सुनो विद्वानो
!
बस्तर
में आज फिर...
मार
दिये गये कुछ जवान
जैसे कि
मार दिये जाते हैं
आये दिन
।
बस्तर
में आज फिर...
हवा में
उछल गये मांस के लोथड़े
जैसे कि
उछलते रहते हैं
आये दिन
घात
लगाकर किये गये विस्फोटों में ।
तुम
कहते हो
कि
सैनिक तो होते ही हैं मरने के लिये
लेकिन
जैसे ही
मरता है कोई राष्ट्रघाती
व्यथित
हो जाते हो तुम
उमड़
पड़ता है सैलाब
तुम्हारी
संवेदनाओं का
हो जाते
हो करुणा विगलित
और उमड़
पड़ते हो सड़कों पर
दुष्टों
के
मानवाधिकारों
की रक्षा के लिए ।
इसलिये
अब तय
कर लिया है मैंने
कि नहीं
पढ़ाऊँगा-लिखाऊँगा अपने बच्चों को
कहीं वे
भी हो गये
आप जैसे
ही विवेकहीन तो !
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