शनिवार, 28 मार्च 2020

कोरोना तुम कित्ते अच्छे हो


1. 
घर के बाहर कोरोना है
डरा हुआ आदमी
घर में क़ैद है
चूँचूँ चिड़िया बहुत ख़ुश है
बिना शोर के ख़ामोश शहर
अब उसे अच्छे लगने लगे हैं
मुर्दा जैसे शहर में
चिड़ियों के कलरव
चाशनी घोलने लगे हैं
हिरण-नीलगाय-भालू-बाघ-चीता...
जंगल से निकलकर
शहर की सड़कों पर घूमने लगे हैं
गगनचुम्बी इमारतें उन्हें हैरान करती हैं
जरा सा आदमी
इत्ती ऊँची-ऊँची गुफ़ाओं में
घुसता कैसे होगा
जंगल के खग-मृग सोचने लगे हैं । 
हाथी गुस्से में हैं
हमारे जंगल पर कब्जा करके
कितना तहस-नहस कर दिया है इन बेवकूफ़ों ने
कैसी-कैसी गुफायें खड़ी कर दी हैं
मैं आज इन सारी गुफाओं को गिरा दूँगा
गंदे शहर को जंगल बना दूँगा ।
समझदार भालू ने सुझाव दिया
आओ !
आज हम ज़श्न मनाएँ
आदमी तो
मुँह छिपाकर
अपनी गुफा में क़ैद है
गुफा के मुहाने पर
कोरोना का कहर है  
इन पापियों से उलझकर
आप अपनी इमेज
ख़राब क्यों करना चाहते हैं 
आदमी तो
अपने पाप के बोझ से दबकर
यूँ ही मर रहे हैं   
शहर कब्रिस्तान बन रहे हैं
ट्रम्प और जिनपिंग
एक-दूसरे पर कीचड़ उछाल रहे हैं
बचे हुये बेबस लोग
दो वैश्विक दबंगों के झगड़े का
छिप-छिपकर तमाशा देख रहे हैं
सबकी हेकड़ी निकल रही है
मुस्कुराता हुआ नन्हा कोरोना
विश्वभ्रमण पर निकला है
हम भी
शहर की सूनी सड़कों पर चहल क़दमी करें
थमी हुई चमचाती कारों पर हगें-मूतें
शहर के चप्पे-चप्पे पर कब्ज़ा कर लें
नाचें-गायें-उछलें-कूदें
ज़श्न मनाएँ ।
नन्हे कोरोना!
तुम कित्ते अच्छे हो! 

2.    
ठिगने गुण्डे ने
लम्बे गुण्डे को
पटक दिया है
नन्हे कोरोना को
नाक और फेफड़ों में ठूँस दिया है
पेट्रोलियम-वार ने
इकोनॉमी की ऐसी-तैसी कर दी है
व्यापार धराशायी हो गये हैं
दर्द और दवा उद्योग ख़ुश हो गये हैं
दिल्ली में
मज़दूरों के पास खाने को रोटी नहीं है
रोटी की चिंता
मज़दूरों को खा रही है ।
मालिक
घरों में क़ैद हैं
मज़दूर
सड़क पर हैं
सोशल डिस्टेन्शन की धज्जियाँ उड़ रही हैं 
भूखे पेट को
डर नहीं लगता कोरोना से
मौत
भूख से हो
या कोरोना से
क्या फ़र्क़ पड़ता है ।

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