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टमाटर बीस रुपए बीस रुपए
बीस रुपए...करेला दस रुपए दस रुपए दस रुपए ...
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सब्जी मण्डी में
दुकानदार पूरी ताक़त लगा के चिल्ला रहे हैं, ड्रॉप्लेट्स
की शॉवरिंग सब्जियों पर भी हो रही है और सब्जी ख़रीदने वालों पर भी । सब्जी वालों
को पूरा यक़ीन है कि “चिल्लायबें से ड्रॉपलेट इंफ़ेक्सन कभऊँ नइ होत हैगो” ।
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सरकारी हुकुम मास्क
लगाने का है । चिल्लाते समय मास्क लगाने से परेशानी होती है और यूँ भी बिना मास्क
लगाए चिल्ला कर सब्जी बेचना मना है ऐसा कोई हुकुम तो है नहीं इसलिए सब्जी तो इसी
तरह बेची जायेगी । लॉक डाउन खुल गया है, धंधे
चालू हो गये हैं, ग्राहक खींचने के लिए चिल्लाना ज़रूरी है ।
लॉक डाउन खोला ही इसलिए गया है ताकि चिल्ला-चिल्ला कर धंधा किया जा सके । इकोनॉमी
का सवाल है, धंधा तो करना होगा ।
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लॉक डाउन खुल गइल बा, पटना जाय वाला गड़िया निज़ामुद्दीन टेसन से खुले वाला है । सरकार
आ परसासन के कुल भरोसा बा के मज़दूर लोग रेल डब्बा मं दू-दू मीटर के दुरिया बना के पटना
तक जात्रा करिहन स एह से चिंता के कवनो बात नइ खे, सोसल ट्रांसमिसन
होय के त सवालय नइ खे होत ।
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“जागते रहो” का सिद्धांत
अपने दायित्वों को हस्तांतरित करते हुये भरोसा टूटने तक की यात्रा परम्परा को स्थापित
करता है । सोये हुये लोगों को विश्वास है कि पहरेदार के रहते कोई चोर नहीं आयेगा इसलिए
वे घोड़े बेचकर सोते रहते हैं । पहरेदार को विश्वास है कि “जागते रहो” सुनकर सोये हुये
लोग जाग जायेंगे और चोरी नहीं होने देंगे । चोर को विश्वास है कि यही तो चोर की असली
परीक्षा है जिसे हर हाल में उत्तीर्ण करना ही चोर का पुरुषार्थ है ।
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सरकारी प्रचारतंत्र चालू
आहे, दिल्ली की सड़कों पर भीड़ है, डरे हुए लोग घरों में हैं, निर्भीक लोग घर के बाहर
हैं । जो डर गया वो मर गया इसलिए डरना नहीं । टीवी वाले दिन भर गज़ब भूमिकायें
बनाते रहते हैं, लगता है जैसे कि टाइटेनिक की तरह देश चिंता
के सागर में डूबा जा रहा है । टीवी पर ज़िरह हो रही है, कोरोना
का सोशल ट्रांसमिशन चालू हो गया है, ….नहीं अभी नहीं चालू
हुआ पर होने वाला है ।
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अरे काहे को उल्लू बना
रहे हो भाई! एम्स का डॉक्टर बोला है कि
चालू हो गया तो बस चालू हो गया ।
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यार अज़ीब ज़िद्दी आदमी हो
तुम भी, जब कह दिया कि अभी नहीं चालू हुआ तो बस
नहीं चालू हुआ, जब तक डबलूएचओ भैया नहीं कहेंगे तब तक सरकार
कैसे कह दे कि चालू हो गया और जब तक सरकार नहीं कहती तब तक नहीं माना जायेगा कि
चालू हो गया है । कोरोना ससुरे की ऐसी कम तैसी जरा करके दिखाए तो सोशल ट्रांसमिशन
बिना सरकारी हुकुम के, स्साले का बाजा न बजा दिया तो कहना ।
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मिठायी वाला जिन हाथों
से नोट लेता है उन्हीं हाथों से मिठायी तौलता है । दस्ताने पहनकर या चिमटे से
मिठायी उठाने का कोई हुकुम नहीं है । मोतीहारी वाले मिसिर जी कोई सरकार नहीं हैं
जो उनकी बात मानना ज़रूरी है ।
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जो लोग संविधान को नहीं
मानते, सरकार को नहीं मानते वे लोग मिसिर जी की
बात क्यों मानेंगे भला ! मिसिर जी को अपनी बात मनवानी ही है तो पहले चुनाव लड़ें,
सरकार बनें तब हुकुम चलायें, नहीं तो जायँ
सीधे भाड़ में ।
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