रविवार, 18 मार्च 2018

वह उठा लाया


वह उठा लाया
रास्ते में पड़ा एक पत्थर
रात भर
छेनी-हथौड़ी की मार
सहता रहा पत्थर
भोर हुई
प्रसव हुआ
सबने देखा
वहाँ बहने लगी थी
कलकल करती एक कविता ।

समूल उखा‌ड़ दिए थे
न जाने कितने कुंवारे पेड़
अवसर की आँधियों ने ।
वह घर उठा लाया
धराशायी हुए कुछ पेड़
सहलाता रहा उनके ज़ख़्म
करता रहा मरहम-पट्टी
फिर कुछ दिनों बाद आयीं
कुछ चिड़ियाँ
गाने लगीं गीत
उन पेड़ों से लिपटकर ।
एक दिन लोगों ने देखा
कि नए पत्ते निकलने लगे हैं
पेड़ की सूखी शाखाओं से
और फुदकने लगी हैं वहाँ
न जाने कितनी कविताएं ।

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