शनिवार, 23 मई 2020

कितनी सियासत

1-  सिलसिला-ए- सियासत...

कोरोना पर सियासत
लॉकडाउन पर सियासत 
रेल पर सियासत
मज़दूर पर सियासत
पैदल चलते लोगों पर सियासत
भूख पर सियासत
दर्द पर सियासत
लाश पर सियासत
भ्रष्टाचार छिपाने पर सियासत
झूठ पर सियासत
सच पर
कभी कोई सियासत नहीं होती अब ।

भूखे लोग
लाठियाँ खाते हैं
पथ से नहीं...
कुपथ से होते हुए यात्रा करते हैं  
सड़कों से नहीं...
नदियों और जंगलों को पार करते
खेतों की मेड़ों से होते हुये
अपने गाँव जाते हैं । 
मंजिल
सैकड़ों मील दूर है अभी
पता नहीं
तुम्हारे ये संसाधन
फिर कब काम आयेंगे ?

हमने तो देखी है बहुत
बिखरी हुई बीट
कबूतरों की
वीरान महलों के
कंगूरों पर ।

2-  बहुत बड़ी ख़्वाहिश...

बड़ी उम्मीद थी 
कि मिलेगी रोटी
भरता रहेगा पेट
चलती रहेंगी साँसें
बस
यही सोचकर गया था
गया से गुजरात
गयादीन ।
पहुँचते ही जुजरात  
हो गया था लॉक डाउन
बिना काम किए
बिना रोटी खाए
जैसे-तैसे  
वापस आ गया गयादीन
गँवाकर
पास के सारे पैसे
जो दिये थे
पत्नी ने
जाते समय परदेस
जोड़-जोड़ कर
एक-एक पाई ।

कान पकड़कर
कसम खाता है गयादीन
अब कभी नहीं जायेगा परदेस
नहीं करेगा रोटी की ख़्वाहिश  
गला भर आता है
गयादीन का
चेहरे पर छा गया उसका दर्द
उतर गया है मेरे सीने में
मैं
बागी हो जाना चाहता हूँ
आज फिर एक बार । 

मुझे पता है
अब लिखी जायेंगी कहानियाँ
बनायी जायेंगी फ़िल्में
हर कोई होगा मालामाल
फ़ाइनेंसर, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, एक्टर...
बस
नहीं होगा इस सूची में
नाम
गयादीन का ।
मुझे पता है  
अब फिर शुरू होगी सियासत
गयादीन पर
जिससे नहीं है कोई मतलब
घर वापस लौटे
भूखे गयादीन को ।
गयादीन का दोष
बस इतना ही है
कि जन्म लिया है उसने भी
अमीरों की देखा देखी
नहीं पता था
कि यह नकल
बहुत भारी पड़ेगी
उसकी ज़िंदगी पर ।  

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