शनिवार, 12 अप्रैल 2025

तीन कवितायें

 १.     हिंदी के पाठक

 

गर्जना

समुद्र की लहरों की

कुछ भी नहीं है

जितनी कि है

समुद्र के भीतर

जिसे

सुन नहीं पाता कोई और...

जो

रहती है विकल

प्रतिध्वनि बन

व्याप्त हो जाने के लिए

दिग्-दिगंत में

पर

नहीं बन पाती प्रतिध्वनि

और रह जाती है बनकर

मात्र एक कविता

जिसे नहीं पढ़ना चाहते

आज के पढ़े-लिखे विद्वान ।

 

२.     बवंडर

 

दौड़ी आती हैं हवायें

चारो दिशाओं से

भरने भीतर का निर्वात

और तुम भर देना चाहते हो

अपने भीतर का निर्वात

चारो दिशाओं में !

सोचो!

क्यों नहीं हो पाता कालजयी

तुम्हारा लेखन !

 

कभी छूकर तो देखो

किसी और की नाड़ी

कभी पीकर तो देखो

समुद्र का खाराजल 

कभी करके तो देखो

व्यष्टि से समष्टि की यात्रा

तब...

होने लगेंगे कालजयी

तुम्हारे शब्द

तुम्हारे स्वर

तुम्हारे चित्र

और

हो उठेगी मुखरित

तुम्हारी लेखनी ।

 

३.     नारीवाद

 

जब हम स्वीकार करते हैं

कि जो मुझमें है वही सब में है

तब हम सहृदय होते हैं ।

जब हम स्वीकार करते हैं

कि जो सबमें है वही मुझमें भी है

तब हम सामान्य होते हैं

नहीं रह पाते विशिष्ट

और हो जाते हैं शांत

तब नहीं रहता

कोई वाद-परिवाद

किसी से भी ।

 

नहीं कर सकता कोई

अपने निर्वात को व्यापक

क्योंकि व्यापक आकाश में

नहीं होता कोई शून्य

बहाँ होता है

हाइड्रोजन और हीलियम का प्लाज़्मा

इलेक्ट्रो-मैग्नेटिक रेडिएशन

कॉस्मिक किरणें

न्यूट्रिनोज़

मैग्नेटिक फ़ील्ड

और बैरियोनिक मैटर

...इस भीड़ में कहाँ भर सकोगे

अपने भीतर का निर्वात !

किंतु...

भर सकते हो

जग की पीड़ा

अपने भीतर के निर्वात में

और तब

व्याप्त हो जायेगा

संवेदना का एक व्यापक संसार

भीतर से बाहर तक ।

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 13 अप्रैल 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.