तत्वज्ञान
- इण्डियन रिसर्च मेथॉडोलॉजी पूरी तरह विदेशी मानकों एवं पद्धतियों पर आधारित एक ऐसा
आयातित ज्ञान है जो दूध दे रही बकरी को तब तक बकरी नहीं मानता जब तक कि उसके डी.एन.
की जाँच न हो जाय । बकरी के आइडेण्टीफ़िकेशन का एकमात्र साइंटिफ़िक तरीका उसकी हत्या
करके डी.एन.ए. की जाँच करने, रिसर्च पेपर तैयार करने,
और फिर जाँच के निष्कर्ष इण्टरनेशनल ज़र्नल में प्रकाशित करवाने से ही सिद्ध होता है ।
टिप्पणी - भारत सरकार को हमारी सलाह है कि स्कूल में दाख़िला लेने वाले हर बच्चे और उसके माँ-बाप का डी.एन.ए. टेस्ट होना ही चाहिये । आख़िर यह कैसे पता लगेगा कि दाख़िला लेने वाले बच्चे का बाप वही बंदा है जिसका नाम लिखवाया जा रहा है ? विज्ञान और क़ानून सबूतों को मानते हैं, सुनी-सुनायी बातों को नहीं ।
तत्वज्ञान
पर टिप्पणी - हम तो कहते हैं कि हल्दी, धनिया, काली
मिर्च, लौंग, चक्रफूल, दालचीनी, सोंठ और चंद्रशूर जैसे मसालों के खाने पर पूरी
तरह प्रतिबंध लगा देना चाहिये । ये सभी अनसाइंटिफ़िक और नीम-हक़ीम ख़तरा-ए-जान वाली चीजें
हैं जिनसे स्वास्थ्य को गम्भीर ख़तरा हो सकता है । सतयुग से अभी तक देवताओं,
ऋषियों-मुनियों और गाँव वालों ने कभी इस बात का कोई साइंटिफ़िक प्रमाण
नहीं दिया है कि ये मसाले सेहत के लिए लाभकारी हैं या यह कि इनके स्तेमाल से कैंसर
नहीं होता है । हो सकता है कि इन्हें खाने से कैंसर, मधुमेह और
कार्डियोवैस्कुलर जैसी जानलेवा बीमारियाँ होती हों ।
अनसाइंटिफ़िक
होने के कारण चक्रफूल एक ज़हरीला मसाला हो सकता है ।
कॉग्नीटिव
डिस्कशन - क्या साइंटिफ़िक है और क्या अनसाइंटिफ़िक यह तय करने का दायित्व भारतीयों ने
सात समंदर पार के लोगों को सौंप दिया है । गोया यज्ञोपवीत और सप्तपदी के विधान को साइंटिफ़िक
बनाने के लिए सात समंदर पार एक चर्च में प्रयोग किए जायेंगे, रिसर्च
पेपर पब्लिश किया जायेगा उसके बाद ही भारत में ये संस्कार किए जा सकेंगे, यही साइंटिफ़िक है ।
दुनिया को
पता है कि लौंग, चक्रफूल, काली मिर्च और सोंठ जैसे मसाले एंटीऑक्सीडेण्ट्स
होते हैं जो हर प्रकार की पैथोलॉज़िकल प्रोसेज़ को रोकते हैं या स्लगिश करते हैं । दुनिया
को यह भी पता है कि इनके एण्टीवायरल इफ़ेक्ट्स पर सात समंदर पार के देशों में शोध किए
जाते रहे हैं जिनके आधार पर चक्रफूल के एक्टिव प्रिंसिपल को आइसोलेट करके स्वाइन फ़्लू
के लिए एंटीवायरल दवा टैमीफ़्लू बनायी जा चुकी है किंतु किसी भारतीय मसाले का एंटीवायरल
होना ही साइंटिफ़िक नहीं माना जा सकता जब तक कि उसे टैमीफ़्लू में कन्वर्ट न कर दिया
जाय । अतः स्वाइन फ़्लू के केस में इम्पोर्टेड टैमीफ़्लू ही खाना साइंटिफ़िक है,
चक्रफूल नहीं वरना देश की सेहत को गम्भीर ख़तरा हो जायेगा । कोरोना वायरस
के केस में एण्टीवायरल और एण्टीबैक्टीरियल दवायें ही साइंटिफ़िक हैं, एण्टीवायरल दवाओं की यहाँ कोई भूमिका नहीं होती, यही
साइंटिफ़िक है और यही तत्वज्ञान है । इसे यूँ समझा जा सकता है –
उदाहरण नम्बर
1- पानी पीने से यदि रामलाल की प्यास बुझती है तो यह इस बात का प्रमाण नहीं है कि पानी
से श्यामलाल की भी प्यास बुझ सकती है । रामलाल और श्यामलाल दो अलग व्यक्ति हैं, दोनों
की बॉडी अलग है, दोनों के कपड़े अलग हैं, दोनों के माँ-बाप अलग हैं, दोनों के गाँव अलग हैं,
एक कान्ग्रेसशासित राज्य का निवासी है दूसरा भाजपाशासित राज्य का । इससे
सिद्ध होता है कि पानी से हर मनुष्य की प्यास नहीं बुझ सकती ।
उदाहरण नम्बर
2- गिनी पिग पर किए गए प्रयोगों के निष्कर्ष मनुष्य के लिए साइंटिफ़िक होते हैं लेकिन
हजारों साल से परम्परा में प्रचलित मसालों का प्रयोग मनुष्य के लिए अनसाइंटिफ़िक है
।
उदाहरण नम्बर
3- जो मैं और मेरे गैंग के लोग कहते हैं वही साइटिफ़िक होता है, जो आप
लोग कहते हैं वह ट्रेडीशनल होने से अनसाइंटिफ़िक होता है ।
उदाहरण नम्बर
4- मेरी और मेरे गैंग के लोगों की हाइपोथीसिस साइंटिफ़िक है, आप लोगों
की हाइपोथीसिस ट्रेडीशनल होने से अनसाइंटिफ़िक है ।
5- रोज रोज पैरामीटर्स और सिद्धांतों को बदल देना साइंटिफ़िक है किंतु जो त्रिकाल सत्य है वह अनसाइंटिफ़िक है ।
भारत में
सब कुछ अनसाइंटिफ़िक होता है । एक तो भारतीयों को रोटी, दाल,
चावल, सब्जी, गरम मसाले,
पानी और दूध जैसी ट्रेडीशनल चीजों के एडिबल और लीथल डोज़ का ही पता नहीं
है । जिसका लीथल डोज़ ही अभी तक निर्धारित नहीं हो सका उसे साइंटिफ़िक कैसे मान लिया
जाय ?
कोई भी रिसर्च करने से पहले गंगू तेली और मुसद्दी लाला से परमीशन लेना अनिवार्य है । ऐसी परमीशन ही साइंटिफ़िक होती है वरना सब कुछ ट्रेडीशनल होने से अनसाइंटिफ़िक हो जाता है । गन्ने के रस से गुड़ बनाने के लिए आज तक कोई रिसर्च नहीं हुयी है । जिस किसी बंदे ने सबसे पहले गुड़ बनाया होगा उसने गंगू तेली और मुसद्दी लाला से परमीशन नहीं ली थी तो आप ही बताइए कि हम उसके बनाये गुड़ को साइंटिफ़िक कैसे मान लें ? आख़िर नियम क़ानून क़ायदा भी तो कोई चीज होती है ।
यह विज्ञान का युग है । विज्ञान से अधिक ताक़तवर और विश्वसनीय कुछ नहीं होता जो बम बना कर एक क्षण मंन दुनिया को तबाह कर सकता है ।