रविवार, 11 सितंबर 2016

राज नीति

तलाक दे चुका है राज
नीति अब यहाँ नहीं ।
ढूँढता हूँ मैं उसे
यहाँ वहाँ कहाँ नहीं ।

दिन में छिप गये उलूक
सामगान अब नहीं
खुल गया है राज ये  
यहाँ वहाँ कहाँ नहीं ।

सूरज से रार ठान ली
देखो तो राजहठ ये भी
तोते भी रट रहे वही
यहाँ वहाँ कहाँ नहीं । 

रात ढल चुकेगी जब
राज भी ढलेगा तब  
नीति फिर से आयेगी
यहाँ वहाँ कहाँ नहीं । 

2 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.