शनिवार, 28 मार्च 2020

कोरोना से जंग के लिये एक हथियार यह भी...


फ़्लू जैसे लक्षणों वाले कोरोना वायरस के संक्रमण का घातक प्रभाव संक्रमित व्यक्ति के फेफड़ों पर होना सम्भावित है जिससे पल्मोनरी न्यूमोनिया के लक्षण विकसित होते हैं और रोगी को साँस लेने में मुश्किल होती है । ऐसे में यदि उस व्यक्ति में पहले से ही हाई ब्लड प्रेशर, हृदयरोग, डायबिटीज़, दमा या पल्मोनरी इनफ़ेक्शन से ग्रस्त रहने का इतिहास रहा है तो स्थिति और भी गम्भीर हो जाती है । आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति में न्यूमोनिया और फ़्लू की प्रभावी औषधियाँ उपलब्ध हैं जिन्हें रोग और रोगी की स्थिति के अनुरूप दिया जाता है ।
अभी कोरोना के इलाज़ के लिए जिस क्लोरोक्वीन दवा का स्तेमाल किया जा रहा है वह एण्टीप्लाज़्मोडियम है एण्टीवायरल नहीं । किंतु कभी-कभी दवायें अपने कार्यक्षेत्र से परे जाकर भी कार्य करती पायी जाती हैं, औषधियों की इसी कार्मुकता के सिद्धांत का लाभ क्लोरोक्वीन फ़ास्फ़ेट के स्तेमाल से उठाया जा रहा है जबकि आयुर्वेद में न्यूमोनिया एवं फेफड़ों की अन्य बीमारियों के लिए विशिष्टरूप से प्रभावकारी क्लासिकल दवाओं का स्तेमाल किया जाता है ।
कोलोरोक्वीन की तरह हमें आयुर्वेद की विषाणुभस्म, मल्लसिंदूर, प्रवाल पिष्टी, रूदंती, लक्ष्मीविलास रस, त्रिभुवनकीर्ति रस, चंद्रकला रस, त्रिकटु, भूम्यामलकी, महासुदर्शन क्वाथ, अमृतारिष्ट और द्राक्षावलेह आदि का प्रयोग कोरोना संक्रमण के विरुद्ध करना चाहिए । रोगी यदि पहले से हृदयरोग से ग्रस्त रहा है तो उसे अबाना, हृदयार्णव रस या नागार्जुनाभ्र रस भी दिया जाना चाहिए । मधुमेह की स्थिति में BGR-34 और नीम टबलेट का भी प्रयोग किया जाना चाहिये । इसके अतिरिक्त पहले से जो व्याधि रही हो उसकी भी लाक्षणिक और क्यूरेटिव चिकित्सा दी जानी चाहिये ।
वायरस से लड़ने में सहायक नेचुरल विटामिन सी (गर्म पानी में नीबू डालकर) और आयुर्वेदिक एण्टीऑक्सीडेंट्स का उपयोग बहुत ही प्रभावी है । इसे प्रोफ़ायलेक्टिक के रूप में भी स्तेमाल किया जाना चाहिये । आयुर्वेदिक एण्टीऑक्सीडेंट्स में स्टार-एनिस, लौंग, कालीमिर्च और दालचीनी के समभाग मिश्रण का मैं बारम्बार उल्लेख करता रहा हूँ । इस मिश्रण में यदि गिलोय सत्व को भी मिला दिया जाय तो रोगप्रतिरोध क्षमता बढ़ाने के लिए यह एक उत्तम योग बन जाता है । किसी भी प्रकार के फ़्लू में हल्दी, मुलेठी और सोंठ डालकर उबाले हुये पानी से दिन में कई बार गरारा करने और चाय की तरह पीने से लक्षणों में तुरंत कमी देखी जाती है ।
 
इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि भारत में कोरोना से लड़ने के लिए अभी जो भी औषधियाँ प्रयोग में लाई जा रही हैं वे सभी लाक्षणिक चिकित्सा ही कर पाने में सक्षम हैं । आयुर्वेदिक औषधियों की फ़ार्मेकोलॉजिकल कार्मुकता तार्किक और वैज्ञानिक दृष्ट्या कहीं अधिक उपयुक्त है । हम आशा करते हैं कि भारतीय चिकित्सा विज्ञान के वृहत भण्डार में से उपयुक्त औषधियों की योजना कोरोना से लड़ने में कहीं अधिक लाभकारी सिद्ध होगी ।

सर्वे सन्तु निरामया!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.