मंगलवार, 17 जून 2014

ईश्वर का चित्र उतारने वाला कैमरा


हिमांचल के एक छोटे से शहर ज्वाला देवी में है "ज्वाला देवी" का मन्दिर जिसका प्रबन्धन करते हैं नाथ सम्प्रदाय के बाबा ...आमतौर पर इन्हें कनफट्टा बाबा के नाम से जाना जाता है । मन्दिर के अन्दर कुछ स्थानों पर धरती से ज्वालायें निकलती हैं । अनवरत निकलने वाली इन ज्वालाओं के कारण इस स्थान को, शक्ति का प्रतीक मानते हुए, पवित्र और अलौकिकशक्ति सम्पन्न स्वीकारते हुए पूजा जाने लगा । स्थानीय पुजारियों द्वारा मुझे बताया गया कि तमाम शोध के पश्चात् भी इन ज्वालाओं के स्रोत का पता नहीं चल सका है । जलती हुई ज्वाला के नीचे जल कुण्ड हैं जिनका जल शीतल है । यह मन्दिर अपनी इन्हीं अलौकिकताओं के कारण जनश्रद्धा का केन्द्र बन गया है । किंतु .......... 



 .... किंतु यह कि वहाँ आने वाले या वहाँ रहने वाले सभी लोग मुझे श्रद्धालु नहीं लगे । जैसा कि हमारे मन्दिरों का परिवेश है ....विविधताओं और विरोधाभासों से भरा हुआ .....अनैतिक व्यापार, ठगी, चालाकी ...आदि मानवीय दुर्बलतायें जैसे इन स्थानों में उमड़ पड़ती हैं । हमारी इन्हीं दुर्बलताओं ने इन पवित्र स्थानों की divinity को ग्रहण लगा दिया है ।    


  मन्दिर आने वाले दर्शनार्थियों को अपनी दुकान की ओर आकर्षित करता हुआ एक स्थानीय व्यापारी ।  


 भव्यता या दैवत्व ....हमारे आकर्षण का कारण क्या है ?  


भव्य ..... 


 ....और भव्य 


........ और इस भव्यता से सम्मोहित दर्शनार्थी अपनी साक्षी के लिए एक-दूसरे का फ़ोटो उतारने में अधिक रुचि लेते दिखे ।  


दर्शनार्थियों की पंक्तिबद्ध भीड़ ....अनुकरणीय है ऐसा धैर्य । 


 .... मानवीय दुर्बलताओं के शिकार हो चुके दैवीय स्थल कितने दैवीय ?  देखिये एक चेतावनी .....


...यह अच्छा लगा मुझे ....मन को सुकून देने वाला । 
स्थूल आकृतियों की अपेक्षा सूक्ष्म ध्वनि तरंगें कहीं अधिक दैवीय लगीं मुझे । 


प्राणिमात्र के प्रति जीने का समानाधिकार, श्रद्धा और आदर का पवित्र संदेश देने वाले सनातन धर्म के अनुयायियों के देश में शक्ति का प्रतीक सिंह पूज्य है ...और ...............गौमाता है निर्मम हिंसा की शिकार । 


पारम्परिक परिधान (लहंगा-चुनरी) में कुछ ख़रीदती हुई एक युवती  



मन्दिर के मार्ग में जड़ी-बूटी और मसाले बेचती हुई एक हिमांचली युवती । सफ़ेद बोरी के पास लकड़ी की पेटी के ऊपर रखा सबसे बड़ा वाला ढ़ेर अखरोट की छाल का है । स्थानीय लोग दातून के लिए इसका उपयोग करते हैं । 


मन्दिर में सीढ़ियों के पास एक ऊँचे स्थान पर विराजमान थे एक युवा कनफट्टा बाबा । उम्र होगी लगभग 22-23 वर्ष । कान के पिन्ना बीच में फटे  हुये .... बड़े-बड़े काष्ठ कुण्डल से विभूषित । मैंने जैसे ही युवा बाबा का फ़ोटो लेना चाहा, वे बिगड़ गये । डाँटते हुये बोले - "कैमरा बन्द कर ....बन्द कर कैमरा । ईश्वर का फ़ोटो तो कोई लेता नहीं ...चला है मेरा फ़ोटो लेने । मेरे फ़ोटो का क्या करेगा ...लेना है तो ईश्वर का फ़ोटो ले ।" 
मैंने तुरंत कैमरा बन्द कर थैले में रख लिया । हाथ जोड़कर अपराधी मुद्रा में बाबा के सामने जा कर खड़ा हो गया । जब युवा बाबा का क्रोध शांत हुआ तो उनसे पूछा -  "बाबा जी ! जो अमूर्त, अनादि, अनन्त और अखण्ड ...है ऐसे निराकार ईश्वर का फ़ोटो लेना है मुझे ...कहाँ मिलेगा ...बताइये ....बड़ी कृपा होगी । .......और हाँ ! मेरे इस कैमरे में वह शक्ति भी नहीं कि उसका फ़ोटो ले सके ....कोई अच्छी सी दुकान बताइये जहाँ से ऐसा कैमरा ख़रीद सकूँ ।" 

युवा संत का उत्तर था - " अभी तुझे ज्ञान नहीं है । मेरे गुरु ने जो ज्ञान दिया है पहले उसे सीख ।" 

मुझे लगा कि युवा संत के आदेश का पालन करना चाहिये । अस्तु, मैं तो चला युवा संत के गुरु को खोजने ...ज्ञान जो लेना है । फिर एक उपयुक्त कैमरा लेना है जो निराकार ब्रह्म का फ़ोटो ले सके .....और अंत में ईश्वर का फ़ोटो भी लेना है ।     

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