F चांद
मियाँ, आसाराम, रामपाल, सुखविंदर
....... सब भगवान, सब ईश्वर ! कलियुग में भगवानों और ईश्वरों के जन्म लेने की श्रंखला प्रारम्भ हो चुकी है । इक्कीसवी
शताब्दी में ईश्वरों और भगवानों की अभी एक बड़ी सेना जन्म लेने वाली है । यह आस्था
का विषय है ।
F अदृष्य
ईश्वर अब भारत में जन्म लेने लगा है और अपनी मृत्यु के पश्चात् एक ऐसा मूर्ख, अंधभक्त
और कट्टर समुदाय छोड़ने लगा है जिसकी रुचि पापाचार और व्यापार में अधिक होती है
।
F ईसवी
पश्चात् इक्कीसवी शताब्दी के भारत को एक ईश्वर बहुल देश माना जा सकता है ।
F ईश्वर
की बहुलता के कारण इनके अनुयायियों में वर्चस्व और श्रेष्ठईश्वर के विषय पर संघर्ष
होने लगे हैं । संघर्ष भक्तों का धर्म है, इसके
लिये वे नैतिकता, शिष्टाचार
और पतन की सारी सीमाओं को तोड़ सकते हैं ।
F भगवान आस्था
का विषय है । जीवित भगवान एक चमत्कार है । चमत्कार ही सृष्टि का कारण है ।
F आस्था
एक ऐसा अकाट्य और अंतिम अस्त्र है जिसके आगे सारे तर्कों को बलात् चुप करा दिया
जाता है ।
F आस्था
की राह भिन्न है, उसका
स्वरूप भिन्न है, उसकी
व्यवस्था भिन्न है, उसके
उद्देश्य भिन्न हैं ।
F आस्था
सदा से समाज की व्यवस्था, विमर्श, तर्क और मीमांसा को मानने से असहमत होती रही है
।
F आस्था
एक वर्ग उत्पन्न करती है जो
राज्य की विधि-विधायी व्यवस्था को नकारती है एवं नीतियों से परे एक स्वच्छंद मार्ग
का अनुसरण करती है ।
F आस्था
विज्ञान का परिहास करती है और नये-नये मानक स्थापित करती है । इन मानकों का अपना
दर्शन होता है, अपने अनुयायी होते हैं, अपना
अर्थशास्त्र होता है, अपनी सेना होती है और अपना विधान होता है ।
F हमें भोजन
में तले हुये केचुये, काकरोच
का सूप, छछूंदर
का भुर्ता और नाली के कीड़े पसंद हैं । भोजन के साथ हमें महुवा की शराब पीने की आदत
है । शराब पीकर गटर के किनारे या किसी बद्बूदार नाली में लेटकर सो जाने में हमें इंद्रलोकतुल्य
सुख की अनुभूति होती है ।
F सभ्य-सुसंस्कृत
समाज की वर्जनाओं को तोड़ने में हमारी दृढ़ आस्था है । आस्था सर्वोपरि है, उसके
आगे राज्य का कोई अस्तित्व नहीं । राज्य की यह विवशता राज्य के अस्तित्व की आवश्यकता
है ।
F आस्था
के बिना हम जी नहीं सकते । आस्था हमारी सर्वोपरि आवश्यकता है । हमारी आस्था हमारी
जड़ता को एक अद्भुत विस्तार और निरंकुशता प्रदान करती है ।
F हम
अमिताभ बच्चन से लेकर सुखविंदर कौर तक सबकी मूर्तियाँ मंदिर में प्रतिष्ठित कर
उनकी पूजा करते हुये शांति का अनुभव करना चाहते हैं ।
F कलियुग
में भीड़ की आस्था उग्र प्रतिक्रिया को जन्म देती है । उग्र प्रतिक्रिया मूर्ति
भंजकों, लुटेरों
और हत्यारों को जन्म देती है ।
F कलियुग
के मानवरचित ईश्वर यौनशोषण से लेकर विनाश तक सबकुछ आमंत्रित करते हैं ।
सुन्दर प्रस्तुति , बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत बधाई आपको . कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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