रविवार, 10 अगस्त 2025

युद्ध, इतिहास पुनर्लेखन और विपक्षी धर्म

     टैरिफ़-युद्ध

क्या सचमुच भारत सरकार अत्याचारी ट्रम्प के आगे घुटने टेकने के लिये तैयार हो रही है ? संचार माध्यमों पर कुछ इसी तरह की चर्चायें होने लगी हैं । यदि ऐसा होता है तो यह स्वीकार्य नहीं है । हम भारत को अमेरिकी अन्याय के सामने झुकते हुये देखने के लिये तैयार नहीं हैं ।

व्यक्तिगतरूप से मैंने अमेरिका को कभी भारत का हितैषी नहीं माना, उसकी नीतियाँ स्वार्थों और विश्वासघातों से भरी हुयी रही हैं । डोनाल्ड ट्रम्प का टैरिफ़-युद्ध उसके महाबली होने की घोषणा करता है । वह एक ओर तो बलपूर्वक विश्व भर का नियंत्रक बनना चाहता है तो दूसरी ओर विश्वशांति का पुरस्कार भी झपटना चाहता है ।

टैरिफ़-युद्ध में उसने भारत से आने वाली औषधियों जैसे अपने हितों के लिये अतिमहत्वपूर्ण चीजों को टैरिफ़ से मुक्त रखा है जबकि टैरिफ़ केवल उन्हीं चीजों पर लगाया है जो अमेरिका के लिये अतिमहत्वपूर्ण नहीं हैं । ट्रम्प ने भारत की अर्थव्यवस्था को नष्ट कर देने की घोषणा कर दी है । यह सम्भव नहीं है, भारत को कुछ क्षति होगी पर ट्रम्प ईश्वर नहीं है ...और न भारत का भाग्यविधाता ।

भारत की अर्थव्यवस्था छिन्न-भिन्न होगी या नहीं यह इस पर निर्भर करता है कि भारत के उद्योगपति और व्यापारी किस पथ पर जाना चाहेंगे ! दो ही पथ हैं या तो ट्रम्प के आगे नतमस्तक होकर भारत से निर्यात होने वाली सामग्रियों पर अमेरिका में लगने वाले टैक्स की भरपायी भारतीय व्यापारी मूल्य में कटौती करके करें या फिर विश्व के अन्य देशों में निर्यात की सम्भावनाओं पर शोध करें ।

विदित हुआ है कि अमेरिकी व्यापारियों ने टैरिफ़ की तुल्य राशि की कटौती वस्तु के मूल्य में से करने की माँग कर दी है । इसका अर्थ यह हुआ कि टैरिफ़ का जो भुगतान अमेरिकी उपभोक्ताओं को करना चाहिये वह भारतीय व्यापारियों के सिर पर डाले जाने की तैयारी हो रही है । ऐसी स्थिति में टैरिफ़ का भार भारत पर पड़ेगा । हम सरकार के साथ हैं पर अमेरिकी व्यापारियों की इस बरजोरी के आगे झुकने के लिये कदापि तैयार नहीं हैं । हमारे पास विकल्प हैं, हमें आगे बढ़ना ही होगा ।

 

*कौन है सच्चे इतिहास से उद्विग्न*

वे सभी अतिविद्वान उद्विग्न हैं जो भारत के छिपे हुये शत्रु और विदेशियों के चाटुकार हैं ! जिनका वर्चस्व रहा है अभी तक ...और जो भारत से भारतीयता और भारतीय संस्कृति को जड़ से उखाड़ फेकने के लिये अहर्निश कटिबद्ध रहते हैं ।

इतिहासकी व्याख्या करते हुये इग्नू के पूर्व कुलपति रवींद्र कहते हैं - इतिहास तथ्यनहीं होता है, वह एक घटनाहै जिसकी व्याख्या अपने-अपने तरीके से की जा सकती है। अर्थात् भारत में आने वाले विदेशियों ने जो कुछ किया वे सब घटनायेंथीं जिनकी लोगों ने अपने-अपने तरीके, अपनी-अपनी समझ और अपने-अपने उद्देश्यों से व्याख्यायें कीं जिससे इतिहासबना । अरब, मुगल, पर्शियन, तुर्क आदि के द्वारा की गयीं घटनाओं की व्याख्याओं को स्वीकार करना या न करना पाठक की इच्छा पर निर्भर है पर पाठ्यक्रम से इन्हें हटा देना या इन्हें आक्रांता और लुटेरा बताना न्यायसंगत नहीं है ।

आप कहते हैं कि उन्होंने लूटपाट की, यौनदुष्कर्म किये, नरसंहार किये, यह आपकी व्याख्या है, मेरी नहीं । मैं कहता हूँ उन्होंने कुछ नहीं किया, उन्होंने भारत को समृद्ध करने में अपना योगदान किया । मैं पूछता हूँ क्या भारत के देशी राजाओं-महाराजाओं ने युद्ध में नरसंहार नहीं किये, लूट-पाट नहीं की, यौनदुष्कर्म नहीं किये ?

इग्नू के पूर्व कुलपति को पाकर इग्नू धन्य हो गया, भारत धन्य हो गया, …भारत की सभ्यता, संस्कृति और इतिहास धन्य हो गया । ऐसे अतिविद्वानों का समाज या किसी शिक्षा केंद्र में क्या स्थान होना चाहिये, यह सुनिश्चित करने का काम तो सरकारों का है पर वे करेंगी नहीं अतः अब भारत की जनता को सुनिश्चित करना चाहिये ।

सत्य हिंदीके अतिविद्वान आशुतोष ने इतिहास परिमार्जन पर आदेश दिया है कि इतिहास में संतुलन बनाइये, ऐसा नहीं लगना चाहिये कि विदेशी शासकों को आक्रामक और शोषक प्रमाणित कर दिया जाय और भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब को कोई क्षति हो या भारत में धार्मिक विद्वेष उत्पन्न हो, यह उचित नहीं होगा। अर्थात् यदि विदेशी मुस्लिम शासकों की बुराइयाँ लिखना चाहते हैं तो हिंदू राजाओं की भी बुराइयाँ लिखिये । यदि हिंदू राजाओं की अच्छाइयाँ लिखना चाहते हैं तो विदेशी मुस्लिम शासकों की भी अच्छाइयाँ लिखिये ताकि इयिहास में एक संतुलन बना रहे । अर्थात् इतिहास सत्य न हो कर संतुलन का उपकरण हो गया, संतुलन बनाइये, कुछ काट-छाँट करिये, कुछ जोड़िये ...। यही सत्य है, यही विद्वता है, यही इतिहास है ।

*विपक्ष का धर्म और दायित्व*

विपक्ष का धर्म राष्ट्रहित में सत्ता के साथ खड़े होना नहीं अपितु हर अनुकूल-प्रतिकूल स्थिति में सत्ता को उखाड़ फेकना और स्वयं को सत्ता में युगों-युगों के लिये स्थापित करना है ।

विपक्ष का दायित्व सत्ता के कार्यों की समालोचना नहीं अपितु कटु-आलोचना है इसलिये विपक्ष का तो काम ही है प्रश्न पूछना । प्रश्न तो उठेंगे, और सत्ता को उनके उत्तर भी देने ही होंगे । सत्ता भाग नहीं सकती ।

विपक्ष द्वारा सत्ता से पूछे जाने वाले प्रश्न राष्ट्रहित में होते हैं या मतदाताओं को भ्रमित कर सत्ता छीनने के लिये ! प्रश्नों का उद्देश्य क्या हो ? सत्ता छीनना या राष्ट्रहित में सत्ता को सहयोग करना ।

सहयोग करके तो वे कभी सत्ता के पास नहीं आ सकेंगे (स्वस्थ राजनीति की आदर्श स्थापना भले ही हो जाय) इसलिये सत्ता को उख़ाड़ फेकने के लिये उनकी सार्री उठापटक हुआ करती है । अमर्यादित शब्द, असभ्य आचरण और चीखना-चिल्लाना यही सब देखती है नयी पीढ़ी और इसे ही राजनीति समझने लगी है । लालूपुत्र हों, सोनियापुत्र हों या उद्धवपुत्र ...यह पीढ़ी यही सब देख-सुनकर बड़ी हुयी है और अब उसी का पालन कर रही है ।

इस विषाक्त वातावरण में विपक्ष के कुछ सुलझे हुये सदस्यों ने सैन्यकार्यवाही सिंदूर के पक्ष में विभिन्न देशों में जाकर भारत का जो पक्ष रखा वह एक शीतल बयार की अनुभूति देने वाला है और एक आशा जगाने वाला भी ...कि अभी सब कुछ समाप्त नहीं हुआ है ।

रविवार, 13 जुलाई 2025

दो कवितायें समसामयिक

 १. पहचान-क्रांति


सावन के महीने में
शिवमंदिर के सामने दमोह में
मांस की दुकान खोलने का विरोध करने पर
कार से कुचल कर मार डाला
अकील ने राकेश को ।

सावन के महीने में
दुकानदार ने
फलों के रस में थूका 
फिर ग्राहक को दे दिया ।

सावन के महीने में
हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर खोले
उन्होंने अपने ढाबे
छिपाकर अपनी पहचान
बाँधकर हाथ में कलावा
लगाकर माथे पर तिलक
....यही तो अल-तकिया है
जो तुम्हें भोगना ही होगा ।

सावन के महीने में
योगी बाबा ने कहा
उजागर करनी होगी
अपनी सही पहचान
सुनकर
कूद पड़े धर्मनिरपेक्षवादी
कहने लगे
बाबा स्वतंत्रता का शत्रु है
समाज को बाँटता है
भाईचारे को समाप्त करता है
बाबा हटाओ, हमें मुख्यमंत्री वनाओ ! 

२.
छुआछूत-क्रांति

वरदान को अभिषाप मान बैठे
और अभिषाप को वरदान 
तुमने ब्राह्मणों को कोसा
मनुस्मृति को जलाया
सनातन धर्म को गालियाँ दीं
...कि इन्होंने बाँट दिया समाज ।
तुमने एक क्रांतिपथ बनाया
छुआछूत मिटाया ।
जो लोटा-डोर लेकर चला करते थे
सत्तू भी घर से ले जाया करते थे 
वे होटेल में भोजन करने लगे
जन्मदिन पर
एक-दूसरे का जूठा केक खाने लगे
एक साथ बैठने-सोने लगे
छुआछूत मिट गया
पर समाज में द्वेष बढ़ता ही रहा
संक्रामक रोग भी बढ़ते ही गये ।
लोग आधुनिक हो गये थे
इसलिये हर बात की उपेक्षा करते रहे 
फिर एक दिन आया कोरोना
उसने सिखाया
जीना है
तो एक-दूसरे से छह हाथ दूर रहो
होटेल से दूर रहो
बाजार के भोजन से दूर रहो
और
सबसे बड़ी सीख यह, कि
छुआछूत को सम्मान देते चलो ।

कोरोना की सीख सबने मानी
उन सामाजिक क्रांतिकारियों ने भी
जो नहीं मानते थे कुछ भी ।
फिर एक दिन कोरोना चला गया
हमने भी उसकी सीख को भुला दिया
अब एक बार फिर
आ गये कुछ लोग
देने हमें नयी सीख
बेचते हुये थूकभावित 
खाद्य-पेय पदार्थ ।
तुम उनका विरोध करते हो
कोरोना का विरोध क्यों नहीं किया ?
शल्यकक्ष में कभी
ओटी कल्चर का विरोध क्यों नहीं किया ?
हम जानते हैं
तुम नहीं सुधरोगे 
जब तक कोड़ा न पड़े कोरोना का
तुम आधुनिक बने रहोगे
पत्थर से सिर टकराते रहोगे  ।

आओ! पुरानी पगडंडियाँ खोजें
उन्हें फिर से व्यवहारयोग्य बनायें ।

शनिवार, 12 जुलाई 2025

प्रगतिशीलता

बौद्धिक मोलस्काओ !

आओ, पट खोलो, बाहर झाँको

धूप को अत्याचारी कहकर

कब तक छिपे रहोगे 

अँधेरों के गले

कब तक चिपके रहोगे

दुनिया मार्क्स से पहले भी थी

आज भी है, आगे भी रहेगी ।

आज कार्ल मार्क्स नहीं हैं,

उनके गुरु फ़्रेडरिक हेगेल नहीं हैं

लेनिन, स्टालिन और माओजेदांग भी नहीं हैं

पर तुम हो, हम हैं ...और हैं ऊबड़-खाबड़ पथ ।

दशरथ माँझी ने चीर कर पर्वत का वक्ष

बना दिया सुपथ

और मड़ियम हिड़मा ने

ले लिये प्राण

न जाने कितने निर्दोषों के

यह कैसी प्रगतिशीलता है!

यह कैसी क्रांति है!

जो पथ नहीं बनाती, बस प्राण लेती है । 

 

स्वतंत्रता कितनी स्वतंत्र

             स्वतंत्रता जब देश की शांति और सर्वहारा की प्रगति के लिये बाधक बन जाय तो ऐसी स्वतंत्रता पर कठोर अंकुश की आवश्यकता होती है अन्यथा उसके कारण होने वाले विप्लव और विध्वंस को रोका नहीं जा सकता । इसकी गम्भीरता को रेखांकित करता यह कथन विचारणीय है –

“अभिव्यक्ति को मर्यादित और अनुशासित होना ही चाहिये, स्वतंत्रता की रक्षा के लिये इन स्थितियों का होना अपरिहार्य है अन्यथा निरंकुश और स्वेच्छाचारी अभिव्यक्ति सुव्यवस्था और शांति के लिये अभिषाप हो जाती है । सत्ता और उसके तंत्र को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि नागरिकों की शांति भंग न हो और समाज बहुमुखी विकास की ओर निर्बाध अग्रसर होता रहे” । – मोतीहारी वाले मिसिर जी

प्रेम, छल और राक्षस

कुर्बानी के लिये लाये गये पशु से किये जाने वाले पारम्परिक प्रेम में कितना प्रेम है और कितना छल, यह जानना उस मानसिकता को समझने के लिये आवश्यक है जो उन्हें भारत से तो प्रेम करने के लिए प्रेरित करता है पर भारत माता की जय बोलने और भारतीय संस्कृति को धर्मविरुद्ध मानता है । यह वही मानसिकता है जो दुनिया भर में लूट-पाट, राज्यारोहण, अनधिकृत भूविस्तार और अतिक्रमण के लिये कुख्यात रही है । जिनके लिये संविधान से ऊपर अपने पंथिक विचार और भारत से ऊपर फ़िलिस्तीन एवं पाकिस्तान हैं, वे भारत के लिये कितना उत्सर्ग कर सकेंगे इसका अनुमान लगा सकना कठिन नहीं है ।

किसी के समीप आने के दो उद्देश्य हो सकते हैं – एक है भौतिक उपभोगिता का लक्ष्य और दूसरा है उत्सर्गमूलक प्रेम ।

शक, हूण, यवन से लेकर फिरंगियों और फिर तुर्कों, अरबों और मंगोलों तक हर कोई भारत के समीप आया, उनका लक्ष्य भारत से प्रेम करना नहीं प्रत्युत भारत की सम्पदा का उपभोग करना था । आज जो लोग प्रगतिवाद, धर्मनिरपेक्षता और आधुनिकता की आड़ में भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों और सभ्यता पर निरंतर प्रहार पर प्रहार करते जा रहे हैं वे भारत से कितना प्रेम करते हैं इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है । वास्तव में ये लोग उन तुर्कों, मंगोलों और यूरोपियंस से भी अधिक घातक और छली हैं जिन्होंने हमें पराधीन किया । वे सब शत्रु के रूप में आये, मित्र के रूप में नहीं । उन्होंने छल से आक्रमण तो किये पर मित्रता और प्रेम के मिथ्या प्रदर्शन नहीं किये । 

माइक लेकर चीखने वाले जो अतिबुद्धिजीवी और नेता भारतीय संस्कृति और सभ्यता का विरोध करते नहीं थकते और अरबी सभ्यता एवं चीनी सत्ता के प्रशंसक हैं वे भारत से कितना प्रेम कर सकते हैं, विचार करके देखियेगा ।

राक्षस के लक्षण – बहुलता (संख्यावृद्धि में क्षिप्रता एवं दक्षता), क्षिप्र उपस्थिति, रक्त एवं मांसप्रियता, रूपपरिवर्तन की क्षमता (Mutation), आक्रामकता, अवसरवादिता, विखण्डन (Division), विघटन (Disintegration), अंधकार प्रियता और छिपने में दक्षता आदि लक्षणों से राक्षस को पहचाना जा सकता है । इनमें विषाणु, जीवाणु, फंगस और रावण से लेकर हर विध्वंसक जीव को सम्मिलित किया जा सकता है ...तदैव पहचान होते ही उनसे अपनी अपनी सुरक्षा का उपाय भी कर लेना चाहिये ।

शनिवार, 14 जून 2025

आज की चौपाल चर्चा

पहलगाम आतंकवाद के विरुद्ध भारत की सैन्यकार्यवाही सिंदूर के बाद तुर्किए का पाकिस्तान को खुला समर्थन, भारत सरकार द्वारा तुर्की की कंपनी को भारत में विमान रखरखाव के अनुबंध को समाप्त कर देना, तुर्की की कंपनी के पक्ष में सरकारी आदेश के विरुद्ध मुंबई उच्चन्यायालय के निर्णय, अहमदाबाद में विमान दुर्घटना से ठीक पूर्व उसी कंपनी के कर्मचारियों द्वारा षड्यंत्रपूर्वक विमान की ईंधन प्रणाली को बंद कर देने की आशंका, विमान के पायलट द्वारा भेज गए संदेश का कोई प्रत्युत्तर न देने के साथ ही मुंबई उच्चन्यायालय के न्यायमूर्ति का वामपंथी इतिहास इस दुर्घटना के बारे में बहुत कुछ कहता है । इन सारी कड़ियों को आपस में जोड़ देने से कुछ बातें स्पष्ट हो जाती हैं कि

-           भारत के अंदर रहने वाले भारत के शत्रुओं की स्थिति बहुत प्रबल और प्रभावी है,

-           नेताओं, पत्रकारों, वकीलों और सेक्युलर चिंतकों को ही नहीं, न्यायमूर्तियों को भी भारत के विरुद्ध षड्यंत्रों में सम्मिलित करने में भारतविरोधियों को हर बार सफलता मिल जाना सरकार की पंगुता, विवशता, निर्बलता और कुव्यवस्था की ओर संकेत करता है,

-           भारत में सरकारों से अधिक शक्तिशाली, निरंकुश और स्वेच्छाचारी वह कोलेजियम व्यवस्था है जो सरकारों की असहमति और विरोध के बाद भी अयोग्य न्यायमूर्तियों की नियुक्तियाँ करने के लिये अपनी हठधर्मिता का पालन करती है,

-           तुर्किये की कम्पनी सेलेबी और एयर इंडिया के बीच हुये पूर्व अनुबंध को समाप्त करने के सरकार के निर्णय के विरुद्ध सेलेबी के पक्ष में निर्णय देने वाले न्यायमूर्ति सोमशेखर सुंदरसन की नियुक्ति का भी सरकार द्वारा विरोध किया गया था पर कोलेजियम प्रणाली की हठधर्मिता के आगे सरकार को झुकना पड़ा और सोमशेखर की नियुक्ति को स्वीकार करना पड़ा था ।

 

*भविष्यवाणी, पूर्वसूचना और धमकी* 

 

एक्स, इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक जैसे सामाजिक सूचना माध्यमों पर सक्रिय रहने वाले पटना निवासी वकील और पत्रकार *मोदस्सिर महमूद मुगल* के एक्स मंच पर अहमदावाद हवाई दुर्घटना से दो दिन पूर्व लोगों ने पढ़ा – *एक दो दिन में कुछ बड़ा हादसा होने वाला है जैसे कोई प्लेन हादसा, किसी राजनेता की हृदयविदारक मौत!*

हवाई दुर्घटना के बाद सूचना माध्यमों पर लोगों ने मोदस्सिर महमूद मुगल पर विधिक कार्यवाही करने की माँग की तो सेक्युलर चिंतक, फ़ैक्ट-चेकर्स और महमूद के समर्थक उसके बचाव में कूद पड़े । किसी ने कहा कि यह भविष्यवाणी तो किसी ज्योतिषी ने की थी इससे मुदस्सिर का नाम जोड़ना ठीक नहीं । किसी ने कहा कि मोदस्सिर ने “पाकिस्तान से आने वाली गर्म हवाओं में ग़ुरबत” की अनुभूति के बारे में टिप्पणी की थी जिसे किसी ने सम्पादित करके दुर्घटना की पूर्वसूचना में परिवर्तित कर दिया । कुल मिलाकर अपने नाम के साथ मुगल की पहचान जोड़ने वाला मोदस्सिर महमूद देशभक्त है इसलिये उस पर किसी विधिक कार्यवाही की कोई आवश्यकता नहीं है ।

ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी – “भारत सहित विश्व के कई देशों में हवाई दुर्घटनाओं की आशंकायें हैं”।

मुगल ने धमकी दी थी – “एक दो दिन में कुछ बड़ा हादसा होने वाला है जैसे कोई प्लेन हादसा, किसी राजनेता की हृदयविदारक मौत!”

 

वामपंथियो! भविष्यवाणी, पूर्वसूचना और धमकी की भाषा के अंतर को हम समझते हैं ।

 

मुस्लिमेतर समुदायों को अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये अपने आप से यह पूछना ही होगा कि –  

 

-       भारत की सनातन व्यवस्था के समर्थक हिंदुओं एवं मुसलमानों को एक मंच आने पर और इस्लामिक व्यवस्था के समर्थक हिंदुओं एवं मुसलमानों को एक दूसरे मंच पर जाने की आवश्यकता को स्वीकार करने में क्या अवरोध है?

-       यदि कोई अवरोध है तो क्या पाकिस्तान बनाने का औचित्य ही समाप्त नहीं हो जाता ?

-       भारत के इस अन्यायपूर्ण विभाजन को किसने और क्यों स्वीकार किया ?

-       वे कौन लोग थे जिन्होंने धार्मिक आधार पर हुये विभाजन के बाद भी पूर्ण विभाजन नहीं होने दिया और पाकिस्तान के समर्थन में मतदान करने वाले लोग विभाजन के बाद भी पाकिस्तान न जाकर भारत में ही बने रहे ?

-       पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिमबहुल देशों के मुस्लिम नागरिक अपना देश छोड़कर दूसरे अ-मुस्लिम देशों में शरण लेने के लिये क्यों लालायित रहते हैं ?

-       कोई मुस्लिम देश दूसरे देश से आये हुये मुसलमानों को शरण क्यों नहीं देना चाहता ?

-       किसी अ-मुस्लिम देश में शरण पाये मुसलमान कुछ समय बाद उस देश की व्यवस्था और विधि को बदलकर शरीया लागू करने के लिये हिंसा पर क्यों उतारू हो जाते हैं और क्यों यूरोपीय देशों की सरकारें भी शरणार्थियों के सामने पंगु हो जाया करती हैं?

 

*ब्रिटेन में ऐतिहासिक यौनशोषण*

ब्रिटेन में पाकिस्तान –

 

भारत में तो अजमेर-काँड जैसी घटनायें हो जाया करती हैं पर ब्रिटेन की चमक-दमक में सब कुछ चमकीला ही नहीं होता । रोचडेल का ग्रूमिंग-कांड वहाँ के उस ऐतिहासिक यौनशोषण को उजागर करता है जिसमें पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश नागरिकों द्वारा अवयस्क लड़कियों का वर्षों तक यौनशोषण किया जाता रहा । पीड़िताओं में वे किशोरियाँ ही अधिक हैं जो निर्धन या निर्बल पारिवारिक एवं सामाजिक पृष्ठभूमि से सम्बंधित हैं । पश्चिमी देशों में परिवार की संरचना भारत जैसी नहीं होती, सबकुछ शिथिल और बिखरा-बिखरा सा होता है । दुर्भाग्य से हम भारतीय भी अपनी समृद्ध और सुलझी हुयी विवाह एवं परिवार संरचना की परम्परा को छोड़कर आज पश्चिमी समाज की राह पर चल पड़े हैं, इसलिये हमें भी पश्चिमी देशों जैसी पारिवारिक शिथिलताओं, यौनशोषण और ड्रग्स की घटनाओं में फ़ँसते अपने नौनिहालों को देखने के लिये तैयार रहना चाहिये । 

नस्लीय तनाव से भय –

प्रशासनिक और सामाजिक दृष्टि से हताश करने वाली एक बहुत बुरी बात यह है कि ब्रिटेन की पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा वर्षों तक इन अपराधों की अनदेखी की जाती रही, उन्हें डर था कि अपराधियों की पाकिस्तानी मूल की पहचान उजागर करने से स्थानीय लोगों में नस्लीय तनाव बढ़ सकता है । क्या किसी देश को विदेशीमूल के प्रवासियों से इतना भयभीत होने की आवश्यकता है कि वह न्याय-व्यवस्था की ही उपेक्षा करने लग जाय ? यही प्रश्न भारत के संदर्भ में भी खड़ा होता है जहाँ बांग्लादेशियों, रोहिंग्यायों और पाकिस्तानी मुसलमानों के आगे भारत की शासनिक-प्रशासनिक व्यवस्थायें पानी भरती दिखायी देती हैं । मनुष्यता और नैतिक मूल्यों के स्तर पर पूरी दुनिया के विचारकों को ऐसे भय के विरुद्ध एक मंच पर आने की आवश्यकता है । मानवसभ्यता को बचाने के लिये भौगोलिक एवं राजनीतिक सीमाओं से उठकर सत्य के साथ सामने आना ही होगा ।

रोचडेल की एक पूर्व पुलिस अधिकारी और सचेतक मैगी ओलिवर ने पुलिस की जाँच प्रक्रिया पर प्रश्न खड़े किये और दृढ़तापूर्वक कहा कि अधिकारियों ने पीड़ितों की अनदेखी की और अपराधियों को बचाने के प्रयास किये । भारत में भी यही होता है, जहाँ अपराधियों के पक्ष में अधिकारियों, मध्यस्थों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, विचारकों, राजनीतिज्ञों, सम्प्रदाय-विशेषज्ञों, वकीलों और न्यायमूर्तियों की एक विशाल सेना खड़ी दिखायी देती है । भारत में अवैध घुसपैठियों के कूट आधारपत्र, ड्राइविंग लाइसेंस और राशनकार्ड आदि अभिलेख तैयार करने वाले लोग कौन हैं ?

वर्ष २०२४ में रोथरहम के ग्रूमिंग कांड में १४०० किशोरियों का यौनशोषण हुआ । प्रोफ़ेसर एलेक्सिस ने बताया कि पुलिस और सामाजिक कार्यकर्ता पीड़ितों को “वेश्या” या “जीवनशैली की पसंद” के रूप में देखते थे, जिसके कारण उनकी शिकायतों को गम्भीरता से नहीं लिया गया ।

 

ऑपरेशन लिटन –

वर्ष २०१५ में ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस ने अवस्यस्क बच्चियों और किशोरियों के यौनशोषण की जाँच की और ३७ लोगों पर आरोप लगाये । आरोपियों की जातीयता (नस्ल) की बात सामने आते ही ब्रिटेन में जातीयता (नस्ल) और अपराध के बीच के सम्बंधों पर एक तीखा वाद-विवाद होने लगा है । राष्ट्रीय पुलिस प्रमुख परिषद (NPPC) के २०२४ के आँकड़ों के अनुसार ग्रूमिंग-गैंग के सदस्यों में ब्रिटिश पाकिस्तानी मूल के लोग अनुपात से अधिक पाये गये । यद्यपि संलिप्तता की दृष्टि से यौनशोषण के कुल अपराधों में ८८% अपराधी श्वेत-ब्रिटिश और मात्र २% ही पाकिस्तानमूल के नागरिक थे, किंतु रोचडेल, रोथरहम और एलफ़ोर्ड जैसे नगरों में हुये उच्च और कुलीन वर्ग में यौनशोषण की घटनाओं में पाकिस्तानीमूल के अपराधियों की अधिकता ने इसे राजनीतिक और सामाजिक रूप से संवेदनशील बना दिया है ।

कुछ राष्ट्रवादी राजनेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे नस्लीय रंग देने के प्रयास किये हैं जिसे कई सेक्युलर और वामपंथी विचारक ख़तरनाक मानते हैं । जबकि कुछ लोग मानते हैं कि यह अपराध नस्ल से अधिक वर्ग और लैंगिक-भेदभाव से जुड़ा हुआ है क्योंकि पीड़ितायें निर्धन और निर्बल पृष्ठभूमि से थीं ।

यौनशोषण जैसे जघन्य अपराध के प्रति विचारकों के भिन्न-भिन्न दृष्टिकोणों से उनके उद्देश्यों और इस आपराधिक समस्या के समाधान के प्रति उनकी गम्भीरता का अनुमान लगाया जा सकता है, ठीक उसी तरह जैसे “लड़के हैं, लड़कों से गलती हो जाया करती है”।

मंगलवार, 10 जून 2025

दहेज का स्कूटर

सरकारी नौकरी मिलते ही संदीप के विवाह के लिये अचानक प्रस्ताव आने लगे तो पंडित रामदीन की प्रसन्नता का कोई पारावार न रहा । इसके ठीक विपरीत उनका बेटा संदीप प्रसन्न होने के स्थान पर उदास-उदास रहने लगा । जब भी वह अकेला होता तो एक ही बात सोचने लगता - सरकारी नौकरी के सामने मैं कितना बौना और तुच्छ हूँ । यह मेरा नहीं, मेरी नौकरी का मूल्यांकन है ।

जसवंतपुर के बी.एससी. पास संदीप एक निजी स्कूल में शिक्षक थे, जहाँ वेतन इतना कम मिला करता कि उतने में किसी न्यूनतम सदस्यों वाले परिवार का भरण-पोषण भी सम्भव नहीं था । इसी कारण उसके विवाह के लिये कभी कोई प्रस्ताव आया ही नहीं । हर किसी को सरकारी नौकरी वाला ही दुलहा चाहिये था ।

जब भरतपुर तहसील में चपरासी के लिये विज्ञापन निकला तो संदीप के घर का तापमान बढ़ गया । सब चाहते थे कि वह सरकारी नौकरी के लिये आवेदन करे । बड़े-बूढ़ों का मान रखने के लिये बी.एससी. पास युवक को चपरासी की नौकरी का आवेदन देने के लिये अपनी आत्मा को मार देना पड़ा । सच पूछो तो उस पर उदासी के घनघोर बादल तो उसी दिन से छाये हुये थे ।

तहसील में नौकरी लगते ही राजस्थान से लेकर उत्तरप्रदेश तक विवाहयोग्य कन्याओं के घरों में संदीप की चर्चायें होने लगीं । संदीप के घर वर-दिखुवा आने लगे और एक दिन आरा जिला की एक सुयोग्य कन्या के साथ संदीप कुमार तिवारी को टाँक दिया गया ।

पंडित रामदीन थोड़े सैद्धांतिक व्यक्ति थे, इसलिये दहेज माँगने के विरुद्ध थे, पर जब वधु के पिता ने स्वेच्छा से बजाज स्कूटर की चाबी वर के हाथ में थमा दी तो घर के बड़े-बूढ़ों ने इसे “हरि इच्छा” मानकर स्वीकार कर लिया । इस तरह तिवारी परिवार के लोगों ने पहली बार अपने दरवाजे पर एक स्कूटर को शोभायमान होते हुये देखा ।

दहेज का स्कूटर पाकर संदीप और भी उदास हो गया । उसके सामने दो गम्भीर समस्यायें थीं, पहली यह कि उसे स्कूटर चलाना नहीं आता था और इस आयु में वह ड्राइविंग सीखने के लिये तनिक भी उत्साहित नहीं था । दूसरी समस्या थी स्कूटर को जसवंतपुर से लेकर भरतपुर तक जाना ।

नई-नवेली पत्नी ने धीरे से प्रस्ताव रखा – “मुझे स्कूटर चलाना आता है, आपके साथ मैं लेकर चलूँ भरतपुर तक!”

संदीप ने ठीक कांग्रेस नेता उदित राज जैसा मुँह बनाकर पत्नी की ओर केवल देखा, कहा कुछ नहीं । पत्नी घबराकर चुप हो गयी । उदित राज के मुँह पर स्थायी भाव से रहने वाले घने बादलों में से किसी पत्रकार के लिये कुछ निकाल पाना दुष्कर होता है, यह तो अच्छा है कि नेताजी स्थायीभाव से अपने मस्तिष्क में बसा चुके आरोपों-प्रत्यारोपों और रोष को प्रकट करने के लिये सदा कटिबद्ध रहा करते हैं ।

अंत में हुआ यह कि संदीप चपरासी बिना स्कूटर के ही भरतपुर चले गये, नवेली पत्नी को उसका भाई विदा करवाकर आरा ले गया, और स्कूटर ने जसवंतपुर में “सार्वजनिक-वाहन” का पद प्राप्त किया ।

संदीप के चाचाओं और ताउओं के पुत्रगण स्कूटर का तीन साल तक तो जी भर उपभोग करते रहे पर सही देखभाल और सर्विसिंग के अभाव में स्कूटर ने एक दिन घुटने टेक दिये, ..ठीक वैसे ही जैसे ओवरलोडेड बैलगाड़ी को खींचने वाले बैल चढ़ाई आने पर घुटमों के बल बैठ जाया करते हैं ।

सालभर तक तो स्कूटर घर में खड़ा रहा फिर एक दिन पंडित रामदीन ने असमय ही वृद्ध हो चले स्कूटर को किसी तरह मैकेनिक के यहाँ पहुँचवा दिया । महीने भर बाद भी जब पंडित जी ने स्कूटर की सुध नहीं ली तो मैकेनिक ने संदेशा भिजवाया कि छह हजार देकर अपना स्कूटर ले जाओ ।

पंडित जी के पास इतने रुपये नहीं थे, बेटे से कैसे कहते! स्कूटर मैकेनिक के यहाँ ही खड़ा रहा । एक दिन जसवंतपुर के लोगों ने पंडित जी को बताया कि मैकेनिक ने उनका स्कूटर छह हजार में किसी को बेच दिया ।

आरा वाली बहुरिया ने सुना तो आकाश-पाताल एक कर दिया । दहेज का स्कूटर, न तो पाने वाले ने उपभोग किया और न उसकी पत्नी ने । किसी पत्नी के लिये इससे अधिक गहन दुःख की बात और क्या हो सकती थी! बात बड़े-बूढ़ों तक और फिर आरा तक पहुँची । आरा से उपाध्याय जी आये, घरेलू पंचायत बैठायी गयी । निर्णय हुआ कि तिवारी जी बहू को एक नया स्कूटर ख़रीदकर देंगे ।

सदा से विपन्न रहे तिवारी जी इतने पैसे कहाँ से लाते भला!

संदीप ने अपने दायित्व को समझा, पंचायत के निर्णय का सम्मान किया और खिन्न मन से एक नया स्कूटर खरीदने के लिये पिता जी को तुरंत पैसे थमा दिये । तिवारी जी ने भी नोटों की गड्डी तुरंत बहू के आगे बढ़ाकर स्त्रीधन के भार से मुक्ति पाते हुये कहा - अपनी रुचि का स्कूटर ले लेना”। बहू ने संतोष की साँस ली और रुपये लेकर रख लिये ।

आरा वाली बहू को पता था कि संदीप अपने पद को लेकर हीनभावना से ग्रस्त है और स्कूटर का उपभोग नहीं करेगा । व्यवहारकुशल बहू ने पूरे पैसे अपने पिता को थमा दिये ।

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मैकेनिक के यहाँ से छह हजार में स्कूटर ख़रीदकर शिवराम वाजपेयी प्रसन्न थे । पर यह प्रसन्नता अधिक समय तक नहीं रही । दहेज का स्कूटर यहाँ भी अपने रंग-ढंग दिखाने लगा । कुछ दिन जैसे-तैसे स्कूटर चलाने के बाद वाजपेयी जी ने भी उससे मुक्ति पाने में ही अपनी भलाई समझी । उन्हें ग्राहक खोजने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, पर अंततः दो हजार में एक ग्राहक पटा ही लिया ।

दहेज का स्कूटर काम वाली बाई की तरह एक घर से दूसरे-तीसरे-चौथे... घर में सुशोभित होता रहा । इस बीच रंग-रोगन कर उसके सौंदर्यीकरण का भी प्रयास किया गया पर स्कूटर को सद्गति नहीं मिल सकी ।

एक दिन वाजपेयी जी पास के एक गाँव में किसी काम से गये हुये थे । रास्ते में उन्होंने देखा, घुरऊ चौधरी एक जुगाड़ में गोबर की खाद लेकर खेतों की ओर जा रहे हैं । वाजपेयी जी को देखते ही चौधरी ने जुगाड़ रोक कर पायलागन किया । बात होने लगी तो होते-होते वाजपेयी ने पूछ दिया – “यह जुगाड़ कहाँ से लिया?”

चौधरी ने बताया – “लिया नहीं, बनवाया है । हरीराम कहीं से एक पुराना स्कूटर लाये थे । कुछ दिन पहले ही मैंने उनसे डेढ़ हजार में लेकर मैकेनिक के यहाँ से यह जुगाड़ बनवा लिया । इंजन पुराना है पर खेती-किसानी का काम चल जाता है”।

“पुराना स्कूटर” सुनते ही वाजपेयी के कान खड़े हुये । उन्होंने फ़्लेश-बैक में खँगालना प्रारम्भ किया तो पता चला कि यह तो वही दहेज वाला स्कूटर है, जसवंतपुर वाला । वाजपेयी मुस्कराये और आगे बढ़ लिये ।

!! हरि ॐ तत्सत् !!