हमने जल
बिन मेघ घनेरे इधर-उधर देखे हैं फिरते ।
घिर कर
चक्रव्यूह में सबने अभिमन्यु अनेकों देखे मरते ॥
संदेहों
के मेघ विषैले लिये पोटली में सब फिरते ।
कुछ
चमकीले लोग न जानें कितने दाग छिपाये फिरते ॥
पल-पल
मरते वे जीते-जीते, हम जीते हैं मरते-मरते ।
बीत गया
कलियों का जीवन ऋतुओं का ऋण भरते-भरते ॥
शीतल
ऋतु में उष्ण हवायें, सच कहते हम डरते-डरते ।
कोई
मिले ऐसा तो बताना, पोंछ सके जो आँसू झरते ॥
कब डूबा
कोई खारे जल में, अश्रु बहा दो चाहे जितने ।
मधुर
प्रेम में डूब गये हम, जीत लिया जग झुकते-झुकते ॥
किरण
खोजने निकला हूँ मैं, रात बितायी चलते-चलते ।
दृढ़
संकल्प अगर कर लो तो, बात बनेगी बनते-बनते ॥
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