बुधवार, 23 अप्रैल 2025

साम्यवाद-प्रतिसाम्यवाद

बहुत बजा ली ढपली

बहुत गा लिये क्रांतिगीत

वही घिसे-पिटे

मुड़े-तुड़े

कि बंदूक से निकलेगा न्याय ।

लेनिन ने कहा

स्टालिन ने कहा

बैलेट से नहीं

बुलेट से निकलेगा न्याय ।

मरवा डाले लाखों लोग

लेनिन ने... स्टालिन ने

पर रुका नहीं अन्याय

रुका नहीं शोषण

फिर एक दिन टूट कर

बिखर गया सोवियत संघ ।

 

युद्ध रोकने के लिये अंतिम युद्ध

शोषण रोकने के लिये अंतिम शोषण

अन्याय रोकने के लिए अंतिम अन्याय

यही तो करते रहे न! अब तक ।

 

युद्ध तो आज भी हो रहे हैं

शोषण तो आज भी हो रहा है

अन्याय तो आज भी हो रहा है

नहीं रुका कुछ भी 

नहीं... कुछ भी नहीं ...

पर मैंने भी अब सोच लिया है

नहीं सुनूँगा तुम्हारी कोई बात

फेक दूँगा ढपली

नहीं करूँगा लाल सलाम

करूँगा

तो केवल जय श्री राम !

 

हमारे पास अपने आदर्श हैं

हमारे पास अपने समाधान हैं

हमारे पास अपने विश्वनायक हैं

अब नहीं चाहिये किसी वंचित से

उसकी वैचारिक कथरी उधार ।

और हाँ ! अब आज से मैं कामरेड नहीं हूँ ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.