गुरुवार, 14 मई 2020

कठोपनिषद् ...01

नचिकेता और हॉरख़ेइमर...
दुनिया भर के कामरेड्स के दार्शनिक गुरु शोपेन हॉवर (Arthur Schopenhauer) की एक बात से मैं पूरी तरह सहमत हूँ कि पुराणों और उपनिषदों से उद्भूत प्रेरणा कम्युनिज़्म की मूल अवधारणा को जन्म देती है । अर्थात् वैदिक और वैदिकोत्तर ग्रंथ कम्युनिज़्म के आदिस्रोत हैं ।
ज़र्मन दार्शनिक और फ़्रेंकफ़र्त स्कूल के संस्थापकसदस्य मैक्स हॉरख़ेइमर जब वर्ष1930 में सामाजिक शोध संस्थान के निदेशक बने तो उन्होंने ब्राह्मणों के अनवरत परिमार्जनसिद्धांत के अनुरूप योरोप में क्रिटिक थ्योरी को सुस्थापित करने का प्रयास किया । क्रिटिक का मूल सिद्धांत बालक नचिकेता की उस जिज्ञासा से विकसित होता है जिसके परिणामस्वरूप उसे पिता के कोप का भागी बनना पड़ता है । नचिकेता के समय तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में परिमार्जन और रीफ़ॉर्मेशन की आवश्यकता थी । बालक नचिकेता ने अपने बाल्यकाल में भोगी कुछ घटनाओं से उस सामाजिक संक्रांति काल को पहचान लिया जिसमें तत्कालीन आवश्यकता के अनुसार कुछ सुधार सम्भव हो सके ।  

आज कोरोना विषाणु ने पूरी दुनिया में एक ऐसी संक्रांति को जन्म दिया है जिसके परिणाम पूरे विश्व के लिए रीफ़ॉर्मेटिव और भविष्य में सुखद प्रमाणित होने वाले हैं । ऐसी ही एक संक्रांति ने योरोप में दार्शनिक-सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक एवं औद्योगिक रीफ़ॉर्मेशन्स को आमंत्रित किया था । नचिकेता के प्रसंग में आज मैं उन सबकी चर्चा भी करना चाहूँगा ।

आज मैं वर्ष 1918 में आए influenza pandemic के इतिहास के कुछ पृष्ठ खोलना चाहता हूँ जिसमें पूरे विश्व में लगभग पचास मिलियन लोगों की मृत्यु की सूचना अंकित है । बीसवीं शताब्दी के प्रारम्भिक चार-पाँच दशकों तक यमराज ने घूम-घूम कर पूरी धरती पर शासन करते हुये करोड़ों लोगों को अकाल मृत्यु का शिकार बनाया । यमराज के एकछत्र शासन का प्रारम्भ होता है प्रथम विश्वयुद्ध के साथ जो 28 जुलाई 1914 से 11 नवम्बर 1918 तक चला । इस युद्ध में लगभग बाइस मिलियन लोगों की मृत्यु हुयी, यह संख्या इनफ़्ल्युंज़ा पैण्डेमिक से होने वाली मौतों की संख्या के आधे से भी कम है । उस समय पूरे योरोप में साम्राज्यवादी और राष्ट्रवादी विचार अपने-अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत थे । योरोपीय देश आपस में युद्ध कर रहे थे, ओट्टोमन साम्राज्य का अंत हो चुका था और शक्ति संतुलन के लिए विश्व भर में महायुद्ध की भूमिकायें निर्मित हो चुकी थीं । यह प्रथम विश्वयुद्ध था जिसे “The war to end all wars” माना गया । किंतु वास्तव में ऐसा कुछ भी हुआ नहीं, युद्ध इसके बाद भी हुये । कुछ ही साल बाद ज़र्मनी ने पोलैण्ड पर आक्रमण कर दिया जो एक और विश्वयुद्ध में बदल गया । यह द्वितीय विश्वयुद्ध था जो 01 सितम्बर 1939 से प्रारम्भ होकर 02 सितम्बर 1945 तक चला । द्वितीय विश्वयुद्ध में सात करोड़ तीस लाख से अधिक लोग यमराज के शिकार हुये । ये सारी मौतें स्वाभाविक नहीं थीं, इसलिए मैं इन्हें इन्ड्यूस्ड मौत कहना चाहता हूँ ।

तत्कालीन वैश्विक उथल-पुथल के बीच प्रतिक्रियावादी विचारधारा के परिणामस्वरूप वर्ष 1923 में ज़र्मनी में फ़्रेंकफ़र्त स्कूल की स्थापना हुयी जहाँ कार्ल मार्क्स, गेलेन, शॉपेन हॉवर आदि दार्शनिकों और सुधारवादियों के विचारों को मूर्तरूप देने का कार्य प्रारम्भ हुआ किंतु कनु सान्याल के नक्सलवाड़ी आंदोलन की तरह यह वैचारिक आंदोलन भी आंतरिक विचारों में उलझने लगा । नक्सलवाड़ी आंदोलन के जनक कनु सान्याल को आत्महत्या कर लेनी पड़ी । योरोप में किसी विचारक ने आत्महत्या नहीं की बल्कि मैक्स हॉरख़ेइमर अपने नवकम्युनिज़्म के साथ फ़्रेन्नकफ़र्त स्कूल के नये सारथी बनकर उभरे ।

नचिकेता के प्रसंग में फ़्रेंकफ़र्त स्कूल और उसकी स्थापना के कारणभूत विश्वयुद्ध आदि की बातें बहुत आवश्यक हैं । इन बातों की प्रासंगिकता कोरोना संक्रमण और पाकिस्तान द्वारा छेड़े गये छद्मयुद्ध की विभीषिका के बीच उत्पन्न रीफ़ोर्मेशन के अवसरों को पहचाने जाने के लिए महत्वपूर्ण है । नचिकेता तत्कालीन “शोषक परम्पराओं का विरोध” करते हैं और “अनवरत परिमार्जन” सिद्धान्त को पुनर्स्थापित करते हैं । मैक्स हॉरख़ेइमर भी रीफ़ॉर्मेशन के लिए क्रिटिक थ्योरी को अपना हथियार बनाते हैं । आजके वैश्विक परिदृश्य में स्पष्ट हो चुकी विभीषिकाओं के बीच रीफ़ॉर्मेशन के अवसरों को पहचानते हुये हमें हमारी सक्रिय भूमिका को निभाने की आवश्यकता है ।  

कठोपनिषद् की प्रथम वल्ली नचिकेता द्वारा दान पर उठाये गये संदेह से प्रारम्भ होती है । वाजश्रवा के पुत्र उद्दालक ने यज्ञ में अपना सब कुछ दान कर दिया । समाज में सम्पत्ति का फ़्लो बनाए रखने के लिए सुपात्र व्यक्तियों को दान दिए जाने की परम्परा भारत में रही है । सर्वस्व दान की यह परम्परा कम्युनिज़्म की मूल अवधारणा है जिसे आज के खाँटी कम्युनिस्ट भी व्यवहार में नहीं लाना चाहते । उद्दालक के पिता वाजश्रवा (वाज=अन्न, श्रवः=श्रेय) ने अन्नदान के द्वारा यश प्राप्त किया था । दान की इसी परम्परा को आगे बढ़ाते हुये उद्दालक ने भी यज्ञ में अपना सर्वस्वदान करने की इच्छा से अपने पशुधन को भी दान कर दिया ।  

बालक नचिकेता ने देखा कि अशक्त (निरिंद्रियाः) गायों को दान के लिए समूहों में विभक्त किया जा रहा है, वे सभी गायें अब दूध देने लायक नहीं रही थीं (दुग्धदोहा) । नचिकेता को मालूम था कि ऐसी गायों को दान देने से दानकर्ता को दान का पुण्य लाभ नहीं मिलेगा बल्कि ऐसे दानकर्ता को आनंदरहित स्थिति का सामना करना पड़ेगा (अनंदा नाम ते लोकाः तान् स गच्छति ता ददत्) । शास्त्र और व्यवहार में इस विरोधाभास को देखकर नचिकेता ने पिता से पूछ दिया कि वे उसे किस व्यक्ति को दान देंगे ? इसके बाद की कथा आप सबको मालूम है ।
क्रिटिक और रीफ़ॉर्मेशन का ही एक और प्रसंग है जिसमें नचिकेता दैहिक वासनापूर्ति हेतु अपनी माँ को एक युवक द्वारा हाथ पकड़कर ले जाए जाने का विरोध करते हैं । तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में किसी भी पुरुष की यौनाकांक्षाओं की पूर्ति करना हर स्त्री का कर्तव्य माना जाता था, भले ही वह उसकी पत्नी न हो । बाद में आगे चलकर नचिकेता ने विवाह को एक अनिवार्य व्यवस्था के रूप में स्थापित किया । यद्यपि औपनिषदिक आख्यानों से प्रेरित होने वाले पश्चिमी दार्शनिकों ने नचिकेता के इस रीफ़ॉर्मेशन को स्वीकार नहीं किया और समाज से शोषण को समाप्त करने के लिए विवाह और परिवार को समाप्त कर दिए जाने की व्यवस्था को आवश्यक मानने लगे । भारत में उमर ख़ालिद, शेहला और कन्हैया जैसे वामपंथियों द्वारा क्रिटिक के नाम पर केवल विरोध किया जाता है, हर वर्तमान चीज का विरोध ...फिर वह साम्राज्यवाद हो या राष्ट्रवाद या फिर नचिकेता के खाँटी साम्यवादी विचार । भारत में हर साल आयोजित किया जाने वाला  “किस ऑफ़ लव” आंदोलन एक ऐसे क्रिटिक का प्रतीक है जिसमें निगेटिविज़्म के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ।  

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