खोता जा रहा है हिमालय
सिकुड़ते जा रहे हैं हिमनद
बंदी हो गयी है वर्षा
ऋतुविपर्यय के व्यूह में ।
प्रकृतिद्वेषियों,
प्रवासियों और घुसपैठियों ने
हिमालय से हिमालय को छीन लिया है
और दे दिये हैं उसे
उच्च अट्टालिकाओं वाले भवन
और भूस्खलन ।
आये दिन
फटने लगे हैं कुपित मेघ
विचलित होने लगी हैं नदियाँ
अपने मार्ग से
यह देवभूमि तो नहीं लगती!
जब मुझे
हिमालय में हिमालय को खोजना पड़ता है
तो मिलता है
पञ्जाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तरप्रदेश...
हिमालय में मिलते हैं
बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये भी ।
हिमालय की नयी पीढ़ी
अब और नहीं रहना चाहती देवभूमि में
किंतु रहना चाहते हैं वहाँ
बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठिये ।
हिमालय के सिड्डू अब आसानी से नहीं मिलते
मिलते हैं
चाऊमीन, नूडल्स, पिज्जा और सैंडविच ।
हिमालय में
भाँगड़ा है
दारू है
जहाँ-तहाँ बिखरी हुयी काँच की टूटी हुयी
खाली बोतले हैं
जिनके टुकड़े बिंधते जा रहे हैं
मेरे मस्तिष्क में ।
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