“मेरे
पिता को पाकिस्तान ने नहीं, युद्ध ने मारा”
किसी
सैनिक की मृत्यु का कारण क्या है, देश या युद्ध ? जब गुरमेहर ने ‘देश’ को नहीं
‘युद्ध’ को सैनिक की मृत्यु का कारण बताया तो हलचल मच गयी । हर वह बच्चा गुरमेहर
हो सकता है जिसके पिता युद्ध में मारे गये हैं । यदि पूरी दुनिया के बच्चे युद्ध
को ही किसी सैनिक की मृत्यु का कारण मानते हैं तो गुरमेहर का प्रतिनिधि वाक्य इस
तरह होगा – “मेरे सैनिक पिता को पाकिस्तान, चीन, अमेरिका, इस्लामिक स्टेट ....ने
नहीं, युद्ध ने मारा है”।
फ़रवरी दो
हजार सत्रह में रामजस कॉलेज में हुये विवाद के समय जब वर्ष भर पुरानी यह बात सामने
लायी गयी तो तात्कालिक परिस्थितियों के प्रभाव से आवेशित लोग गुरमेहर कौर के प्रति
आक्रामक हो उठे । आवेश के वे क्षण व्यतीत हो चुके हैं और हमें गुरमेहर की बात पर
एक बार पुनः चिंतन करना चाहिये ।
ठहरिये
! कुछ समय के लिए गुरमेहर को नेपथ्य में भेज देते हैं । हाँ ! अब ठीक है ।
तो
प्रश्न यह है कि मारा किसने, ‘देश’ ने या ‘युद्ध’ ने ? यदि ‘देश’ ने मारा तो पूरा
देश दोषी है, किंतु यदि ‘युद्ध’ ने मारा तो युद्ध का निर्णय लेने वाले लोग दोषी
हैं ।
हम
‘देश’ से प्रारम्भ करते हैं । पाकिस्तान में बलूच भी हैं, कश्मीरी भी हैं, कुछ
हिंदू भी हैं, कुछ अफ़गान शरणार्थी भी हैं, कुछ सूफ़ी भी हैं और हैं कुछ वे लोग भी हैं
जो युद्ध को मानवता के लिए अभिषाप मानते हैं । जब पाकिस्तान भारत पर छद्म आक्रमण
करता है तो क्या पाकिस्तान में रहने वाले ये नागरिक भी उसके लिए दोषी माने जायेंगे
?
युद्ध
का निर्णय ‘राजा’ लेते हैं, युद्ध के तात्कालिक परिणाम ‘सेना’ और दूरगामी परिणाम
‘प्रजा’ भोगती है । पहले राजा भी प्रत्यक्ष युद्ध में भाग लेते थे, अब कोई राजा
प्रत्यक्ष युद्ध में भाग नहीं लेता । राजा पूर्वापेक्षा अधिक सुरक्षित हो गये हैं,
सेना पूर्वापेक्षा अधिक असुरक्षित हो गयी है । राजा तो होते ही हैं सुख भोगने के
लिए । ‘राजा’ के अहं से प्रारम्भ होने वाले सभी युद्ध ‘प्रजा’ की आहुति के साथ
समाप्त होते हैं ।
अब हम
‘युद्ध’ की बात करेंगे । क्या युद्ध इतने अनिवार्य होते हैं कि उनके बिना विवाद का
समाधान नहीं हो सकता ? क्या युद्ध अभी तक किसी समस्या का समाधान कर सके हैं ?
नये युग
में युद्ध से अब कोई सत्ताधीश नहीं मरता, सैनिक मरते हैं । युद्ध की तकनीक और
रणनीति सत्ताधीश के अहं के कारणों को समाप्त कर देती है, वे कारण जो उन्हें शक्ति
देते हैं, वह शक्ति जो उनके अहं का कारण बनती है ।
अहं को
समाप्त करने के लिये युद्ध आवश्यक है क्या ?
युद्ध
यदि समाधानकारक होते तो बारबार युद्ध नहीं होते । तब वह क्या है जो समाधानकारक हो
सकता है ? क्या गुरमेहर ऐसे ही किसी समाधान की तलाश में है ?
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