिल जायेंगी ....बस आपकी कल्पना शक्ति प्रखर और रचनात्मक होनी चाहिये ।
.....और देखिए ....
मनोरम कांगड़ा घाटी
पर्वत के सीने से रिसते हुये जल में उगी भूरी काई
राजमार्ग के पार्श्व में पहाड़ की चोटी पर है कांगड़ा रेलवे स्टेशन ।
...और रेलवे स्टेशन जाने के लिए हैं ये सीढ़ियाँ ....
बनेर का खड्ड जहाँ प्रतिवर्ष असावधान लोगों को हाथ धोना पड़ता है अपनी जान से। आपको मालूम है न ! मण्डी जिले में व्यास नदी के किनारे हुयी अभी हाल की घटना जिसमें आन्ध्र के इंज़ीनियरिंग के 24 छात्र-छात्राओं की असामयिक दुःखद मृत्यु हो गयी ।
बाणगंगा ...जिसके किनारे दो दिन तक प्रवास का सौभाग्य मिला ।
बाणगंगा
खूबसूरत दृश्य चित्र और जानकारी...धन्यवाद...
जवाब देंहटाएंअति सुंदर चित्र खुद ही बोलते हैं। आपने दिये इस नेत्रसुख के लिये धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंवाह!
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