गुरुवार, 5 नवंबर 2015

भारत के अस्तित्व के लिये आवश्यक है सहिष्णुता और भीरुता के अंतर को समझना

 इस्लामिक देशों में सदियों से यही परम्परा चलती आयी है । 

हम अपने अतीत के गौरव की स्मृति में या तो घोरआत्ममुग्धता में लीन हैं या फिर  घोरहीनता से ग्रस्त हैं । किसी देश, समाज और और उसकी संस्कृति के लिये दोनो ही अतिवादी दृष्टिकोण घातक हैं । हमें भारत के मध्यकालीन इतिहास को एक बार पुनः गम्भीरता से देखने की आवश्यकता है । भारत बारम्बार विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा लूटा, रौंदा और शासित किया जाता रहा, क्यों ?  हम किस महान भारत की बात करते हैं ? हम अपने अतीत की किस गौरवशाली परम्परा पर गर्व करते हैं ? क्या भविष्य में भी हम यूँ ही विदेशियों द्वारा बारम्बार रौंदे और कुचले जाते रहेंगे ? हमारी किन दुर्बलताओं के कारण विदेशी आततायी हमें अपना दास बनाते रहे हैं ? हमारी किन दुर्बलताओं के कारण विशाल आर्यावर्त बारम्बार खण्डित और मर्दित होता रहा है ? आज हम हिंदूकुश और कैलाशपर्वत से सिमटते-सिमटते, गांधार(अफ़गानिस्तान), सप्तसिंधु(पाकिस्तान), पूर्वी बंगाल(बांग्लादेश), पश्चिमी कश्मीर और मानसरोवर को गंवाते हुये खण्डित-मर्दित भारत में दुबक कर बैठे हुये हैं । हम चीन से असुरक्षित हैं । इस्लामिक विस्तारवाद के शिकार हो रहे हैं और भारत के लोग भारत में ही शरणार्थी बन कर रहने के लिये बाध्य हो रहे हैं ।
भारत न केवल अपने आसपास के पहलव-शक-हूण-मंगोल-उज़्बेक आदि पड़ोसी आक्रमणकारियों और लुटेरों से बारम्बार पराजित और शासित होता रहा बल्कि सुदूर यूनान, स्पेन, पुर्तगाल, फ़्रांस, डच, ब्रिटेन आदि देशों द्वारा भी रौंदा और कुचला जाता रहा । क्या भारत स्वाभिमानशून्य, आत्मबलशून्य और शक्तिहीन लोगों का एक दुर्बल देश है ? क्या हम विदेशी आक्रमणकारियों दारा भारत की स्त्रियों-लड़कियों के साथ क्रूरतापूर्वक किये जाते रहे बलात्कारों से उत्पन्न निर्बलसंतति के कुचले हुये उत्तराधिकारी हैं ? हम अपनी श्रेष्ठतम भाषा संस्कृत से दूर हो गये, वैदिक आचरणों से दूर हो गये, निर्दुष्ट शोधों से दूर हो गये, अपनी उत्कृष्ट शिक्षा व्यवस्था और ज्ञान से दूर हो गये, हम अपने स्व-भाव और संस्कृति से दूर हो गये और अब हम एक अंधकूप की ओर निरंतर अग्रसर होते जा रहे हैं ।
हमारे रक्त में विदेशी और विधर्मी आततायियों के रक्त का मिश्रण हो गया है । हम अपनी पूज्यकन्यायों और माताओं की रक्षा करने में असमर्थ होते रहे हैं । हम अपनी मातृशक्तियों को नारकीय पीड़ायें भोगते हुये मरते देखते रहे हैं । हम अपनी शक्तिस्वरूपा कन्याओं और माताओं को बुरी तरह अपमानित होने से नहीं बचा सके । क्या हम घोरतम पीड़ा के क्षणों में अपनी पूज्य शक्तियों द्वारा दिये गये श्राप का दण्ड भोग रहे हैं ?
  
यह नंदराजवंश से भी पहले की बात है जब मध्य-पूर्व भारत में हारण्यक और शिशुनाग राजवंशों (684-424ईसापूर्व) का राज्य हुआ करता था । तब ईसवी सन् 538 वर्षपूर्व भारत के उत्तर-पश्चिमी राज्यों में फ़ारस से आये एकीमेनिड वंश के लोगों ने अपना शासन स्थापित किया । भारत पर यह पहली विदेशी हुक़ूमत थी । बाद में इस्लामिक विस्फोट के साथ अरब के उम्मैद ख़लीफ़ों ने 711-750 ईसवी तक इस्लामिकविस्तार अभियान में भारत की धरती को रौंदा । यह वह काल था जब अरब के लोग तलवार और बलात्कार के साथ पूरी दुनिया में इस्लाम की हुक़ूमत स्थापित करने में लगे हुये थे । ईसवी सन् 712 में अरब के इस्लामिक आतंकी मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध में देवल के मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ा, लूटमार की, बलात्कार किये, हत्यायें की और लाखों की संख्या में लोगों का ख़तना करवाया, हज़ारों भारतीयों को दास-दासी बनाकर इस्लामिक देशों में बेंचा । स्त्रियों और किशोरवय लड़कों को यौनेच्छाओं की पूर्ति के लिये और पुरुषों को श्रमसंसाधन के लिये दास-दासी बनाकर बेचा । बौद्ध मंदिरों में छिपी 700 स्त्रियों को लूटकर इस्लामिक देशों में बेचने के लिये दलालों को सौंप दिया । इस्लाम का संदेश लेकर आये मुहम्मद बिन कासिम ने जिन 60 हज़ार स्त्री-पुरुषों को दास बनाया उनमें से 30 युवा स्त्रियाँ राजपरिवारों की थीं जिन्हें इस्लामिक देशों में कनीज़ बना कर तोहफ़े के रूप में पेश किया गया ।

अरबों दारा 712-13 में सिंध में आक्रमण के पश्चात् चलाये गये हिंसक अभियान के मुख्य उद्देश्य थे – भारतीयों का, ज़बरन खतना करके या उनकी स्त्रियों की इज़्ज़त लूटने की धमकी देकर धर्मांतरण करना, बलात्कार करना, मंदिरों और मूर्तियों को तोड़ना, लूटमार करना, दास-दासियों के इस्लामिक बाज़ारों के लिये भारतीय स्त्री-पुरुषों को माल की तरह उपलब्ध करवाना और दहशत फैलाना । सन् 712-13 के अरब आक्रमणों में लाखों भारतीय स्त्री-पुरुषों को दास-दासी बनाया गया और लाखों की हत्या की गयी । यह कैसा इस्लामिक संदेश था ?

ईसवी सन् 1001 में महमूद गज़नवी ने काबुल पर आक्रमण किया और युद्ध में वहाँ के राजा जयपाल को बंदी बना कर उन्हें क्रूरतम यातनायें दीं । राजपरिवार के सभी स्त्री-पुरुष बंदी बना लिये गये और उन्हें गज़नी से दूर ख़ुरासान की एक दासमण्डी “मकीमन-ए-बाज़ार” में ले जाकर बोली लगाकर नीलाम कर दिया गया । राजा जयपाल को स्थानीय दलाल ने 80 दीनार में बोली लगाकर नीलाम किया । राजपरिवार के लोगों को एक विशेष रणनीति के अनुसार बारम्बार उनके नये मालिकों द्वारा खुले बाज़ार में बेचा जाता था । इस्लाम का यह कैसा आचरण है ?

ईसवी सन् 1001 में गज़नी के महमूद ने भारत में अपना लूट अभियान प्रारम्भ किया । उसने एक-दो या चार-पाँच बार नहीं बल्कि 17 बार भारत के भीतर घुस कर भारत को निर्भय होकर रौंदा । भारत के लोग महमूद गज़नवी का प्रतिकार करना तो दूर उसके अत्याचारों से अपनी रक्षा तक नहीं कर सके । महमूद ने अपने 17 युद्धों में लगभग 5 लाख भारतीय स्त्री-पुरुषों को बंदी बनाया और उन्हें दास बनाकर बेचा । वह हर बार आता, भारतीयों को दास  बना कर ले जाता । भारत की ख़ूबसूरत स्त्रियाँ और किशोरवय लड़कियाँ रोती-बिलखतीं, अपमान सहतीं इस्लामिक देशों के बाज़ारों में बिकने के लिये हाँक कर पशुओं की तरह ले जायी जाती रहीं और भारतीय इन घटनाओं को अपनी संवेदनहीन आँखों से देख-देख कर अभ्यस्त और पत्थर होते रहे । थानेश्वर पर महमूद गज़नवी ने जब अंतिम आक्रमण किया तब उसके एक-एक सैनिक के पास लूटकर बनाये गये कई दास और लड़कियाँ थीं । 1019 में जब वह वापस गज़नी गया तो उसके खेमे में 53 हज़ार बंदी थे जिन्हें इस्लामिक देशों में 2 से 10 दिरहम में बेचा गया । राजा दाहिर की राजकुमारी को यौनदासी बनाकर बाज़ार में बेच दिया गया । स्त्रियों के साथ ऐसा आचरण यदि किसी धर्म का संदेश है तो ऐसे धर्म को शीघ्र से शीघ्र समाप्त हो जाना चाहिये ।
  
आज भी मध्य एशिया की आतंकवादी गतिविधियों के अनुयायी धर्म के नाम पर पूरे विश्व में मानवता को कलंकित कर रहे हैं । गज़नी और ख़ुरासान के ग़ुलाम-बाज़ारों की पुनरावृत्ती आज सीरिया और ईराक़ के बाज़ारों में खुले आम हो रही है । यज़ीदी, शाबैक, कुर्द और क्रिश्चियन लड़कियों से सामूहिक बलात्कार के बाद उन्हें मोसुल और रक्का के ग़ुलाम-बाज़ारों में बेचा जा रहा है किंतु मंगल ग्रह पर सभ्यता की तलाश करने वाली सभ्य दुनिया की आँखों से एक बूँद आँसू तक नहीं निकलता ।   
 

सीरिया में यदि कोई लड़की यज़ीदी, कुर्द, शाबैक या क्रिश्चियन है तो उसके साथ सामूहिक बलात्कार होना निश्चित है 

भारत की संसद को कलंकित करने वाला असदुद्दीन ओवेसी नामक एक सांसद आज पश्चिम बंगाल को इस्लामी सूबा बनाने के अपने स्वप्न के लिये मुस्लिमों का आह्वान कर रहा है । 712 में मुहम्मद बिन कासिम के पापाचार को 2015 में ढोने वाला ओवेसी बचे-खुचे भारत को एक और नये बांगलादेश का दंश देना चाहता है । और भारत इन दंशों के प्रति अद्भुतरूप से सहिष्णु और सहिष्णु होता जा रहा है । किंतु आज हम यह स्वीकार करना चाहते हैं कि वास्तव में हम सहिष्णु नहीं बल्कि अतिभीरु और अतिदलित हैं । भारत के स्वाभिमानशून्य लोगो ! तुम कब अपने स्वाभिमान को जाग्रत करोगे

कृपया इन संदर्भ ग्रंथों का भी अवलोकन करने की कृपा करें ।
The Arab conquest of Sind –मोहम्मद हबीब
The life and times of Mahmud of Ghazni  – एम.नज़ीम
तारीख़–ए–अल्फ़ी    –मौलाना अहमद
Growth of Muslim population in Medieval India – Lai
Muslim slave System in Medieval India    –K. S. Lal  


   यह लड़की नहीं, एक वस्तु है क्योंकि यह मुसलमान नहीं है  




मोसुल और रक्का के यौनदासी बाज़ार में बेचने के लिये ले जायी जातीं 
ग़ैरमुस्लिम स्त्रियाँ (वस्तु) । यह 2012 से आज तक की स्थिति है ।


यह कैसा इंसानी व्यवहार है ? इस्लाम की यह कौन सी शिक्षा है ? 


सीरिया में ग़ैरमुस्लिम लड़की का सुंदर होने से बड़ा कोई पाप नहीं  

 सीरिया में ग़ैरमुस्लिम लड़की होने से बड़ा कोई अपराध नहीं  


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