हम ठहरे
पीपल के पात...
पटना के
सुशांत राजपूत चलते-चलते रुक गये, चंचलता थिर हुयी और वर्तमान यात्रा
अगले जन्म तक के लिए स्थगित हो गयी । एक जगमगाता तारा टूट कर बिखर गया ।
मिसिर जी
ने सुना कि फिर एक तारा टूट गया । पीपल के सारे पत्ते जैसे एक साथ तड़प उठे हों, उनके मुँह
से हठात निकला – “ए हो मरदे ! अतना जल्दी रहे तहरा के ?”
मिसिर जी
का गला रुँध गया । आगे की बात अधूरी रह गयी । उनके मन मस्तिष्क में एक साथ कई धारायें
बह उठीं । सुशांत प्रतिभाशाली था, महत्वाकांक्षी था, जुझारू था । मनुष्य को पुरुषार्थ के लिए और क्या चाहिये !
वह कौन सा
रीतापन था सुशांत जिसे हम देख नहीं सके, जिसे तुम भर नहीं सके और इस तरह
चल दिए ...रूठकर हम सबसे ।
सुशांत की
बहुमुखी प्रतिभा कई प्रश्न छोड़ गयी अपने पीछे ।
कुछ प्रश्नों
के उत्तर समुद्र हो जाते हैं, और हम किनारे खड़े होकर यही सोचते
रह जाते हैं कि किस बूँद से करे प्रारम्भ ।
मिसिर जी
श्मशान में खड़े हैं, न जाने कितने झंझावातों के साथ, सोचते हुये – कि हम ठहरे
पीपल के पात, चंचलता है सौगात, नृत्य नृत्य
और नृत्य निरंतर, जीवन का यह सत्य हमारा शिव है और बस यही एक
है सुंदर । इस सुंदरता से विरत कहाँ चल दिये तुम सुशांत!
“ए हो मरदे
! अतना जल्दी रहे तहरा के”? - मिसिर जी के भीतर भी एक बदली उठी है घनघोर, हवायें तेज
हो गयी हैं और अश्वत्थ के पत्तों की आँखें बरसने लगी हैं ।
चंचल पत्रों
की छाँव में अश्वत्थ के नीचे गौतम बोधिसत्व हुये, मन की चंचलता को आवृत्ति
मिली, आवृत्ति को स्वीकृति मिली और वे बुद्ध बने । बिहार तब भी
यही था बिहार आज भी वही है, बस तुम नहीं हो हमारे आसपास ।
ओम शांतिः ! शांतिः !!
शांतिः !!!
बहुत भावपूर्ण पोस्ट कोशलेंद्रम जी | दुनिया बहुत बड़ी थी , काश किसी से दुःख साझा करते सुशांत | इतनी जल्दी क्यों गये ? किस शांति की तलाश में अनमोल जीवन गँवा दिया ? उन्हें शायद शांति मिल भी जाए , दुनिया भी आगे बढ़ जाएगी , पर वेदना में दहकते , उसके अपने कभी शांति ना पा सकेंगे | अश्रुपुर्रित नमन सुशांत |
जवाब देंहटाएंजी! हम सब यही सोचते हैं किंतु कंगना रानावत ने जिन रहस्यों से पर्दा उठाने की चेष्टा की है वे और भी भयावह हैं । अगली पोस्ट में इन्हीं बातों पर चिंतन का प्रयास किया गया है जिसमें मेरा गुस्सा साफ़ देखा जा सकता है ।
हटाएंमुझसे अपेक्षा की गई थी कि मैं आत्महत्या रोकने के उपायों पर चर्चा करूँ किंतु मुझे लगा यह मुद्दे को भटकाने जैसा होगा । किसी के पास ज्ञान का अभाव नहीं है, साकियाट्री की किताबें भरी पड़ी हैं, वेद-पुराण भी हैं ....। आत्महत्या को मैं क्षणिक आवेश नहीं मानना चाहता यह एक लम्बे झंझावातों का परिणाम है । ऐसे झन्हावातों से जूझते किसी व्यक्ति को कुछ भी नहीं सुहाता ।
यदि किसी के पास कोई उपाय होता तो अब तक आत्महत्याएँ रुक चुकी होतीं ।
हम सबको मिलकर एक लम्बी लड़ाई के लिए तैयार होना होगा ।