शनिवार, 7 मार्च 2020

न्यू कोरोना वायरस


अफ़वाह खण्डन के भ्रम से रहें सावधान ...

टीवी पर कोरोना के सम्बंध में लोगों को सावधान करने की मुहिम चल रही है । यह मुहिम उन तथाकथित अफ़वाहों का खण्डन करती है जो स्वयं में कितनी वैज्ञानिक है, यह आपको ही तय करना है –
टी.वी. पर होने वाला प्रचार -
1-  लहसुन या गोमूत्र के एंटीवायरल इफ़ेक्ट के बारे में कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं पाए गए हैं ।
2-  कम्मोडिटीज़ पर लगे हुए कोरोना वायरस 24 घंटे से अधिक जीवित नहीं रहते ।  

वास्तविक तथ्य –
1-  लहसुन और गोमूत्र का बायोलॉजिकली एंटीवायरल इफ़ेक्ट नहीं होने का अभी तक कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है ।
2-  किसी भी वायरस के ज़िंदा या मुर्दा होने का सवाल ही नहीं होता क्योंकि वह जीवित और निर्जीव के बीच की एक ऐसी कड़ी है जिसमें जीव और निर्जीव दोनों के गुण पाए जाते हैं । जबतक कोई वायरस किसी निर्जीव वस्तु की सतह पर रहता है तब तक वह पैथोलॉजिकली इफ़ेक्टिव नहीं हो सकता । किसी जीवित कोशिका के सम्पर्क में आने के बाद ही उसके पैथोलॉजिकली एक्टिव होने की सम्भावनाएँ हो सकती हैं, यह इस पर निर्भर करता है कि होस्ट लिविंग सेल में रोगप्रतिरोध क्षमता की स्थिति क्या है!

मैं इसी संदर्भ में हल्दी, नीम और गाय के घी के बारे में लम्बे समय तक फैलाई जाती रही वैज्ञानिक अफ़वाहों के बारे में आपको याद दिलाना चाहूँगा जिसके अनुसार लगभग चार दशक तक इन चीजों को अवैज्ञानिक (और घी को तो स्वास्थ्य के लिये बहुत हानिकारक) प्रचारित किया जाता रहा । बाद में हल्दी और नीम के पेटेंट को लेकर हुयी एक लम्बी उठा-पटक से आप सभी परिचित हैं । गाय के घी के बारे में उड़ाई गयी वैज्ञानिक अफ़वाह पर विराम तक लगा जब फ़्रेंच पैराडॉक्स ने दुनिया की आँखें खोलीं और दुनिया को यह पता लगा कि जिन देशों में गाय का घी पर्याप्त मात्रा में खाया जाता है उन देशों में हृदयरोगों की सम्भावनाएं बहुत न्यून होती हैं जबकि गाय के घी से परहेज़ करने वाले लोगों में हृदयरोग होने की अधिकतम सम्भावनाएं पायी गईं ।    

अब आप एक वैज्ञानिक प्रपञ्च कथा पढ़िए ...

कोरोना के ख़िलाफ़ कदम उठाते हुये एक कम पढ़ा-लिखा आदमी नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट्स का सेवन कर रहा था, पास में खड़े वैज्ञानिक ने देखा तो चेताया – “यह अफ़वाह है कि नेचुरल एंटी-ऑक्सीडेंट्स शरीर में वायरस को प्रभावी नहीं होने देते, इस सम्बंध में अभी तक कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है । पुष्टि होने में कम से कम अठारह माह लगेंगे, उसके बाद ही इनका सेवन किया जाना उचित होगा”।

कम पढ़े-लिखे आदमी ने बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे आदमी से पूछा – “यानी मुझे अठारह माह तक प्रतीक्षा करनी होगी? तक तक मुझे क्या करना होगा ? इस बीच यदि मुझे इनफ़ेक्शन हो गया तो?”

बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे आदमी ने कहा – “जब तक रिसर्च नहीं हो जाती हम बचाव के किसी देशी उपाय के स्तेमाल की वैज्ञानिक स्वीकृति नहीं दे सकते”।

फिर हुआ यह कि कम पढ़े-लिखे आदमी ने बहुत ज़्यादा पढे-लिखे आदमी की स्वीकृति के बिना ही ...यानी नियम के विरुद्ध नेचुरल एण्टीऑक्सीडेंट्स का सेवन कर लिया । एक माह बाद ... कम पढ़ा-लिखा आदमे स्वस्थ्य बना रहा जबकि बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे आदमी को कोरोना वायरस से ग्रस्त पाया गया ।
   
बहुत ज़्यादा पढ़े-लिखे आदमी ने प्रतिज्ञा की है कि जब तक कोरोना वायरस की दवाई और वैक्सीन के सम्बन्ध में कोई रिसर्च नहीं हो जाती ..वह किसी दवा का सेवन नहीं करेगा । वह अठारह माह तक इंतज़ार करेगा ...और तब तक कोरोना वायरस को भी इंतज़ार करना ही होगा ....शायद कोरोना लोगों को पता लग चुका है कि भारत में एक ज़ल्लाद निर्भया के गुनहगारों को फाँसी देने के लिए अदालत की कानूनीपुष्टि का इंतज़ार कर रहा है ।

https://youtu.be/DtEFVxP3NEg


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