सोमवार, 30 मार्च 2020

कोरोना क़ाफ़िर और विश्वयुद्ध


लगभग सारा विश्व इस समय युद्ध जैसी स्थितियों का सामना करने के लिए विवश हो गया है । ब्लैक-आउट की जगह लॉक-डाउन की स्थितियाँ हैं । आम जनता के आने-जाने और काम करने पर प्रतिबंध है, उद्योग धंधे बंद हैं, व्यापार ठप्प है । डॉक्टर्स की फ़ौज़ दिन-रात समस्या का सामन करने में लगी हुई है । लोगों को खाने-पीने से लेकर स्वास्थ्य जैसी समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है, और जैसा कि युद्ध और महामारी के दिनों में होता है कुछ अवसरवादी लोग पैसा कमाने के लिए ज़माखोरी भी करने लगे हैं, पैसा ही ऐसे लोगों का एकमात्र धर्म हुआ करता है ।

मैं इसे विश्वयुद्ध ही कहूँगा जिसमें दुनिया भर के देश एक अदृश्य शत्रु के विरुद्ध जंग में उतर चुके हैं । कुछ विघ्नसंतोषी लोग विपरीत परिस्थितियों में भी आदतन कलह करने से नहीं चूकते, यह भी हो रहा है । सब कुछ वैसा ही हो रहा है जैसा कि विश्वयुद्ध के दिनों में हुआ करता है, बस अंतर इतना ही है कि इस युद्ध में सैनिक नहीं बल्कि आम नागरिक मारे जा रहे हैं (यूँ ख़बर यह भी है कि लॉक-डाउन का पालन न करने वालों ने पुलिस के ऊपर कहीं-कहीं पथराव किया है। पत्थरबाजी अब हमारे देश के कुछ लोगों का धर्म बन चुका है ।)  

वैश्विक संकट की इस गम्भीर घड़ी में कुछ लोगों पर मज़हबी ख़ुमार अभी भी छाया हुआ है । आइसिस ने अल्लाह से दुआ करनी शुरू कर दी है कि कोरोना से दुनिया भर के क़ाफ़िरों को तबाह कर दो । इधर हज़रत निज़ामुद्दीन में लगभग बारह सौ लोग धार्मिक अनुष्ठान के लिए इकट्ठे हो गए जिनमें लगभग दो सौ पचास लोग विदेशी भी हैं, इन विदेशी धार्मिकों में कुछ लोगों में कोरोना से मिलते-जुलते लक्षण भी पाये गये जिसके कारण सभी लोगों को जिन्हें डीटीएस की बसों में बैठालकर अस्पताल ले जाया गया है । आज जब इतने बड़े धार्मिक जलसे के बारे में सरकार को किसी तरह पता लगा तो कार्यवाही की गई और इन मज़हबी लोगों की महँगी पैथोलॉजिकल जाँचों, आइसोलेशन और इलाज़ आदि में होने वाले भारी भरकम खर्चे का बोझ भारत की जनता पर आन पड़ा है । गलती हमारी भी हो सकती है किन्तु भारत में कोरोना का संक्रमण फैलाने में सबसे बड़ा योगदान विदेशी पर्यटकों का रहा है जो सभ्य देशों के सभ्य नागरिक माने जाते हैं । ये सभ्य नागरिक भारत भर में घूम-घूम कर म्लेच्छवत् आचरण करते रहे और हमें कोरोना बाँटते रहे । आज इन सभ्य नागरिकों के कारण भारत की अर्थव्यवस्था चौपट हो रही है और जनजीवन असामान्य हो गया है । सवाल यह है कि संकट की इस घड़ी में क्या धार्मिक अनुष्ठान इतने आवश्यक हैं कि पूरी कम्यूनिटी को ही संकट में डाल दिया जाय ? क्या अभी भी धार्मिक अनुष्ठानों के सामूहिक आयोजनों पर कठिन प्रतिबंध नहीं लगाया जाना चाहिए ?

कुछ लोग तफ़रीह करने के लिए बेचैन हो उठते हैं, वे दस लोगों से मिले-जुले बिना नहीं रह सकते । ऐसे लोग किसी भी नियम-कानून या प्रार्थना का पालन करना बिल्कुल उचित नहीं मानते । विश्वयुद्ध के दिनों में भी कुछ लोग ऐसा ही आचरण करते रहे हैं । बलैक-आउट के समय ऐसे ही लोग छिपकर मोमबत्ती या लालटेन जलाने से बाज नहीं आते । आसमान में उड़ रहे दुश्मन के लड़ाकू विमान ऐसे अवसर का लाभ उठाने से नहीं चूकते । कुछ लोगों की असामाजिक गतिविधियों का ख़ामियाज़ा पूरी कम्युनिटी को भुगतना पड़ता है । हर युग में ऐसा होता रहा है और कुछ ज़िद्दी एवं मूर्ख लोगों की गतिविधियों की सजा बहुसंख्य निर्दोष जनता को भुगतनी पड़ती है । इन हालातों में राजा के दायित्व और भी बढ़ जाते हैं । उसे एक साथ कई मोर्चों पर अपनी ऊर्जा ख़र्च करनी पड़ती है जिनमें एक मोर्चा उनकी अपनी प्रजा की वह ज़मात भी होती है जो किसी नियम कानून को नहीं मानने की ज़िद पर अड़ी रहने वाली होती है ।

आज मुझे याद रहा है कुछ साल पहले केरल से शुरू होकर पूरे देश में फैल जाने वाला “किस ऑफ़ लव आंदोलन” जिसे अति उच्च-शिक्षित आज़ाद क्रांतिकारियों की व्यक्तिगत आज़ादी का प्रतीक माना गया था । शायद उस आंदोलन के उच्च-शिक्षित आज़ाद क्रांतिकारियों को “लिप-लॉक किस” के सामूहिक प्रदर्शन का ख़ामियाज़ा अब समझ में आ रहा होगा ।

आज पूरी दुनिया एक अनचाहे विश्वयुद्ध का सामना कर रही है, सौभाग्य से ब्लैक-आउट नहीं है, केवल लॉक-डाउन है, आप मान कर चलें कि कुछ दिनों के लिए आपको अध्यात्मिक साधना का अवसर मिल गया है जिसके लिए आपको अर्जित अवकाश लेने की भी आवश्यकता नहीं है ।

सर्वे संतु निरामयाः !

शनिवार, 28 मार्च 2020

कोरोना से जंग के लिये एक हथियार यह भी...


फ़्लू जैसे लक्षणों वाले कोरोना वायरस के संक्रमण का घातक प्रभाव संक्रमित व्यक्ति के फेफड़ों पर होना सम्भावित है जिससे पल्मोनरी न्यूमोनिया के लक्षण विकसित होते हैं और रोगी को साँस लेने में मुश्किल होती है । ऐसे में यदि उस व्यक्ति में पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर, हृदयरोग, डायबिटीज़, दमा या पल्मोनरी इनफ़ेक्शन से ग्रस्त रहने का इतिहास रहा है तो स्थिति और भी गम्भीर हो जाती है । आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में न्यूमोनिया और फ़्लू की प्रभावी औषधियाँ उपलब्ध हैं जिन्हें रोग और रोगी की स्थिति के अनुरूप दिया जाता है ।
अभी कोरोना के इलाज़ के लिए जिस क्लोरोक्वीन दवा का स्तेमाल किया जा रहा है वह एण्टीप्लाज़्मोडियम है एण्टीवायरल नहीं । किंतु कभी-कभी दवायें अपने कार्यक्षेत्र से परे जाकर भी कार्य करती पायी जाती हैं, औषधियों की इसी कार्मुकता के सिद्धांत का लाभ क्लोरोक्वीन फ़ास्फ़ेट के स्तेमाल से उठाया जा रहा है जबकि आयुर्वेद में न्यूमोनिया एवं फेफड़ों की अन्य बीमारियों के लिए विशिष्टरूप से प्रभावकारी क्लासिकल दवाओं का स्तेमाल किया जाता है ।
कोलोरोक्वीन की तरह हमें आयुर्वेद की विषाणुभस्म, मल्लसिंदूर, प्रवाल पिष्टी, रूदंती, लक्ष्मीविलास रस, त्रिभुवनकीर्ति रस, चंद्रकला रस, त्रिकटु, भूम्यामलकी, महासुदर्शन क्वाथ, अमृतारिष्ट और द्राक्षावलेह आदि का प्रयोग कोरोना संक्रमण के विरुद्ध करना चाहिए । रोगी यदि पहले से हृदयरोग से ग्रस्त रहा है तो उसे अबाना, हृदयार्णव रस या नागार्जुनाभ्र रस भी दिया जाना चाहिए । मधुमेह की स्थिति में BGR-34 और नीम टबलेट का भी प्रयोग किया जाना चाहिये । इसके अतिरिक्त पहले से जो व्याधि रही हो उसकी भी लाक्षणिक और क्यूरेटिव चिकित्सा दी जानी चाहिये ।
वायरस से लड़ने में सहायक नेचुरल विटामिन सी (गर्म पानी में नीबू डालकर) और आयुर्वेदिक एण्टीऑक्सीडेंट्स का उपयोग बहुत ही प्रभावी है । इसे प्रोफ़ायलेक्टिक के रूप में भी स्तेमाल किया जाना चाहिये । आयुर्वेदिक एण्टीऑक्सीडेंट्स में स्टार-एनिस, लौंग, कालीमिर्च और दालचीनी के समभाग मिश्रण का मैं बारम्बार उल्लेख करता रहा हूँ । इस मिश्रण में यदि गिलोय सत्व को भी मिला दिया जाय तो रोगप्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के लिए यह एक उत्तम योग बन जाता है । किसी भी प्रकार के फ़्लू में हल्दी, मुलेठी और सोंठ डालकर उबाले हुये पानी से दिन में कई बार गरारा करने और चाय की तरह पीने से लक्षणों में तुरंत कमी देखी जाती है ।
 
इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कोरोना से लड़ने के लिए अभी जो भी औषधियाँ प्रयोग में लाई जा रही हैं वे सभी लाक्षणिक चिकित्सा ही कर पाने में सक्षम हैं । आयुर्वेदिक औषधियों की फ़ार्मेकोलॉजिकल कार्मुकता तार्किक और वैज्ञानिक दृष्ट्या कहीं अधिक उपयुक्त है । हम आशा करते हैं कि भारतीय चिकित्सा विज्ञान के वृहत भण्डार में से उपयुक्त औषधियों की योजना कोरोना से लड़ने में कहीं अधिक लाभकारी सिद्ध होगी ।

सर्वे सन्तु निरामया!

कोरोना तुम कित्ते अच्छे हो


1. 
घर के बाहर कोरोना है
डरा हुआ आदमी
घर में क़ैद है
चूँचूँ चिड़िया बहुत ख़ुश है
बिना शोर के ख़ामोश शहर
अब उसे अच्छे लगने लगे हैं
मुर्दा जैसे शहर में
चिड़ियों के कलरव
चाशनी घोलने लगे हैं
हिरण-नीलगाय-भालू-बाघ-चीता...
जंगल से निकलकर
शहर की सड़कों पर घूमने लगे हैं
गगनचुम्बी इमारतें उन्हें हैरान करती हैं
जरा सा आदमी
इत्ती ऊँची-ऊँची गुफ़ाओं में
घुसता कैसे होगा
जंगल के खग-मृग सोचने लगे हैं । 
हाथी गुस्से में हैं
हमारे जंगल पर कब्जा करके
कितना तहस-नहस कर दिया है इन बेवकूफ़ों ने
कैसी-कैसी गुफायें खड़ी कर दी हैं
मैं आज इन सारी गुफाओं को गिरा दूँगा
गंदे शहर को जंगल बना दूँगा ।
समझदार भालू ने सुझाव दिया
आओ !
आज हम ज़श्न मनाएँ
आदमी तो
मुँह छिपाकर
अपनी गुफा में क़ैद है
गुफा के मुहाने पर
कोरोना का कहर है  
इन पापियों से उलझकर
आप अपनी इमेज
ख़राब क्यों करना चाहते हैं 
आदमी तो
अपने पाप के बोझ से दबकर
यूँ ही मर रहे हैं   
शहर कब्रिस्तान बन रहे हैं
ट्रम्प और जिनपिंग
एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं
बचे हुये बेबस लोग
दो वैश्विक दबंगों के झगड़े का
छिप-छिपकर तमाशा देख रहे हैं
सबकी हेकड़ी निकल रही है
मुस्कुराता हुआ नन्हा कोरोना
विश्वभ्रमण पर निकला है
हम भी
शहर की सूनी सड़कों पर चहल क़दमी करें
थमी हुई चमचाती कारों पर हगें-मूतें
शहर के चप्पे-चप्पे पर कब्ज़ा कर लें
नाचें-गायें-उछलें-कूदें
ज़श्न मनाएँ ।
नन्हे कोरोना!
तुम कित्ते अच्छे हो! 

2.    
ठिगने गुण्डे ने
लम्बे गुण्डे को
पटक दिया है
नन्हे कोरोना को
नाक और फेफड़ों में ठूँस दिया है
पेट्रोलियम-वार ने
इकोनॉमी की ऐसी-तैसी कर दी है
व्यापार धराशायी हो गये हैं
दर्द और दवा उद्योग ख़ुश हो गये हैं
दिल्ली में
मज़दूरों के पास खाने को रोटी नहीं है
रोटी की चिंता
मज़दूरों को खा रही है ।
मालिक
घरों में क़ैद हैं
मज़दूर
सड़क पर हैं
सोशल डिस्टेन्शन की धज्जियाँ उड़ रही हैं 
भूखे पेट को
डर नहीं लगता कोरोना से
मौत
भूख से हो
या कोरोना से
क्या फ़र्क़ पड़ता है ।

गुरुवार, 26 मार्च 2020

स्वास्थ्य को पटकनी देता कोरोना उद्योग


आम आदमी ने सार्स (सीवियर एक्यूट रेस्पायरेटरी सिंड्रोम) को वर्ष 2003 में तब जाना जब इसने कहर ढाना शुरू किया । वर्तमान कोरोना वायरस अपने परिवार का पाँचवाँ ज्ञात म्यूटेंट वायरस है । किसी वायरस का म्यूटेंट यूँ ही बड़ी आसानी से नहीं बन जाया करता । प्राकृतिक रूप में इस प्रक्रिया में एक लम्बा समय लगता है किंतु प्रयोगशाला में इसके म्यूटेंट बड़ी आसानी से तैयार किए जा सकते हैं । प्रयोगशाला में तैयार किए जाने वाले वायरस का वैक्सीन और दवाई बनाना भी आसान होता है वरना इसमें भी कई साल लग जाया करते हैं । रविवार यानी दिनांक 29 मार्च 2020 तक इसके वैक्सीन और स्पेसिफ़िक दवाई के मार्केट में आ जाने की ख़बर है । यह सब जादुई तरीके से हो रहा है ...बिना समय गँवाये, गोया सब कुछ चरणबद्ध तरीके से स्क्रिप्ट के अनुसार शूट किया जा रहा हो ।

साइंटिफ़िक हल्ला  - हम सब एक वैज्ञानिक अतिवाद के शिकार हैं । अतिवाद यह है कि जब तक हमें फ़ोटॉन के बारे में कोई मुकम्मल और वैज्ञानिक जानकारी नहीं मिल जायेगी ...आठ-दस रिसर्च पेपर इंटरनेशनल ज़र्नल में प्रकाशित नहीं हो जाते तब तक यह कैसे माना जा सकता है कि सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा वास्तव में हमें सूर्य से ही मिल रही है? यानी रिसर्च होने तक हम सूर्य की ऊर्जा का उपयोग भी नहीं करेंगे ...क्योंकि ऐसा करना अनसाइंटिफ़िक और रूढ़ परम्परा का पालन करना होगा जो कि एक साइंटिस्ट होने के कारण हम नहीं कर सकते ...और न किसी को करने दे सकते हैं । ऐसा ही अतिवाद एंटीवायरल वैक्सीन और दवाइयों के बारे में है । वैज्ञानिक परम्पराओं को नहीं मानते किंतु वैज्ञानिक अतिवाद अब एक परम्परा बन चुका है ।

युद्ध के तरीके – सामान्यतः अदृश्य वायरस से निपटने के पाँच ज्ञात तरीके उपलब्ध हैं, 1- नित्य जीवन में वैज्ञानिक अस्पर्श्यता (Self quorontine) का पालन, 2- हाथ धोने के लिए साबुन, गर्म पानी और अन्य वस्तुओं को निःसंक्रमित करने के लिए ब्लीचिंग पावडर के घोल का प्रयोग, घर के कमरों की शुद्धता के लिए सरईधूप, जौं, सरसों, काला तिल और घी आदि से धूपन (Fumigation) का प्रयोग, 3- विटामिन सी का प्राकृतिकरूप में प्रयोग, 4- वैक्सीनेशन, 5- वायरस के स्ट्रेन की विशिष्ट औषधि का प्रयोग ।

उपाय संख्या एक से चार तक के प्रयोग प्रीवेंटिव हैं जबकि अंतिम उपाय क्योरेटिव है । हम अपने वैज्ञानिकदृष्टिकोण के अतिवाद में चौथे और पाँचवे उपायों पर ही सारा ध्यान केंद्रित रखते हैं जबकि ये सार्वकालिक और पूर्ण सुरक्षित नहीं हैं । हमारे वैज्ञानिकअतिवाद में बाज़ार के नियम भी प्रभावी और निर्णायक होने लगे हैं । यही कारण है कि स्क्रिप्ट के अनुसार पहले तो भय का प्रचार किया जाता है फिर उसके उपायों को खोज लेने का दावा किया जाता है जो (स्वाइन-फ़्लू की औषधि टैमीफ़्लू की तरह) ट्रिलियन डॉलर्स के वार्षिक टर्नओवर के व्यापार का कारण बनता है ।

हौवे की हवा – वैक्सीन कभी भी स्थायी नहीं होते, एंटीवायरल दवा भी स्थायी नहीं होती क्योंकि वैक्सीन और एंटीवायरल दवा केवल उसी वायरस और उसी स्ट्रेन के लिए प्रभावी होते हैं जिनके लिए उनका निर्माण किया जाता है । किसी नए स्ट्रेन के लिए उनका कोई उपयोग नहीं किया जा सकता अर्थात वायरस के नए स्ट्रेन के लिए दोबारा नई वैक्सीन और नई एंटीवारल ड्रग की ख़ोज करनी होगी । यह एक अनंत सिलसिला है जिसके आगे हमें कभी तो अपने हथियार डालने ही होंगे ।

मज़बूत किलेबंदी से परहेज़ का व्यापारिक दर्शन – इस विषय पर चर्चा करने से पहले हमें वायरस की सामान्य संरचना के बारे में जानने की आवश्यकता है । सामान्यतः कोई वायरस RNA अथवा DNA जेनोम वाला एक ऐसा कंडीशनल और अपॉर्चुनिस्ट पैरासाइट है जिसके ऊपर प्रोटीन का एक कवच होता है । इसके ऊपर लिपिड की दोहरी सतह वाला एक और कवच हो सकता है जिसके बीच में प्रोटीन की एक सतह होती है । यानी सबसे ऊपर लिपिड (फ़ैट) की सतह होती है जो गर्मपानी और साबुन के झाग में घुलकर आसानी से अलग हो सकती है । इसके बाद बचती है प्रोटीन की सतह जो शुष्क वातावरण में स्वतः ही निष्क्रिय हो जाती है । इसके बाद बचता है जेनोम जो अपने कवच के बिना शीघ्र ही नष्ट हो जाता है । नित्य उपयोग की वस्तुओं की सतह पर वायरस हो सकते हैं जिन्हें समाप्त करने का सबसे सरल है उपाय है ब्लीचिंग पावडर के पानी में बने घोल का कम्मोडिटीज़ पर छिड़काव । इन उपायों से वायरस को तो निष्क्रिय किया जा सकता है किंतु तब बिलियन-ट्रिलियन डॉलर्स के व्यापार की भूमिका निर्मित नहीं हो सकेगी । इस व्यापार में वैक्सीन है, स्पेसिफ़िक दवाइयाँ हैं, इम्यूनिटी बढ़ाने वाले टॉनिक्स हैं, मास्क हैं, सैनेटायज़र्स हैं और है छिपी हुई वह नीति जिसके अनुसार एक और नए स्ट्रेन और उसके तामझाम की भूमिका निर्मित होती है ।

हमारी इस मज़बूत किलेबंदी में विटामिन सी का प्राकृतिक स्रोत नीबू भी शामिल है । नीबू का एक्स्ट्रेक्ट सेलुलर मेटाबोलिज़्म और माइटोकॉंड्रियल वेस्ट प्रोडक्ट के निस्तारण के लिए प्रभावी खाद्य द्रव्य माना जाता है जिसके संतुलित उपयोग से शुद्ध हुआ शरीर का आंतरिक इनवायरनमेंट रोगप्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है । यह विदित है कि ज़िंक और विटामिन सी का अंतिम बायोलॉज़िकल प्रभाव शरीर की स्वाभाविक एंटीवायरल क्षमताओं में वृद्धिकारक होता है । किंतु ताजे नीबू के सेवन से भी किसी भारी भरकम उद्योग की भूमिका निर्मित नहीं हो पाती ।

इन सब वैज्ञानिक और व्यापारिक तथ्यों पर विचार करने के बाद किसी भी वायरस से बचाव के लिए शरीर की मज़बूत रोगप्रतिरोध क्षमता में वृद्धि के सामान्य से उपायों के द्वारा शरीर की किलेबंदी का उपाय व्यावहारिक न माने जाने की वैज्ञानिक(?) परम्परा पूरी दुनिया में चल पड़ी है । अतः प्रतीक्षा कीजिए एक नए वैक्सीन की, कुछ महँगे पैथोलॉजिकल टेस्ट्स की, किसी नई एंटीवायरल दवा की और कुछ महँगे टॉनिक्स की । ...और इसके बाद तैयार रहियेगा कुछ सालों बाद एक और नए घातक स्ट्रेन का सामना करने के लिए । 

रविवार, 22 मार्च 2020

वैज्ञानिक अस्पर्श्यता का युग


धन्यवाद मिस्टर कोरोना कोविड 19 ...
बिना रुके भागती जा रही ज़िंदगी बुरी तरह हाँफने लगी थी, उसे तनिक सुस्ताने का वक़्त चाहिए था । हम सोचते ही रह गए ...आज-कल करते-करते ... लेकिन नहीं निकाल पाए वक़्त और आज देखो ज़िंदगी कितनी निकल गई । वक़्त ...जो बहुत ज़रूरी था ...बही-खाते में लिखे घाटे-मुनाफ़े का हिसाब लगाने के लिए ।
अपने बही-खाते के परिणामों पर शक तो हमें पहले से ही था लेकिन अब साफ हो गया है कि हमने पाया कम, गँवाया अधिक । इतने बेशुमार तामझाम के बाद भी हम कितने विवश हैं । मेडिकल साइंस, स्पेस साइंस, आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंसी, बुलेट ट्रेन, सुपरसोनिक प्लेन, सुपर कम्प्यूटर, न्यूक्लियर एनर्जी और बेशुमार घातक आयुधों के होते हुये भी हम कितने विवश हैं... कितने शक्तिहीन हैं । सारा तामझाम एक ओर रखा है ...और हम ख़ुद को अपने घर में क़ैद कर देने के लिए बाध्य हो गए हैं । हम अपने परिवार के सदस्यों को छूने से डरने लगे हैं ...हम खुली हवा में साँस लेने के लिए तरसने लगे हैं । एक दहशत हवा में घुल गई है ...और अब वह हमारे फेफड़ों में भरती जा रही है ।

पेट्रोलियम के लिए होने वाला वैश्विक झगड़ा ...शतरंजी चालें ...ताक़त पर सवार अहंकार ...और दुनिया को बाँटने के लिए चली जाने वाली एक से एक घृणित चालें अब कितनी तुच्छ लगने लगी हैं । सीरिया के युद्ध की विभीषिकाएँ, हिटलर के यातना शिविर, रेशनल ज़ेनोसाइड, धार्मिक उन्माद के क्रूर नृत्य, सी.ए.ए. प्रोटेस्ट, चढ़ते-गिरते सेंसेक्स और निफ़्टी को नचाने वाले व्यापारिक हथकंडे सब कुछ कितना बचकाना सा लगने लगा है । कम्प्यूटर में समा चुके लाल-ज़िल्द वाले बही-खाते भी किसी दिन धोखा दे सकते हैं । कल्पना कीजिए, किसी दिन कोई राक्षस दुनिया भर के कम्प्यूटर्स पर अपना अधिकार जमा ले तो क्या होगा! सारी सूचनाओं के साथ हमारी जीवन भर की कमाई भी अदृश्य नहीं हो जायेगी! बैंक खाते शून्य नहीं हो जायेंगे! दुनिया रुक नहीं जायेगी! सारे सिस्टम्स को पक्षाघात नहीं हो जायेगा! ऐसे किसी दुर्भाग्यशाली दिन के लिए हमारी तैयारी क्या है?
हमारे बही खाते में तो इतना कुछ लिखा हुआ है कि हिसाब लगाते-लगाते युग निकल जायेंगे । महाभारत युद्ध की चौसर से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के छिन्न-भिन्न होने, ओवेसी बंधुओं की उत्तेजक ललकारों की दहशत से निर्मित भयभीत माहौल, बेज़ुबान पशु-पक्षियों के हक पर डाका डालने, सत्ता की छीना-झपटी के लिए सारी सीमाएँ तोड़ने, किसी ज़िंदा आदमी को चार सौ से अधिक बार चाकुओं से गोदने वाले उन्मादी हाथों को ताक़त देने वाले सफ़ेदपोशों की कहानियाँ  ... ... ... कहाँ तक गिनाऊँ ...बहुत कुछ लिखा है इस बही-खाते में ।

आज कोरोना ने हमसे हमारा वक़्त छिनाकर हमें दे दिया है ...इस ताक़ीद के साथ कि इसे सीधी तरफ़ से पकड़कर देखा जाय ....जिसे हम अभी तक न जाने कितने कोणों से देखते रहे हैं । 

हमें भरोसा है कि यदि हम समय को सीधी तरफ़ से देख सके तो ज़िंदगी के सार को समझ सकेंगे ..और फिर इस कालिख पुती ज़िंदगी को बहुत ख़ूबसूरत होने में देर नहीं लगेगी । प्रकृति से हमारी निरंतर बढ़ती दूरी से गहराती यांत्रिकनिर्भरता ने हमारी जड़ें काट डाली हैं । इसे भरभरा कर गिरने से रोकने के लिए हमारे पास कोई उपाय नहीं हैं, ऐसे उपायों के बारे में सोचने का भी वक़्त हमारे पास नहीं है ।   

सीवियर एक्यूट रिस्पायरेटरी सिंड्रोम उत्पन्न करने वाले वायरस की तबाही कुछ साल पहले झेल चुकने के बाद वुहान से निकलकर चीनी कोरोना ख़ानदान के नए स्ट्रेन कोविड19 की विशाल सेना अब अपने वैश्विक भ्रमण पर है । तथापि सच यह भी है कि प्लेग, एड्स, स्वाइन फ़्लू, ज़ीका आदि की तरह एक दिन कोविड19 को भी थककर रुकना ही पड़ेगा । आज कोविड चल रहा है ...दुनिया रुक रही है । एक दिन कोविड भी रुकेगा ...तब दुनिया एक बार फिर दौड़ने लगेगी ... किंतु उसकी रफ़्तार नियंत्रित करनी होगी । बही-खाते के हिसाब को बराबर तो करना होगा न! लेकिन ....
लेकिन सावधान रहना होगा, प्रयोगशालाओं में सूक्ष्म जीवाणुओं की संरचना में छेड़छाड़ कर नए म्यूटेण्ट्स बनाने का शौक़ मनुष्य जाति के लिए बहुत महँगा पड़ने वाला है ...कोरोना का ख़ानदान बहुत बड़ा है ...और बहुत शक्तिशाली भी । ये लोग नए-नए रूप और नाम रखकर बारबार आते रहेंगे । हमारी आत्ममुग्धता और अहंकार का मज़ाक बनाने इन्हें समय-समय पर आते रहने से कोई रोक नहीं सकेगा । एक अच्छी बात यह है कि शायद इस झटके के बाद अब हम अपनी पुरानी जीवनशैली के महत्व को समझ सकें जिसमें स्पर्श का परिवर्जनात्मक महत्व है, वायुमण्डल को शुद्ध करने के नित्य उपाय हैं, सुरक्षित खाद्य-पेय पदार्थों की स्वस्थ परम्परा है, ऋतु अनुकूलता के लिए वैज्ञानिक जीवनशैली है ....और इस सबसे बढ़कर प्राकृतिक शक्तियों के सम्मान और सात्विक सामीप्य के विधान हैं ।

आज 22 मार्च 2020 का दिन आत्मानुशासन का पर्व है, भले ही स्वेच्छा से नहीं बल्कि किसी विवशता में हमने यह दिन तय किया है किंतु इससे आत्मानुशासन और स्पर्श-परिवर्जन का महत्व प्रकाशित हुआ है । निवेदन यही है कि इस पर्व का अभ्यास अंतिम नहीं होना चाहिए, यह तो बीजारोपण है एक सतत आत्मानुशासित जीवन की नींव के लिए ।
भारत में जातीय अस्पर्श्यता का एक युग बीत चुका है । अस्पर्श्यता अब एक सामाजिक अपराध माना जाने लगा है । ...और समय का चक्र देखिये कि आज हम एक-दूसरे को स्पर्श न करने, दूर से नमस्कार करने, एक मीटर की दूरी बनाकर रखने और होटल्स में भोजन न करने का पूरे जोर-शोर से प्रचार करने में लगे गये हैं । क्या हम सचमुच वैज्ञानिक अस्पर्श्यता के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं!     

आज की अंतिम बात संध्यापूजन के सम्बंध में है । भारतीय सनातन जीवनशैली में संधिकाल को सूक्ष्म घातक शक्तियों के प्रगुणन के लिए उपयुक्त काल माना जाता रहा है । सूर्योदय और सूर्यास्त के नित्य संधिकालों के अतिरिक्त षड्ऋतुओं के संधिकालों का बायोलॉजिकल इफ़ेक्ट पुनः मननीय है ...विशेषकर आज कोरोना विस्फोट के दिनों में । संधिकालों में सूक्ष्म पैथोलॉजिकल शक्तियों की गतिविधियों में होने वाली स्वाभाविक वृद्धि मनुष्य जैसे बहुकोशिकीय प्राणियों के लिए संकट का समय हुआ करता है । हमारी शारीरिक जटिलताएँ माइक्रॉब्स की सरलताओं के सामने क्षीण होने लगती हैं और तब हमारा शरीर किसी भी इनफ़ेक्शन के प्रति अधिक सुग्राही हो उठता है । भारतीय जीवनशैली में संधिकालों में हवन के माध्यम से फ़्यूमीगेशन परम्परा की वैज्ञानिकता को आज के संदर्भों में एक बार पुनः समझने की आवश्यकता है । नित्य हवन में प्रयुक्त हव्य द्रव्यों में सामान्य समिधा के अतिरिक्त आवश्यकतानुसार औषधियों का भी चयन किया जाना चाहिये । परम्परागतरूप से हवन में प्रयुक्त होने वाले समिधा के सामान्य द्रव्य हैं गुग्गुल, काला तिल, यव, गुड़, गोघृत के साथ गोमय के उपले, आम और मदार की टहनियाँ, लटजीरा-पंचांग आदि । ऋतु एवं इनफ़ेक्शन की सम्भावनाओं के अनुरूप भूम्यामलकी, त्रिफला, कुटज, चिरायता आदि ओषध द्रव्यों का भी चयन किया जाना फ़्यूमीगेशन को और भी फ़ोर्टीफ़ाइड कर देने के कारण लाभदायी होगा । यह धार्मिक पूजा का भाग नहीं बल्कि वैज्ञानिक जीवनशैली का एक हिस्सा है । कल्पना कीजिए, यदि हर घर में प्रतिदिन फ़्यूमीगेशन की परम्परा पुनः प्रारम्भ हो सके तो न केवल डेडली पैथो- माइक्रॉब्स से अपनी सुरक्षा के लिए मज़बूत किलेबंदी की जा सकेगी बल्कि मनुष्येतर प्राणियों के लिए भी स्वस्थ्य वायुमण्डल निर्मित किया जा सकेगा । हम कोरोना परिवार के नए सदस्य कोविड 19 के प्रति आभारी हैं जिसके भय से हम एक बार पुनः भारतीय जीवनशैली के बारे में चिंतन करने लिए विवश हुए हैं ।