रविवार, 22 मार्च 2020

वैज्ञानिक अस्पर्श्यता का युग


धन्यवाद मिस्टर कोरोना कोविड 19 ...
बिना रुके भागती जा रही ज़िंदगी बुरी तरह हाँफने लगी थी, उसे तनिक सुस्ताने का वक़्त चाहिए था । हम सोचते ही रह गए ...आज-कल करते-करते ... लेकिन नहीं निकाल पाए वक़्त और आज देखो ज़िंदगी कितनी निकल गई । वक़्त ...जो बहुत ज़रूरी था ...बही-खाते में लिखे घाटे-मुनाफ़े का हिसाब लगाने के लिए ।
अपने बही-खाते के परिणामों पर शक तो हमें पहले से ही था लेकिन अब साफ हो गया है कि हमने पाया कम, गँवाया अधिक । इतने बेशुमार तामझाम के बाद भी हम कितने विवश हैं । मेडिकल साइंस, स्पेस साइंस, आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंसी, बुलेट ट्रेन, सुपरसोनिक प्लेन, सुपर कम्प्यूटर, न्यूक्लियर एनर्जी और बेशुमार घातक आयुधों के होते हुये भी हम कितने विवश हैं... कितने शक्तिहीन हैं । सारा तामझाम एक ओर रखा है ...और हम ख़ुद को अपने घर में क़ैद कर देने के लिए बाध्य हो गए हैं । हम अपने परिवार के सदस्यों को छूने से डरने लगे हैं ...हम खुली हवा में साँस लेने के लिए तरसने लगे हैं । एक दहशत हवा में घुल गई है ...और अब वह हमारे फेफड़ों में भरती जा रही है ।

पेट्रोलियम के लिए होने वाला वैश्विक झगड़ा ...शतरंजी चालें ...ताक़त पर सवार अहंकार ...और दुनिया को बाँटने के लिए चली जाने वाली एक से एक घृणित चालें अब कितनी तुच्छ लगने लगी हैं । सीरिया के युद्ध की विभीषिकाएँ, हिटलर के यातना शिविर, रेशनल ज़ेनोसाइड, धार्मिक उन्माद के क्रूर नृत्य, सी.ए.ए. प्रोटेस्ट, चढ़ते-गिरते सेंसेक्स और निफ़्टी को नचाने वाले व्यापारिक हथकंडे सब कुछ कितना बचकाना सा लगने लगा है । कम्प्यूटर में समा चुके लाल-ज़िल्द वाले बही-खाते भी किसी दिन धोखा दे सकते हैं । कल्पना कीजिए, किसी दिन कोई राक्षस दुनिया भर के कम्प्यूटर्स पर अपना अधिकार जमा ले तो क्या होगा! सारी सूचनाओं के साथ हमारी जीवन भर की कमाई भी अदृश्य नहीं हो जायेगी! बैंक खाते शून्य नहीं हो जायेंगे! दुनिया रुक नहीं जायेगी! सारे सिस्टम्स को पक्षाघात नहीं हो जायेगा! ऐसे किसी दुर्भाग्यशाली दिन के लिए हमारी तैयारी क्या है?
हमारे बही खाते में तो इतना कुछ लिखा हुआ है कि हिसाब लगाते-लगाते युग निकल जायेंगे । महाभारत युद्ध की चौसर से लेकर अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत के छिन्न-भिन्न होने, ओवेसी बंधुओं की उत्तेजक ललकारों की दहशत से निर्मित भयभीत माहौल, बेज़ुबान पशु-पक्षियों के हक पर डाका डालने, सत्ता की छीना-झपटी के लिए सारी सीमाएँ तोड़ने, किसी ज़िंदा आदमी को चार सौ से अधिक बार चाकुओं से गोदने वाले उन्मादी हाथों को ताक़त देने वाले सफ़ेदपोशों की कहानियाँ  ... ... ... कहाँ तक गिनाऊँ ...बहुत कुछ लिखा है इस बही-खाते में ।

आज कोरोना ने हमसे हमारा वक़्त छिनाकर हमें दे दिया है ...इस ताक़ीद के साथ कि इसे सीधी तरफ़ से पकड़कर देखा जाय ....जिसे हम अभी तक न जाने कितने कोणों से देखते रहे हैं । 

हमें भरोसा है कि यदि हम समय को सीधी तरफ़ से देख सके तो ज़िंदगी के सार को समझ सकेंगे ..और फिर इस कालिख पुती ज़िंदगी को बहुत ख़ूबसूरत होने में देर नहीं लगेगी । प्रकृति से हमारी निरंतर बढ़ती दूरी से गहराती यांत्रिकनिर्भरता ने हमारी जड़ें काट डाली हैं । इसे भरभरा कर गिरने से रोकने के लिए हमारे पास कोई उपाय नहीं हैं, ऐसे उपायों के बारे में सोचने का भी वक़्त हमारे पास नहीं है ।   

सीवियर एक्यूट रिस्पायरेटरी सिंड्रोम उत्पन्न करने वाले वायरस की तबाही कुछ साल पहले झेल चुकने के बाद वुहान से निकलकर चीनी कोरोना ख़ानदान के नए स्ट्रेन कोविड19 की विशाल सेना अब अपने वैश्विक भ्रमण पर है । तथापि सच यह भी है कि प्लेग, एड्स, स्वाइन फ़्लू, ज़ीका आदि की तरह एक दिन कोविड19 को भी थककर रुकना ही पड़ेगा । आज कोविड चल रहा है ...दुनिया रुक रही है । एक दिन कोविड भी रुकेगा ...तब दुनिया एक बार फिर दौड़ने लगेगी ... किंतु उसकी रफ़्तार नियंत्रित करनी होगी । बही-खाते के हिसाब को बराबर तो करना होगा न! लेकिन ....
लेकिन सावधान रहना होगा, प्रयोगशालाओं में सूक्ष्म जीवाणुओं की संरचना में छेड़छाड़ कर नए म्यूटेण्ट्स बनाने का शौक़ मनुष्य जाति के लिए बहुत महँगा पड़ने वाला है ...कोरोना का ख़ानदान बहुत बड़ा है ...और बहुत शक्तिशाली भी । ये लोग नए-नए रूप और नाम रखकर बारबार आते रहेंगे । हमारी आत्ममुग्धता और अहंकार का मज़ाक बनाने इन्हें समय-समय पर आते रहने से कोई रोक नहीं सकेगा । एक अच्छी बात यह है कि शायद इस झटके के बाद अब हम अपनी पुरानी जीवनशैली के महत्व को समझ सकें जिसमें स्पर्श का परिवर्जनात्मक महत्व है, वायुमण्डल को शुद्ध करने के नित्य उपाय हैं, सुरक्षित खाद्य-पेय पदार्थों की स्वस्थ परम्परा है, ऋतु अनुकूलता के लिए वैज्ञानिक जीवनशैली है ....और इस सबसे बढ़कर प्राकृतिक शक्तियों के सम्मान और सात्विक सामीप्य के विधान हैं ।

आज 22 मार्च 2020 का दिन आत्मानुशासन का पर्व है, भले ही स्वेच्छा से नहीं बल्कि किसी विवशता में हमने यह दिन तय किया है किंतु इससे आत्मानुशासन और स्पर्श-परिवर्जन का महत्व प्रकाशित हुआ है । निवेदन यही है कि इस पर्व का अभ्यास अंतिम नहीं होना चाहिए, यह तो बीजारोपण है एक सतत आत्मानुशासित जीवन की नींव के लिए ।
भारत में जातीय अस्पर्श्यता का एक युग बीत चुका है । अस्पर्श्यता अब एक सामाजिक अपराध माना जाने लगा है । ...और समय का चक्र देखिये कि आज हम एक-दूसरे को स्पर्श न करने, दूर से नमस्कार करने, एक मीटर की दूरी बनाकर रखने और होटल्स में भोजन न करने का पूरे जोर-शोर से प्रचार करने में लगे गये हैं । क्या हम सचमुच वैज्ञानिक अस्पर्श्यता के नए युग में प्रवेश कर रहे हैं!     

आज की अंतिम बात संध्यापूजन के सम्बंध में है । भारतीय सनातन जीवनशैली में संधिकाल को सूक्ष्म घातक शक्तियों के प्रगुणन के लिए उपयुक्त काल माना जाता रहा है । सूर्योदय और सूर्यास्त के नित्य संधिकालों के अतिरिक्त षड्ऋतुओं के संधिकालों का बायोलॉजिकल इफ़ेक्ट पुनः मननीय है ...विशेषकर आज कोरोना विस्फोट के दिनों में । संधिकालों में सूक्ष्म पैथोलॉजिकल शक्तियों की गतिविधियों में होने वाली स्वाभाविक वृद्धि मनुष्य जैसे बहुकोशिकीय प्राणियों के लिए संकट का समय हुआ करता है । हमारी शारीरिक जटिलताएँ माइक्रॉब्स की सरलताओं के सामने क्षीण होने लगती हैं और तब हमारा शरीर किसी भी इनफ़ेक्शन के प्रति अधिक सुग्राही हो उठता है । भारतीय जीवनशैली में संधिकालों में हवन के माध्यम से फ़्यूमीगेशन परम्परा की वैज्ञानिकता को आज के संदर्भों में एक बार पुनः समझने की आवश्यकता है । नित्य हवन में प्रयुक्त हव्य द्रव्यों में सामान्य समिधा के अतिरिक्त आवश्यकतानुसार औषधियों का भी चयन किया जाना चाहिये । परम्परागतरूप से हवन में प्रयुक्त होने वाले समिधा के सामान्य द्रव्य हैं गुग्गुल, काला तिल, यव, गुड़, गोघृत के साथ गोमय के उपले, आम और मदार की टहनियाँ, लटजीरा-पंचांग आदि । ऋतु एवं इनफ़ेक्शन की सम्भावनाओं के अनुरूप भूम्यामलकी, त्रिफला, कुटज, चिरायता आदि ओषध द्रव्यों का भी चयन किया जाना फ़्यूमीगेशन को और भी फ़ोर्टीफ़ाइड कर देने के कारण लाभदायी होगा । यह धार्मिक पूजा का भाग नहीं बल्कि वैज्ञानिक जीवनशैली का एक हिस्सा है । कल्पना कीजिए, यदि हर घर में प्रतिदिन फ़्यूमीगेशन की परम्परा पुनः प्रारम्भ हो सके तो न केवल डेडली पैथो- माइक्रॉब्स से अपनी सुरक्षा के लिए मज़बूत किलेबंदी की जा सकेगी बल्कि मनुष्येतर प्राणियों के लिए भी स्वस्थ्य वायुमण्डल निर्मित किया जा सकेगा । हम कोरोना परिवार के नए सदस्य कोविड 19 के प्रति आभारी हैं जिसके भय से हम एक बार पुनः भारतीय जीवनशैली के बारे में चिंतन करने लिए विवश हुए हैं ।           

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