भारत के
कुछ लोग आतंकियों को आतंकवादी नहीं मानते, कुछ लोग संविधान संशोधन का अधिकार केवल
एक वंश की बपौती मानते हैं, कुछ लोग संविधान की व्याख्या अपने तरीके से करना अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं ।
भारतीय
संस्कृति में सहिष्णुता कभी एक सकारात्मक गुण हुआ करता था जो आज निरंकुश अपराध और
अन्याय सहन करने की क्षमता से जुड़ गया है । भारत को निरंतर अपमानित किये जाने और
राष्ट्रद्रोह की घटनाओं को चुपचाप सहन करते रहना सहिष्णुता का मापदण्ड मान लिया
गया है ।
कश्मीर
में भारतीय ध्वज जलाने और पाकिस्तान ज़िन्दाबाद के नारे लगाने की घटनाओं के साथ
आतंकवादी घटनाओं की निरंतरता पर अंकुश नहीं लग पा रहा । पी.डी.पी. का तर्क है कि
कश्मीर में भारत विरोधियों के विरुद्ध यदि कोई कार्यवाही की जायेगी तो पूरे कश्मीर
के युवा विद्रोह पर उतर आयेंगे जिससे मुश्किलें और बढ़ जायेंगी । यह एक ऐसा कुतर्क
है जो युद्ध को लड़े बिना ही हार जाने की घोषणा करता है ।
सत्तायें
विधि और दण्ड के बिना अराजकता का कारण बनती हैं, अपराधी को दण्डित करने में यदि
सत्ता को भय लगता है तो इसका सीधा सा अर्थ यह है कि सत्ता अघोषित रूप से
विद्रोहियों के हाथों में सौंप दी गयी है । हम ऐसी औचित्यहीन सत्ता का विरोध करते
हैं । क्या किसी सम्प्रभु देश की सत्ता को चुनौती देने वालों के विरुद्ध केवल भय
के कारण कोई कार्यवाही नहीं की जानी चाहिये ? जब हम राष्ट्रद्रोहियों को दण्ड देने
की बात करते हैं तो हम पर मनुवाद और भगवाकरण का आरोप लगाया जाना शुरू कर दिया जाता
है । यह भारत ही है जहाँ के नागरिक पूरी स्वतंत्रता के साथ भारत की सम्प्रभुता को
चुनौती दे सकते हैं, राष्ट्रीय ध्वज का बारम्बार अपमान कर सकते हैं, किसी शत्रुदेश
का ध्वज लहरा सकते हैं, राष्ट्रद्रोहियों की शवयात्रा में हज़ारों की संख्या में
सम्मिलित हो सकते हैं, सेना पर आक्रमण कर सकते हैं और अमरजवान ज्योति को अपने
जूतों से रौंद सकते हैं । कश्मीर के युवाओं द्वारा विद्रोह कर दिये जाने के भय से
भारत की सम्प्रभुता को निरंतर सहते रहना यदि विवशता है तो यह सत्ता की अक्षमता ही
नहीं बल्कि सत्ता के औचित्य पर एक ज्वलंत प्रश्न भी है । जो राज्य या देश अपने
नागरिकों को केवल एक समुदाय के भय के कारण सुरक्षा दे पाने में असमर्थ है तो ऐसे
राज्य और ऐसी सत्ता की कोई आवश्यकता नहीं है ।
क्या
क्रूरतापूर्वक किये जा रहे अत्याचारों को सहते रहना ही सहिष्णुता का मापदण्ड है ?
क्या भारतीय संस्कृति की बात करना या हिन्दू अधिकारों के संरक्षण की बात करना भारत
में अपराध है ? ये प्रश्न हैं जिनके उत्तर सत्ता और विपक्ष दोनो को देना ही होगा ।
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