बुधवार, 8 अप्रैल 2020

कोरोना युद्ध में भारत की चुनौतियाँ


चीनी युद्ध का एक और सम्भावित मोर्चा...

ख़बर है कि चीन ने दक्षिण चीन सागर में युद्धाभ्यास शुरू कर दिया है । यदि यह सच है तो इसे गम्भीरता से लिया जाना चाहिये । आज जबकि पूरी दुनिया पिछले तीन महीनों से चीनी बायो-वीपन के हमले से जूझ रही है और दुनिया भर की अर्थव्यवस्था धराशायी हो चुकी है, चीन की इस क्रूरतापूर्ण हरकत ने उसकी पाशविकवृत्ति को एक बार फिर उजागर कर दिया है । चीन और अमेरिका के बीच छिड़े व्यापारिक युद्ध में चीनी जैवास्त्र कोरोना वायरस के कहर का सामना पूरी दुनिया को करना पड़ रहा है । चीन द्वारा छेड़ा गया यह विश्वयुद्ध अपनी क्रूरता के लिये अगले सैकड़ों साल तक याद रखा जायेगा । इस विश्वयुद्ध को धूर्ततापूर्ण तरीके से शुरू करने, जैवास्त्र का क्रूरतापूर्ण प्रयोग करने और अमानवीय व्यवहारों के लिए चीन अपनी ज़िम्मेदारी से बचने के लिए कितने भी झूठ का सहारा लेता रहे, किंतु वास्तविकता पूरी दुनिया जान चुकी है ।

वैश्विक संकट की इस घड़ी में चीन अपने पड़ोसी देशों को हड़पने के लिए किसी भी हद को पार कर सकता है । भारत को चीनी चालों से सावधान रहना होगा । इसके बाद भी चीन और अमेरिका में से किसी एक को चुनना हो तो मैं चीन को चुनना चाहूँगा । इसके पीछे चीन और भारत की प्राचीन सुसंस्कृत सभ्यता, श्रेष्ठ दार्शनिक पृष्ठभूमि, समृद्ध कलाओं, लोकजीवन की ग्राम्य ख़ुश्बू, कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और लगभग एक जैसी सामाजिक समस्याओं का सुदृढ़ आधार है । अमेरिका और भारत के बीच इस तरह का कोई सुदृढ़ आधार नहीं है इसलिए अमेरिका के साथ हमारी नहीं बन सकेगी... कभी नहीं बन सकेगी । 

चीन हमारा पड़ोसी है, यदि वह ईमानदारी के साथ भारत से हाथ मिला ले तो यह दोनों देशों के चहुँमुखी विकास के लिए दुनिया का सर्वश्रेष्ठ समझौता होगा । अमेरिकी राष्ट्रपति की हालिया भारत यात्रा को लेकर भारतीय उद्योग जगत को तब निराशा हुयी जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत को रोटी के स्थान पर मौत का सामान बेचने की पेशकश की । भारत को घातक और विनाशकारी आयुध बेचने के समझौते ने अमेरिका की धूर्तता, क्रूरता और विनाशकारी बुद्धि का खुलकर इज़हार किया है जिससे सावधान रहने की आवश्यकता है ।

राजनीतिक और व्यापारिक दृष्टि से देखें तो चीन और अमेरिका ने विगत सात दशकों में अपनी छवि वैश्विक गुण्डा और धूर्त देशों के रूप में बनायी है, दोनों में अंतर इतना ही है कि जहाँ चीन एक चालाक गुण्डा है वहीं अमेरिका एक मूर्ख गुण्डा है । दोनों देश पूरी दुनिया पर अपनी दादागीरी चलाने के लिए नित नये उपायों पर बड़ी शिद्दत से योजनायें बनाने और उन पर अमल करने में दक्ष हैं । अपने धूर्ततापूर्ण व्यापारिक समझौतों के माध्यम से दोनों देशों की कोशिशें दुनिया भर के शेष देशों से चौथ वसूलने की हुआ करती हैं । फ़िलहाल, चीन ने दक्षिण चीन सागर में हालिया युद्धाभ्यास की हुंकार भरते हुये और वुहान से लॉक-डाउन समाप्त करके अपनी क्रूर व्यापारिक बिसात बिछा दी है जिसमें कोरोना के वैक्सीन, एण्टीवायरस दवाइयो और मेडिकल उपकरणों की तिज़ारत करके ट्रिलियन डॉलर्स की कमायी से चीन अपनी तिजोरियाँ भरने के लिए तैयार हो गया है ।  

लॉक-अप में लॉक-डाउन और पेरिशेबल कम्मोडिटीज़...

ख़बर है कि पेरिशेबल कम्मोडिटीज़ का परिवहन न हो पाने के कारण सब्जी, फल और दूध उत्पादकों की हालत ख़राब होती जा रही है । उन्हें होने वाली क्षति की भरपायी किया जा सकना असम्भव है । इन लोगों को स्थानीय प्रशासनों से अपेक्षा है कि पेरिशेबल कम्मोडिटीज़ के परिवहन पर प्राथमिकता के तौर पर ध्यान दिया जाय जिससे सब्जियाँ और दूध जैसे उत्पाद उपभोक्ताओं तक पहुँच सकें और किसानों की आर्थिक स्थिति पंगु होने से बचायी जा सके ।

भारत ही नहीं पूरी दुनिया के दिहाड़ी श्रमिकों के सामने आज अचानक रोटी की समस्या खड़ी हो गयी है वहीं किसानों को भी अपने पेरिशेबल उत्पाद उपभोक्ताओं के पास तक पहुँचाने की समस्या से जूझना पड़ रहा है । चीनी कोरोना की मार झेलते किसान और श्रमिक बेहाल हैं । किसान के पास श्रमिकों का टोटा है और श्रमिकों के पास काम का । भारत में असंगठित दिहाड़ी श्रमिकों का अंतरराज्यीय पलायन एक सामान्य बात है, किंतु कोरोना के कहर ने कई स्थानों से ऐसे श्रमिकों को अपने घर लौट जाने के लिए विवश कर दिया और अब वे क्वारण्टाइन में अच्छा वक़्त आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । हर किसी को ज़ल्दी से ज़ल्दी लॉक-डाउन समाप्त होने की प्रतीक्षा है किंतु मौज़ूदा हालात इसके पक्ष में दिखायी नहीं देते । वापस घर जाने के लिए उमड़ पड़ी दिहाड़ी श्रमिकों की भीड़ पुलिस, प्रशासन और मेडिकल टीम के साथ जहाँ दिल से सहयोग कर रही है वहीं न जाने कहाँ गुम हो गये तब्लीगी ज़मात के लोग क्वारण्टाइन, पैथोलॉज़िकल टेस्ट और इलाज़  के लिए सामने ही नहीं आ रहे हैं और यदि उन्हें किसी तरह पकड़कर लाया भी जाता है तो वे हिंसक हमले करने में भी पीछे नहीं हटते । चीनी वायरस-वार का सामना करने में यह एक बहुत बड़ी चुनौती बनकर सामने आयी है जिससे लगभग सभी प्रांतों की पुलिस को जूझना पड़ रहा है । अच्छा होगा यदि लॉक-डाउन को अभी कुछ दिन और लॉक-अप में ही रहने दिया जाय ।

स्थितियाँ ऐसी हैं कि चरमराते हुये आर्थिक ढाँचे को सुधारने के लिए लॉक-डाउन को जितनी ज़ल्दी सम्भव हो समाप्त कर दिया जाना चाहिये किंतु कोरोना युद्ध को जीतने के लिए अभी कुछ दिन और लॉक-डाउन बनाये रखना बहुत आवश्यक है । इस युद्ध में भारत के इंतज़ामों के अभी तक के परिणामों को देखते हुये मध्य का रास्ता निकाले जाने पर विचार किया जा सकता है । चिन्हित किए गये कोरोना हॉट-स्पॉट्स को छोड़कर शेष स्थानों में चरणबद्ध तरीके से लॉक-डाउन समाप्त किये जाने पर विचार किया जाना चाहिये । दूसरी ओर जीवन रक्षक अत्यावश्यक वस्तुओं के उत्पादन वाले फ़ार्मेसी जैसे उद्योगों को चरणबद्ध तरीके से शुरू किया जाना आवश्यक हो गया है । 

कोरोना जंग में कम नहीं हैं चुनौतियाँ...
कोरोना जंग में भारत के विरुद्ध एक साथ कई मोर्चों पर जंग शुरू हो चुकी है । जहाँ अन्य देशों को केवल कोरोना वायरस, ग़रीबों की भूख, चौपट होते उद्योगों और मूर्खों के असहयोग की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है वहीं भारत को इन सारी समस्याओं के साथ-साथ अपने राजनीतिक विरोधियों के षड्यंत्रपूर्ण असहयोग, अतिवाद से प्रभावित धार्मिक दुष्प्रचारों, हिंसक माओवादियों और पाकिस्तानी आतंकवाद जैसे कई मोर्चों पर एक साथ जूझना पड़ रहा है । 
चीनी दोस्त पाकिस्तानी सेना के जवान कोरोना से संक्रमित हुये तो पाकिस्तान को भारत के ख़िलाफ़ जैसे कोई मुँहमाँगी मुराद मिल गयी । अपनी सेना के कोरोना संक्रमित जवानों को भारत में वायरस विस्फोट करने के लिए फ़िदायीन बना दिया गया । पिछले कई दशकों से भारत का यह अनुभव रहा है कि चीन और पाकिस्तान जैसे देश मानवता की सारी हदों को पार करने और भारत को हर तरह की क्षति पहुँचाने के किसी अवसर को न चूकने से कभी बाज नहीं आते । हाल ही में कश्मीर घाटी में हुयी आतंकी घटनाओं ने भारत को बता दिया है कि चीनी विश्वयुद्ध में पाकिस्तान चीन के साथ खड़ा है यानी भारत पर पाकिस्तान के टुच्चहे हमले जारी रहेंगे जिनसे न केवल भारत को बल्कि बलूचिस्तान, पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान को भी सावधान रहना होगा ।

1 टिप्पणी:

  1. सम्भावना कुछ भी हो सकती है.
    मगर खतरा किससे और कितना है ये कहना मुश्किल है. अभी तक युद्ध जैसी बात कल्पना हो सकती है.
    corona ने चीन में भी 3 महीने तक खूब तबाही मचाई है. और उन्होंने अपनी समझ से इस पर काबू पाया है. अच्छा लेख है.
    नयी रचना- एक भी दुकां नहीं थोड़े से कर्जे के लिए 

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.