मंगलवार, 21 अक्टूबर 2025

न्याय

 

सर्वशक्तिमान को

क्यों होनी चाहिये कोई आवश्यकता

स्वयं के देखभाल की !

सर्वशक्तिमान है

तो क्या करने आया था पाषाणमूर्ति में

बना रहता सर्वशक्तिमान अनंत में !

इतना अशक्त कैसे हो गया कि अपनी ही

खंडितमूर्ति को भी नहीं कर सका

पुनः अखंड !  

....विचार किया बुद्ध के अनुगामी ने

....मंथन किया बाबा साहेब के अनुचर ने

....निर्णय किया संविधान के पुजारी ने

फिर भगा दिया

न्यायमंदिर में आये

विष्णुमंदिर के पुजारी को  

देकर खण्डितन्याय

कि जाकर कहो विष्णु से

वही करेंगे समाधान ।

महान हो गये न्यायमूर्ति

महान हो गये संविधान के पुजारी

स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा

उनका नाम

घर-घर में लगेंगे उनके चित्र

चौराहों पर लगेंगी उनकी पाषाणमूर्तियाँ

जैसी लगी हैं

बाबा साहेब की

भगवान बुद्ध की ।

किंतु समझ नहीं सका

एक वृद्ध अधिवक्ता

जिसने उछाल दी एक पादुका

न्यायमूर्ति की ओर

खंडितन्याय के विरोध में ।

दंड मिला अधिवक्ता को भी

छीनकर उसके

व्यावसायिक अधिकार

न्याय हो गया धन्य ।

सबने देखा, सुना, संदेश पाया

कि गुरु है पाषाण

अपेक्षाकृत स्थायी भी

कि लघु है पत्र

अपेक्षाकृत अस्थायी भी । 

पाषाण में विष्णु है

पत्र में संविधान है ।

क्षरित हो सकता है पाषाण

जीर्ण-शीर्ण हो सकता है पत्र

जिसमें लिखा है संविधान ।

अब नहीं करेगा कोई संरक्षित

किसी भौतिक मूर्ति को

और

संविधान की भौतिक प्रतियों को ।

अब नहीं रहेगी आवश्यकता

पुरातात्विक महत्व की भी

...संदेश जो मिल गया है

न्यायमूर्ति जी का ।

और तुम

न्यायमूर्ति जी को मत दिखाना

लोकमत का यह पत्रकाव्य  

नहीं तो मुझे भी मिल जायेगा

कोई खंडितन्याय

जीवन भर का कारावास

या मृत्युदंड ।  

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