मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

प्रकट से अप्रकट की ओर, A journey from gross to subtle

- आज की पीढ़ी ने नहीं देखे चाबी वाले टेलीफ़ोन और घड़ी, ट्रांजिस्टर और रेडियो, ऊपर से धुआँ और नीचे से भाप छोड़ती छुक-छुक रेलगाड़ी, सिचाईं के लिये बैलों से खीचे जाने वाले पुर, …और भी बहुत कुछ । ये सब बीते युग की कहानियाँ बन चुकी हैं । कल जो था वह आज नहीं है, आज जो है वह आने वाले कल नहीं रहेगा ।

- यह एक अनवरत यात्रा है, …चमत्कारों की यात्रा ...जो एक दिन अदृश्य होकर भी अपने अस्तित्व के साथ हमसे जुड़ी रहेगी । विश्वास नहीं होता न!
- हम सूक्ष्म शक्तियों के स्वामी बनते जा रहे हैं । एक दिन रिमोट कंट्रोल नहीं होगा पर कंट्रोल होगा, एटीएम कार्ड नहीं होगा पर मुद्रा का आदान-प्रदान होगा, आपके हस्ताक्षर और पासवर्ड नहीं होंगे पर आपकी पहचान होगी और ताले आपकी इच्छा से संचालित होंगे । सुरक्षा के लिये अदृश्य लक्ष्मण रेखायें होंगी । आपके घर में दिखायी देने वाली बहुत सी चीजें सूक्ष्म होते-होते एक दिन अदृश्य हो जायेंगी, …पर वे अपना कार्य करती रहेंगी ।
- जो प्रकट अस्तित्ववान है वह अप्रकट अस्तित्ववान हो जायेगा ...प्राचीन ऋषियों के आशीर्वाद, वरदान और श्राप की तरह ।
यह भी अविश्वसनीय सा लगता है, पर एक दिन आप देखेंगे कि मंत्र पढ़ते ही महासंहारक आयुध अग्निवर्षा करने लगेंगे, …और इस तरह स्थूल आयुध नहीं बल्कि सूक्ष्म आयुध इस स्थूल जगत को समाप्त कर देगें ।
- प्रकृति की व्यवस्था के अनुसार समीकरण तो वही होगा,  E = mc2, पर उसे लिखने की दिशा वही नहीं होगी, हमारी सारी गतिविधियाँ उसे प्रतिलोम दिशा mc2 = E की ओर ले जा रही हैं ।

- हम आज भी विद्युत-चुम्बकीय सूक्ष्म तरंगों के महासमुद्र में अहर्निश डूबे हुये हैं । ये तरंगें बढ़ती ही जा रही हैं, …हम फिर भी चमत्कारों और शक्तिसम्पन्न होने का मोह छोड़ नहीं पा रहे हैं ।
- ऊर्जा की शक्ति हर किसी को आकर्षित करती रही है । यह आकर्षण युद्ध को आमंत्रित करता है ।
- दशकों से मध्यएशिया के देश नरसंहार और यौनदुष्कर्म से पीड़ित रहे हैं, आज भी हैं । हर कोई शक्ति और अधिकार से सम्पन्न होने की दौड़ में सम्मिलित हो चुका है । ट्रम्प को पूरे विश्व की हर मूल्यवान और उपयोगी चीज पर नियंत्रण चाहिये । पाकिस्तानियों को पूरे विश्व पर शरीया का साया चाहिये । वामपंथियों को एक काल्पनिक विश्व-व्यवस्था चाहिये जिस पर उन्हीं का पूर्ण अधिकार हो ।
- इस बीच भारत में, एक ओर न्यायमूर्ति अपने कर्मप्रभाव से सम्मानशून्य होने की प्रतिस्पर्धा में लगे रहे तो दूसरी ओर सात वामपंथी विदेश जाकर भारत की सत्ता को बेचने की जुगाड़ में लगे रहे ।
- एक अदृश्य सत्ता बड़ी सावधानी के साथ यह सब देख रही है, कर्मों के सूक्ष्म अभिलेख तैयार होते जा रहे हैं ...इधर षष्ठी के भिनसारे सोनपुर में कटि से ऊपर तक गंगाजी के शीतल जल में निमज्जित सूर्योदय की प्रतीक्षा करती स्त्रियों के समूह यह आश्वासन दे रहे हैं कि भारत अभी भी अदृश्य सत्ता को ही जगत का आधार मानता है ।
- उधर हिमालय में विचरण करने वाले मोतीहारी वाले मिसिर जी षष्ठी महापर्व के अनुष्ठानों, गीतों और दृश्यों को स्मरण कर स्वयं पर नियंत्रण खो उठते हैं और उनके नेत्रों से गंगा-जमुना उमड़ पड़ती हैं ।

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