शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

धड़कती है धारावी तो चहकती है अख्खा मुम्बई

इस बार मुम्बई प्रवास के अनंतर धारावी मेरा मुख्य लक्ष्य था। बरसते पानी में धारावी को अपनी दृष्टि से देखने का प्रयास किया है मैंने।

धारावी में पूरे भारत से आकर बसे हैं लोग जो धारावी की बज़बज़ाती बस्ती में

ज़िन्दगी को धकियाते हुये छोटे-छोटे तंग कमरों के कारखानों में काम करते हुये जीते रहते हैं।

उन कारखानों में

जिनके लिये कोई मानक तय नहीं किये जा सके अभी तक

और शायद तय किये भी नहीं जा सकेंगे कभी क्योंकि ग़रीबों के काम के लिये कोई मानक

नहीं बनाये जाने की परम्म्परा पूँजीवादी व्यवस्था की एक अपरिहार्य ज़रूरत है।  

 

स्लम के नाम पर धारावी की उपेक्षा नहीं की जा सकती क्योंकि मुम्बई की धड़कन का

एक पेसमेकर यहाँ भी लगा है।

पूरी धारावी एक कुटीर उद्योग है जिसके कारीगरों में शामिल हैं भारत के गरीब लोग ....

वे गरीब लोग जिन्होंने अपनी आँखों में सपने पाल कर रखे हुये हैं .....

पलते हुये सपने ....

कि उनकी ज़िन्दगी तो जैसे-तैसे गुज़र ही जायेगी पर अगली पीढ़ी की ज़िन्दगी बेहतर हो।

बस, इन्हीं सपनों के साथ धारावी धड़कती रहती है ....

और इसी धड़कन के साथ चहकती रहती है मुम्बई।

मुम्बई के मध्यम एवं उच्च मध्यम वर्ग के लोगों के लिये सदा सर्वदा बने रहने वाले आकर्षण के केन्द्रों की रौनक लिये

सभी रेलवे स्टेशंस के बाहर और फ़ुटपाथ पर लगी

अस्थाई दुकानों में सजे तरह-तरह के सामानों के निर्माताओं और विक्रेताओं की ज़िन्दगी को

आश्रय देने वाली धारावी की उपेक्षा कैसे की जा सकती है भला !

 

धारावी में गन्दगी है क्योंकि धारावी में ग़रीबी है।

धारावी में ग़रीबी है क्योंकि धारावी को उसके श्रम का उचित मूल्य नहीं मिलता।

गन्दगी, ग़रीबी और श्रम का शोषण इन तीनो का आपस में घनिष्ठ नाता है।

इस नाते को ख़त्म करने की कोशिशें न जाने कितने युगों से होती रही हैं।

इन कोशिशों को ज़ारी रखने वाले ग़रीबों के रहनुमाओं ने जन सेवा करते-करते

अपनी आलीशान कोठियाँ खड़ी  कर ली हैं।

ग़रीब ग़रीब बने रहते हैं ...ग़रीबों के उद्धारकर्ताओं का उद्धार होता रहता है।

पूरे विश्व में फैली धारावियों का एक सच है यह। एक ऐसा सच जो जीवित है ...

मरा नहीं अभी तक।

     हमने मुम्बई को जगमगाते और धारावी को बजबजाते हुये देखा है।

मुम्बई का एक पेसमेकर यहाँ भी है, इस पेसमकर के बिना

मुम्बई की जगमहाहट धुन्धली होजाने की पूरी-पूरी आशंकायें हैं। इसलिये मुम्बई जगमगाती

रहेगी और धारावी भी शायद यूँ ही .......

 

धारावी में रहनेवालों की बेहतरी के लिये मेरी शुभकामनायें !


धारावी में इम्ब्रॉयडरी का एक कमरे का कारखाना 
 

 

सीढ़ियों से शुरू होने वाले लटकते हुये घर


 

छोटे से कमरे का एक कारखाना जिसमें ज़री का काम करते हुये कामगार

का एक पूरा परिवार


 

रौशनी गलियों के सिर्फ़ छोरों पर ही अटकी हुयी है। भीतर जाने में रौशनी को भी डर लगता है

कैसे रहते होंगे लोग ?

 

 

ये भाग्यशाली हैं कि इनका घर न तो सीढ़ियों से शुरू होता और न लटकता हुआ है।

अलबत्ता, घर का कुछ सामान ज़रूर दीवारों के सहारे लटकते रहने को मज़बूर है।


 

यह कोई घर नहीं बल्कि एक गली है

 जिसके दोनों ओर बने हैं एक-एक कमरे वाले घर

जिनमें एक छोटी चारपाई डालने के बाद मुश्किल से कुछ ही जगह बच पाती है...

और इस जगह के काराण ही "लोग" नहीं बल्कि "चारपाई" आते-जाते लोगों से टकराने से बच जाती है।

 

 

यह भी किसी घर का दरवाज़ा नहीं बल्कि एक तंग गली है जिसमें से होकर 

थोड़ी सी सांस लेने के लिये बाहर आती कुछ ख़ातूनें।

दिन के वक़्त इतना अन्धेरा था कि फ़ोटो भी साफ नहीं आ सकी। तकनीकी सहयोग से फ़ोटो को ब्राइट करने की यथासम्भव कोशिश की गयी है।

 

घर का हर सदस्य कामगार है इसलिये गली सूनी है


 

भला हो सरकार का जिसने धारावी के लोगों के लिये मल विसर्जन की व्यवस्था उपलब्ध करवा दी है

 हम इसे 'सुविधा' नहीं कह पा रहे हैं इसलिये "व्यवस्था" कह रहे हैं.....

जो कितनी व्यवस्थित है

यह आप साफ़-साफ़ देख पा रहे हैं। यह तो आप हैं जो इस अव्यवस्था को देख पा रहे हैं वरना सरकार को यह सब कहाँ दिखाई देता है ? 

 

किसी गाँव से निकली थी ये ज़िन्दगी

लेकर अरमानों की पोटली

पोटली लूट ली गयी

और ज़िन्दगी यूँ बिखरती चली गयी।

( मुम्बई महानगर में एक धारावी ऐसी भी है जिसकी कराह मुम्बई की चकाचौंध में गुमशुदा की तरह ज़िन्दा तो रहती है पर कभी तलाशी नहीं जाती क्योंकि अभी तक कोई इश्तहार छापा ही नहीं गया ऐसा )

 

एक ज़रा से कमरे का छोटा सा क्लीनिक ....किराया है नौ हज़ार रुपये मासिक।

धारावी में यूनानी चिकित्सकों की भरमार है।

मैंने कुछ कुछ दवाख़ानों में जाकर हक़ीमों से मुलाकात की। वे एलोपैथिक दवाइयों से अपने मरीज़ों का इलाज़ करने के लिये बाध्य हैं । मैंने पूछा, ऐसा भला क्यों ?

ज़वाब में बताया गया कि लोग स्वस्थ्य होने के लिये ग़रीबी के कारण यूनानी दवाओं पर इतना ख़र्च करने को तैयार नहीं होते। सच तो यह है कि धारावी के ये कामगार स्वस्थ्य होना ही नहीं चाहते...वे तो बस ज़िन्दा भर रहना चाहते हैं ताकि हर अगली सुबह काम पर जा सकें। ग़रीबी ने सेहत को धता बता दी है और पैसे को गले लगा लिया है। ज़िन्दगी के मूल्य यहीं से शुरू होते हैं और यहीं ख़त्म भी।

कई बार तो लोग सेल्फ़ मेडीकेशन के ख़तरे भी उठा लेते हैं। ग़रीबी ने ज़िन्दगी के अपने पैमाने बना लिये हैं जो किसी सरकारी पैमाने 

या विश्व स्वास्थ्यसंगठन के पैमाने

या मानवाधिकार आयोग के पैमाने

को चिढ़ाते रहते हैं ।

एक युवा हक़ीम साहब ऐसे भी मिले जो मुसलमानों की तालीम के प्रति बेरुखी को महामारी के रूप में देखते हैं । वे किसी अंजुमन कमेटी से जुड़े ही सिर्फ़ इसलिये हैं कि अपनी क़ौम के लोगों को स्वास्थ्य और शिक्षा के प्रति जागरूक कर सकें। हक़ीम साहब को मेरी बहुत-बहुत शुभकामनायें इस नेक काम के लिये।       

 

धारावी में एक और "अ"सुलभ शौचालय


 

लोग ही नहीं

पूरी धारावी बीमार है...

और हमारी पूरी व्यवस्था भी ।

एक बाइक की लम्बाई के बराबर की चौड़ाई वाली क्लीनिक के बगल से एक सीढ़ी ऊपर वाले कमरे से लटकी हुई है जिसे धारावी में घर कहा जाता है।  

 

जरा सी जगह दिखी नहीं कि नई धारावी बसा लेते हैं लोग।

मलाड से सायन के बीच रेलवे लाइन के किनारे बसी एक धारावी।

6 टिप्‍पणियां:

  1. इन कोशिशों को ज़ारी रखने वाले ग़रीबों के रहनुमाओं ने जन सेवा करते-करते
    अपनी आलीशान कोठियाँ खड़ी कर ली हैं।
    ग़रीब ग़रीब बने रहते हैं ...ग़रीबों के उद्धारकर्ताओं का उद्धार होता रहता है।

    मन इतना विचलित हो गया है कि उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना नितांत असंभव हो गया है ! काश कोई जादू की छड़ी मिल जाये तो इन हालात बदल पायें ! डैनी बॉयल ने जब स्लम डॉग मिलियेनर बनाई थी तो सबने इस शीर्षक पर बड़ा कड़ा विरोध जताया था कि हमें 'कुत्ता' कह दिया लेकिन जो दृश्य आपके चित्र दिखा रहे हैं वे शायद कुत्तों के रहने के लिए भी उपयुक्त नहीं हैं फिर वहाँ तो इस देश का वह वर्ग रह रहा है जिसे हम देश की रीढ़ की हड्डी कह सकते हैं ! इतनी संवेदनशील पोस्ट के लिए आभार !

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  2. सच ही साधना जी! धारावी में मुझे उस दिन कुत्ते नहीं मिले थे। शायद उन्हें धारावी रास नहीं आयी होगी।

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  3. धड़कती है धारावी तो चहकती है अख्खा मुम्बई
    कहीं ज़िन्दगी जीने को नहीं तो कहीं रौशनी से नहाती है मुम्बई .....


    एक संवेदनशील व्यक्ति की नज़र हमेशा ऐसी ही जगहों पर जाती है .....!

    ..........................
    ................
    ......

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    1. ये हीर की अदा है जो कविता में ढालती हैं मुम्बई
      कभी मुम्बई को पढ़ती हैं हीर, तो कभी हीर को पढ़ती है मुम्बई।

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  4. लोग ही नहीं ,पुरी धारावी बीमार है ,और पूरी व्यवस्था भी ......विकास का नारा लगाने वाली इंडिया शाइनिंग का नारा लगाने वाले कहाँ हैं.?निश्चित ही वे धारावी के बाहर के लोग हैं और अपने स्वार्थ के लिए पूरे देश को धारावी बना देना चाहते हैं

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टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.