दीनू जादो
ने ‘न’ में छिपे ‘हाँ’ के इशारे को समझ लिया है । जब यह घोषित किया गया कि कोरोना एक वैश्विक महामारी
है और फिर यह भी कहा गया कि इससे अधिक पैनिक होने की आवश्यकता नहीं है, बस थोड़ी सी सावधानी बरतने की आवश्यकता है, तो दीनू परेशान
हो गया । यह कैसी बात कि महामारी से पैनिक होने की आवश्यकता नहीं ? मौत से कोई क्यों न पैनिक हो. हर कोई परमयोगी तो नहीं हो सकता न !
खरी-खरी
कहने में दीनू को कोई झिझक नहीं होती, उसने प्रतिक्रिया दी –“चलाक
लोग सबको डराने के लिए बोलता है डरिहऽ झन, लोग सुनते ही डरने
लगता है । कवनो कारन त होगा नू डराय वाला तभिए नू नहीं डरने का सलाह देता है लो” ।
बिहियाँ
वाले बाबू सिंह कहते हैं – “अब त कुल दुनिअए जमाती हो गऽइल बिया, अतना
भीड़ ...तबलीगिए के काहें दोस दिहल जाव, रयतवा तो कुल बगराइए
गऽइल बा, अब केहू ना बची कोरोनवा से । गड़िया बन्न करे से त अवरियो मामला गड़बड़ाइल हऽ
। हे बाबा बरम देव अब का होई”।
हवाई
जहाज में चीन की यात्रा करने वाले व्यापारियों और घुमक्कड़ों ने पूरी दुनिया को
कोरोना-कोरोना कर दिया । दुनिया के ये समझदार लोग जाने-अनजाने सबको कोरोना बाँटते
रहे । कुछ लोगों ने अपने हिस्से का कोरोना अपने भाईजानों को भी दिया । इस्लाम
कितना फैला, पता नहीं, कोरोना तो जमकर फैला । फिर बारी आयी
मज़दूरों की । सैकड़ों कोस पैदल चल कर अपने-अपने गाँव पहुँचने के जंगी इरादे वाले कम
पढ़े-लिखे मज़दूरों की संख्या लाखों में है, ज़मातियों की
संख्या से बहुत ज़्यादा । कोरोना फैलने की सम्भावनाएँ बेतहाशा बढ़ती चली गईं । आवागमन
बंद कर दिया गया । चीन से कोरोना आयात करने वाले एलिट लोगों की हरकतों से खीझे हुए
पुलिस वाले मज़दूरों पर लाठियाँ बरसाते हैं । जो आदमी हवाई जहाज से नहीं उड़ सकता उसे
लाठियाँ खानी होती हैं । मज़दूर लाठियों की पुष्ट मार से घायल होते हैं, डरे हुये जो लोग कण्टेनर में छिपकर भागते हैं वे रोड एक्सीडेण्ट में मारे जाते
हैं ।
उद्योगों
को इकोनॉमी का चक्का घुमाने वाला मज़दूर चाहिए, मज़दूर को पटना जाने वाली ट्रेन
चाहिए, ट्रेन को सरकार की अनुमति चाहिए, अनुमति के लिए क्या चाहिये?
अधिकृत समझदारों
ने समझाने की कोशिश की –डरना मत, पैनिक होने की आवश्यकता नहीं
है… भारत, इज़्रेल, अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और चीन
जैसे बड़े-बड़े देश दवाइयाँ और वैक्सीन खोजने में जुट गए हैं । अगले एक-डेढ़ सालमें हमारे
पास सब कुछ होगा, दवा भी और वैक्सीन भी । दमे से हाँफ़ते हुये
शरीफ़ुद्दीन पूछना चाहते हैं – “तब तक ....”? किंतु वे किसी से
कुछ नहीं पूछते क्योंकि इसका ज़वाब उन्हें अच्छी तरह पता है ।
लॉक-डाउन
में दूध, खाने-पीने की चीजों और सब्जी बेचने वालों को छूट दी गयी है । सब्जी बेचने
वाले जोर-जोर से आवाज़ लगाकर सब्जी बेच रहे हैं, सब्जी वाले के
मुँह से ड्रॉपलेट्स की अनवरत शॉवरिंग में सब्जियाँ सराबोर हो रही हैं । इस बात की गारण्टी
कौन देगा कि इस शॉवरिंग में कोरोना नहीं है । जलेबी बेचने वाला बेहद मैले-कुचैले
और बद्बूदार नोट लेता है, चिल्हर वापस करता है, उन्हीं हाथों से उठा-उठाकर जलेबियाँ तौलता है फिर पुराने अख़बार के टुकड़े
में रखकर ग्राहक को दे देता है । हम कोरोना को नियंत्रित कर रहे हैं, स्टेटिसटिक्स को समृद्ध कर रहे हैं ।
मास्क
लगाओ... मास्क लगाओ... बड़े-बड़े अधिकारी भी अपनी ठोढ़ी पर मास्क लगाते हैं, तुम्हें
भी लगाना होगा, नहीं लगाओगे तो ज़ुर्माना देना होगा...
ज़ुर्माना लेकर कोरोना वापस चला जायेगा, फिर वह ज़ुर्माना देने
वाले को संक्रमित नहीं करेगा । ज़ुर्माना देने की दम हो तो इण्डिया की किसी भी ट्रेन
में यात्रा की जा सकती है ...कोरोना को यह बात मालुम हो गयी है ।
मिसिर जी
ने गौर किया कि कोरोना बहुत डरपोक है, डर के मारे वह यह भी भूल जाता
है कि मास्क लगाए हुए इंसान की खुली आँखों का रास्ता उसे आमंत्रित कर रहा है,
जिन्होंने अपने गले में मास्क लटकाया हुआ है उनकी नाक भी उसे
आमंत्रित कर रही है । मास्क कोरोना का सबसे बड़ा शत्रु है, कोरोना
उसे देखते ही सिर पर पैर रखकर भाग खड़ा होता है । कोरोना का यह गुप्त रहस्य मज़दूरों
को भी पता हो गया है, उन्होंने भी मास्क लगा लिया है ।
दिलदार नगर वाले शरीफ़ुद्दीन को दमा तो है ही पायरिया भी है, मास्क
लगाते ही उनका दम घुटने लगता है, इसलिए उन्होंने भी बड़े-बड़े
अधिकारियों की तरह मास्क को अपने गले से लटका लिया है । कोरोना बड़े-बड़े नेताओं और अधिकारियों
को पहचान गया है, उनके सात ख़ून माफ़, कोरोना
उन्हें संक्रमित नहीं करता । समरथ को नहिं दोस गुसाईं । दीनू ने अपनी नाक और मुँह
को अच्छी तरह ढका है लेकिन डुमराँव पहुँचने से पहले उसे धोना और धूप में सुखाना
सम्भव नहीं है । चिरईं चाचा का मास्क बहुत गंदा हो गया है, मोतीहारी
वाले मिसिर जी ने मास्क का सही स्तेमाल करने और धो कर धूप में सुखाने का तरीका
बताया था लेकिन नोयडा से भोजपुर की पदयात्रा में सारे नियम हवा हो गये । मास्क एक
रस्म बन गया जिसे कुछ श्रद्धालु जैसे-तैसे निभाने की कोशिश करते हैं । जो अधिक
पढ़े-लिखे हैं वे किसी रस्म-ओ-रिवाज़ को नहीं मानते, उनके लिए
सब छूट है । हाँ, रुकइया ने अपना पूरा चेहरा दुपट्टे से ढक
लिया है, बस केवल दो बड़ी-बड़ी आँखें भर चमकती हैं उसकी ।
पटरी पर
ट्रेन नहीं, सड़क पर बस नहीं, जेब में पैसा नहीं, पुलिस को रहम नहीं, भीड़ में फ़िज़िकल डिस्टेंस नहीं,
ज़िंदगी का कोई ठिकाना नहीं । बस दुनिया रेंग रही है ...हौले-हौले ।
भाग रही हैं तो केवल कुछ ख़बरें कि पैनिक मत होना, हम दवा और
वैक्सीन खोजकर ला रहे हैं तुम्हारे लिए ।
जब तक हनुमान
जी जड़ी-बूटी लेकर आएँ तब तक लक्ष्मण को प्रतीक्षा करनी ही होगी ।
फ़िज़िकल
डिस्टेंस बनाए रखने के लिए ट्रेन और बसें बंद कर दी गयी हैं । टीवी वाले ख़बर दे रहे
हैं कि कोरोना हार रहा है । यानी रोज हो रही मौतों को छोड़ दिया जाय तो समझ लो कि
हम जीत ही रहे हैं ।
दीनू सोच
रहा है, भीड़ में काहे का नियम क़ायदा और कौन सी डिस्टेंसिंग! चौबे चाचा ठीक ही कहते
हैं – “जब रायता बगराइए गया है त अब गड़िअए काहें नहीं चला देते हैं, गरीब-गुरबा अपना डेरा तो चहुँपता । पता नहीं पटना जाय वाला गड़िया कब खुली ।
ट्रक-मोटर वाला अंधाधुन्न भाड़ा वसूलता है, ट्रेनवा खुलता त
सस्ता नू पड़ता” ।
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