एक
समय था जब गोदुग्ध को अमृततुल्य माना जाता था । राजा दिलीप को जब संतान की आवश्यकता हुई तो उन्होंने (पत्नी अरुंधती के साथ) कुलगुरु की आज्ञा से नंदिनी नामक
गाय की जंगल में जाकर सेवा की । गाय के निरंतर सम्पर्क में रहने और पंचगव्य का
सेवन करने से उन्हें यथासमय संतान की प्राप्ति हुई । यह आख्यान हम सभी जानते हैं
किंतु अब हम यह भी जानने लगे हैं कि ऑटिज़्म, मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, हृदयरोग और उच्चरक्तचाप जैसी व्याधियों
की अनियंत्रित वृद्धि में एक बहुत बड़ा कारण दूध भी है जो हम ख़रीदकर पीते हैं । तब
क्या आयुर्वेदिक ग्रंथों में वर्णित दूध की औषधीय महिमा मिथ्या है या फिर गोदुग्ध
पर हुये नये शोध हमें भ्रमित भर कर रहे हैं ?
वास्तव में हम संदेहों, विश्वासघातों, झूठ और षड्यंत्रों के युग में जी रहे हैं ।
सभी पक्षों को जानने के बाद सत्य का अनुसंधान स्वयं के विवेक से हमें ही करना होगा
। पहले तो जानिये दूध की उस बीटा प्रोटीन के बारे में जो इस सारे विवाद के मूल में
है –
In general, milks
from Guernsey, Jersey, Asian herds, human milk, and others (sheep, goat,
donkeys, yaks, camel, buffalo, sheep, etc.) contain mostly A2 beta casein.
Milks from Holstein Friesian contain mostly A1 beta casein. The Holstein breed
(the most common dairy cow breed in Australia, Northern Europe, and the United
States) carries A1 and A2 forms of beta caseins in approximately equal amounts.
More than 50 percent of the Jersey breed carries the A2 beta casein variant,
but with considerable variation among the herd, and more than 90 percent of the
Guernsey breed carries the A2 beta casein variant.
1-
Two major protein groups are present in cow’s milk –
approximately 82 percent of protein is casein and approximately 18 percent is
whey protein. Both groups have excellent nutritional benefits.
2-
Caseins are a group of proteins. Among the caseins, beta
casein is the second most abundant protein (about one-third of the caseins) and
has an excellent nutritional balance of amino acids.
3-
The beta casein group has two common variants: A1 and A2
beta casein. Most milk contains a mixture of these proteins. Approximately 60
percent of the beta casein is A2, and 40 percent is A1.
4-
The proportion of A2 and A1 beta casein in milk can vary
with different breeds of dairy cattle – A2 milk contains only A2 beta casein.
भारतीय देशी गायों और विदेशी गायों के दूध
में अंतर का कारण है कैसीन प्रोटीन की अमीनो एसिड चेन के 67वें क्रम पर संलग्न हिस्टीडीन
या प्रोलीन । विदेशी गायों (बोस टॉरस) के दूध (ए-1) में 67वे% क्रम पर है हिस्टीडीन
जबकि भारतीय गायों (बोस इण्डिकस) के दूध (ए-2) में संलग्न है प्रोलीन ।
ए-1 प्रोटीन वाला दूध पीने से पाचन के बाद
उसके अमीनो एसिड्स टूट कर बीटा कैसोमॉर्फ़ीन-7 बनाते हैं जो ओपिएट स्वभाव का होता है
और हमारी सुरक्षा प्रणाली को प्रभावित कर सकता है । ऐसे दूध के लगातार स्तेमाल से ऑटिज़्म, शिज़ोफ़्रेनिया, डायबिटीज़ टाइप-1 और हृदयरोग सम्भावित है । जबकि देशी गाय के औषधीय गुणों से तो
पूरी दुनिया सदियों से परिचित है ही ।
The two proteins are almost identical
— they each contain 209 amino acids.
The only difference between A1 and A2 is a difference in the 67th amino acid in the
chain.
At this position, A1 has a histidine amino acid, while A2 has a proline amino acid.
The entire basis of the supposed problem with A1 milk is its pesky histidine amino acid at position 67.
That one amino acid change means when the A1 protein is broken down, it can create the peptide
beta-casomorphin (BCM-7).
BCM-7 is related to the opiate
family. They can affect blood pressure and immune system and may cause diseases
ranging from autism and schizophrenia to type 1 diabetes and heart
disease.
Milk fat components with
potential anticancer activity
Luis M. Rodr´ıguez-Alcala´1,2, M. Pilar Castro-Gomez ´ 3 , L´ıgia L. Pimentel1 and Javier Fontecha 3
During many
years, the milk fat has been unfairly undervalued due to its association with
higher levels of cardiovascular diseases, dyslipidaemia or obesity, among
others. However, currently, this relationship is being re-evaluated because
some of the dairy lipid components have been attributed potential health
benefits. Due to this, and based on the increasing incidence of cancer in our
society, this review work aims to discuss the state of the art concerning
scientific evidence of milk lipid components and reported anticancer
properties. Results from the in vitro and in vivo experiments suggest that
specific fatty acids (FA) (as butyric acid and conjugated linoleic acid (CLA),
among others), phospholipids and sphingolipids from milk globule membrane are potential
anticarcinogenic agents. However, their mechanism of action remains still
unclear due to limited and inconsistent findings in human studies
बीटा केसीन के जैविक संकटों के अतिरिक्त
आजकल मिलने वाले कॉमर्शियल दूध के भी अपने संकट कोई कम नहीं हैं । सामान्यतः गर्भधारण
के पश्चात गायें दूध देना बंद कर देती हैं किंतु धन के लोभ में आजकल गायों को गर्भधारणकाल
में भी इंजेक्शन और दवाइयाँ देकर दूध देने के लिए बाध्य किया जा रहा है जिसे व्यावसायिक
दुग्धोत्पादन कहते हैं । यह कॉमर्शियल दूध ए-1 केसीन युक्त हो सकता है और नहीं भी
किंतु इसके संकट का मूल कारण है ईस्ट्रोजन मेटाबोलाइट्स । इंजेक्शन देकर निकाले
गये दूध में ईस्ट्रोजन मेटाबोलाइट्स की प्रचुर मात्रा होती है जिसके कारण ऐसे दूध
के सेवन से मनुष्य में स्तन कैंसर की सम्भावनायें बढ़ गयी हैं । देखिये Volker Hanf और Wolfgang Körner का यह
विमर्श –
Consumption of Cow's Milk and Possible Risk of Breast
Cancer
Increased levels of estrogen metabolites (EM) are
associated with cancers of the reproductive system. One potential dietary
source of EM is milk. In this study, the absolute quantities of unconjugated
(free) and unconjugated plus conjugated (total) EM were measured in a variety
of commercial milks (whole, 2%, skim, and buttermilk). The results show that the
milk products tested contain considerable levels of EM; however, the levels of
unconjugated EM in skim milk were substantially lower than that observed in
whole milk, 2% milk,
and buttermilk. Whole milk contained the lowest overall levels of EM while
buttermilk contained the highest. As anticipated, soy milk did not contain the
mammalian EM measured using this method. The relatively high levels of catechol
estrogens detected in milk products support the theory that milk consumption is
a source of EM and their ingestion may have a dietary influence on cancer risk.
दस हजार साल पहले सभी गायों के दूध में होती
थी ए-2 केसीन । फिर प्राकृतिक कारणों से हीमोग्लोबिनोपैथी की तरह केसीनोपैथी की घटना
हुयी जिसमें एक जेनेटिक म्यूटेशन हुआ और हिस्टीडीन ने प्रोलीन को भगा कर उसके स्थान
पर अपना कब्ज़ा जमा लिया । ये कब्ज़ा करने वाले कभी किसी का भला नहीं किया करते । धीरे-धीरे
दूध में आयी गंगा-जमनी संस्कृति वाली ए-1 और ए-2 मिश्रित प्रोटीन । आज भारत में अधिकांश
यही दूध मिल रहा है । सरकार ने देशी गायों के लिए कृत्रिम गर्भाधान केंद्र खोले, उन्हें होल्स्टीन और फ़्रीज़ियन साँड़ों का गंगा-जमनी
संस्कृति वाला सीमेन दिया जिससे अगली पीढ़ी का गोवंश गंगा-जमनी संस्कृति से ओतप्रोत
हो गया । यह सब एक सोची समझी व्यावसायिक रणनीति के अंतर्गत किया जाता रहा जिसके दूरगामी
परिणाम अब अपने पूरे शबाब पर हैं । भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में भी देशी गायों की
संकर प्रजातियाँ फल-फूल रही हैं और उनका ए-1 ए-2 मिश्रित दूध अपनी गंगा-जमनी संस्कृति
का परचम लहरा रहा है । तो क्या हुआ जो भारत में हृदय रोगियों और ऑटिज़्म के रोगियों
की संख्या में लगातार इज़ाफ़ा होता जा रहा है । जब हल्ला हुआ ...जो कि रणनीति का ही एक
हिस्सा था, तो बड़े-बड़े
मालिक लोग जोर-शोर के साथ ए-2 दूध की कम्पनियाँ खोल कर मार्केट में आ गये । यह दूध
सामान्य दूध से महंगा है और हर जगह उपलब्ध भी नहीं है । लेकिन अगर आप चाहें तो कम्पनी
बहादुर का ए-2 दूध अपनी दुकान में लाकर अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं ।