भारत के
हर उस नागरिक को जो अपनी मातृभूमि और अपनी सांस्कृतिक विरासत से प्रेम करते हैं, गुरु
की भूमिका में होने के कारण चीन के प्रति कृतज्ञ होना चाहिये ।
सद्गुरु
ने कहा – आत्मनिर्भर बनो, हम नहीं बने, चीन पर निर्भर होते चले गये । आज हम
महत्वपूर्ण तकनीकी संसाधनों के लिए भी चीन पर निर्भर हो गये हैं जिससे भारत की
सुरक्षा ख़तरे में पड़ गयी है । क्रूड मेडिसिन कम्पोनेंट्स और आई.टी. का क्षेत्र हो
या न्यूक्लियर रिएक्टर का, नीम बेहोशी की हालत में धीरे-धीरे
इन सबके लिए भी हम चीन पर निर्भर होते चले गए और आज कई मामलों में चीन के बिना
स्वयं को पैरालाइज़्ड अनुभव करने लगे हैं ।
सद्गुरु
ने कहा – धोखेबाज चीन पर कभी भरोसा मत करना, हम नहीं माने, और ज़रूरत से ज़्यादा चीन पर भरोसा करते रहे । आज चीन अपने राक्षसी स्वरूप
में प्रकट होकर दहशत फैलाने में क़ामयाब हो गया है ।
सद्गुरु
ने कहा – भारत के चारों कोनों पर स्थापित सनातनधर्म के चार पीठों की पुनः सुदृढ़ता
व सक्रियता के साथ-साथ सीमावर्ती राज्यों से शेष भारत के सम्बंधों को घनिष्ठ बनाने
के लिए सक्रिय योजनाएँ प्रारम्भ की जानी चाहिये, हमने कुछ नहीं किया
बल्कि सीमावर्ती राज्यों से निरंतर दूरियाँ बनाते रहे जिससे हमारी राष्ट्रीय एकता
के सूत्र दुर्बल होते रहे ।
सद्गुरु
ने कहा – नेपाल, भूटान, वियतनाम और श्रीलंका के साथ सम्बंधों को और
भी सुदृढ़ किया जाना चाहिए, हमने यह भी नहीं किया बल्कि हमारे
सम्बंध और भी तनावपूर्ण होते चले गए जिससे आज नेपाल और भूटान भी हमें आँख दिखाने
लगे हैं ।
सद्गुरु ने कहा – चीनी सीमा के पास उत्तराखण्ड के तीन हजार गाँव पूरी तरह निर्जन हो चुके हैं, उन्हें फिर से बसाने के लिए गम्भीर पहल की जानी चाहिये जिससे चीनी सीना की घुसपैठ पर नज़र रखी जा सके, हमने कोई पहल नहीं की बल्कि सीमावर्ती अन्य गाँवों से भी निरंतर पलायन होता रहा । चीनियों ने इसका लाभ उठाया और भारत चीन सीमा के पास छह सौ से अधिक नए गाँवों को जन्म देकर भारत की सुरक्षा और सम्प्रभुता के लिए गम्भीर ख़तरा उत्पन्न कर दिया, हम बुड़बक की तरह देखते रह गए ।
मोतीहारी
वाले मिसिर जी इस बात से बहुत खिन्न हैं कि हमने सद्गुरु की कभी कोई बात नहीं मानी
और चीन के लिए स्वयं को एक बाजार बनाकर निरंतर पेश करते रहने में ही ख़ुश होते रहे
।
मिसिर
जी कहते हैं – “शिक्षा देने का अपना-अपना तरीका होता है । प्रेम से बोलने वाले
सद्गुरु की बात हमने कभी नहीं मानी इसलिए अब चीन ने अपने तरीके से हमें समझाना
शुरू किया है । चीन ने भारत की युवा पीढ़ी को उन सभी क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने
के लिए डाँट लगाते हुये समझाने का प्रयास किया है, जिनमें चीन के बिना
भारत स्वयं को पैरालाइज़्ड अनुभव कर रहा है” ।
सचमुच, हमें
अपनी सीमाएँ सुरक्षित रखने के लिए उत्तरांचल के निर्जन हो चुके गाँवों को फिर से
बसाने की प्रेरणा देने के लिए, आई.टी. और अन्य तकनीकी
क्षेत्रों में आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा देने के लिए, गद्दार
चीन पर कभी भरोसा न करने के लिए, उत्तरी सीमा पर सदा चौकन्ने
रहने की सीख देने के लिए, अपने देशी कुटीर उद्योगों को बढावा
देने की विवशता उत्पन्न करने के लिए और अपने ही देश में रोजगार उत्पन्न करने के
अवसर उपलब्ध करने की बाध्यता के लिए हमें चीन का कृतज्ञ होना चाहिए ।
जब कोई
विद्यार्थी असावधान और अवज्ञाकारी हो तो उसे सद्गुरु की नहीं चीन जैसे दुष्टगुरु
की आवश्यकता होती है । मैं सचमुच चीन और चीनी चेयरमैन पिंगपिंग का हृदय से आभारी
हूँ । अभी भी अगर हम न चेते तो हमारे विनाश को कोई नहीं रोक सकता । सोमनाथ के
मंदिर और नालंदा विश्वविद्यालय की लायब्रेरी का हश्र तो याद है न!
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