बस्तर की अभिव्यक्ति -जैसे कोई झरना....
बुधवार, 19 अक्टूबर 2011
दीहें गारी ......
मैं ग्वालिनियाँ गाँव से आयी
अँचरा मे नेह छिपाके लायी.
जनिहें जो सखियाँ दीहें गारी...
'भोरी ! तोरी काहे को मति मारी' .
लुकत-छुपत तोरे नगर में आयी
भोली
भउजाई से ल
ड़ि
के आयी.
प्रेम समंदर भरिके लायी
अब तुम राखौ लाज कन्हायी.
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