गुरुवार, 21 मई 2020

तत्वज्ञान विद कोरोना...


भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश यानी पुराने नक्शे के हिसाब से ब्रिटिश इण्डिया के लोग अभ्यास के बहुत अभ्यस्त होते हैं यानी बेचारे अभ्यास के मारे होते हैं । दो साल पहले लंदन से शिखा वार्ष्णेय ने यू.के. के कुछ रेलवे स्टेशन्स, प्लेटफ़ॉर्म्स, सार्वजनिक स्थानों और चौराहों के चित्र भेजे थे । तब मैंने टिप्पणी की थी – हम इतने साफ़-सुथरे स्थान देखने के अभ्यस्त नहीं हैं, हमें घुटन हो रही है, ज़ल्दी से गंदगी वाला कोई चित्र भेजो । जब तक हम प्लेटफ़ॉर्म पर गोबर, पान की पीक, केले के छिलके और कागज़ की प्लेट्स जैसी चीजें न देख लें तब तक हमें विश्वास ही नहीं होता कि हम प्लेटफ़ॉर्म पर हैं । संयोग से कुछ ही दिन पहले हमने नई दिल्ली स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म पर विचरते नंदी और उनके द्वारा यात्रियों को अर्पित गोबर का एक चित्र अपने कैमरे में चुरा लिया था । लंदनिया अनुभूति के बाद इण्डियाना अनुभूति के लिए ऐसे चित्र ख़ूब सुकून देते हैं ।     

मज़दूरों के लिए ट्रेन चलाये जाने की घोषणा से यह पुरानी बात आज मुझे याद आ गई । इमरान ख़ान को पता था कि यह पब्लिक है, नहीं मानती है... । इसलिए लॉकडाउन का कोई ख़ास मतलब है नहीं । जो संयमी हैं उन्हें लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों की क्या आवश्यकता, जो स्वेच्छाचारी हैं उनके लिए लॉकडाउन जैसे प्रतिबंधों की क्या आवश्यकता ? पूत कपूत तो का धन संचय, पूत सपूत तो का धन संचय ! इमरान ख़ान इण्डिया में क्रिकेट खेल-खेल कर तत्वज्ञानी हो गए लेकिन उसी इण्डिया में चाय बेच-बेच कर भी मोदी जी तत्वज्ञानी नहीं हो पाए । इण्डिया में लॉकडाउन होने पर भी लोग मर रहे हैं, पाकिस्तान में लॉकडाउन नहीं होने पर भी लोग मर रहे हैं । कोरोना यहाँ भी है, कोरोना वहाँ भी है । यही तत्वज्ञान है ।  

इधर इण्डिया में लॉकडाउन के दरम्यान भी सड़कों पर भीड़ अवतरित होती रही, पत्थर चलते रहे, लाठाचार्ज किए जाते रहे, थूका-थाकी होती रही, वी.आई.पी. शादियाँ होती रहीं और अंत में बेशुमार भीड़ उमड़ पड़ी ....शहर से अपने-अपने गाँव जाने के लिए । ट्रेन बंद हुई, चालू हुई ...फिर बंद हुई...अब फिर चालू हुई । रायता फैला, समेटा गया, फिर फैला, फिर समेटा गया, फिर तो फैलता ही गया ...फैलता ही गया ...। कोरोना अंकल सब कुछ देख रहे हैं...ख़ुश हो रहे हैं, उन्हें पता है कि जब तक मानुस स्वेच्छाचारी है तब तक कोई उन्हें हरा नहीं सकता ।

कोरोना के परदादा के परदादा यानी लकड़दादा ने 1918 में ही अपनी जमात के लोगों को बता दिया था कि हम लोग मानुस को अधिक समय तक नहीं डरवा सकेंगे । जिस दिन मानुस हमसे आँख मिलाना शुरू कर देगा उसी दिन हमें अपना माल-असबाब समेट कर जाना पड़ेगा ।

कोरोना देख रहा है –बाजार शुरू, उद्योग शुरू, दफ़्तर शुरू, ट्रेन शुरू, बस शुरू, उड़न खटोला भी शुरू होने वाला है । मानुस आँख दिखा रहा है, अब कोरोना अंकल को भागना होगा ...बिना खड्ग बिना ढाल, रे ज़िद्दी मानुस तूने कर दिया क़माल । बिना वैक्सीन बिना दवा ...कोरोना हारेगा ।   

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