यूनाइटेड नेशन्स ने भारत को बाख़बर किया है कि केरल
में आइसिस के ज़िहादियों ने अपनी जड़ें पुख़्ता कर ली हैं । बीजारोपण से लेकर अंकुर फूटने, जड़ों के फैलने और फिर उनके पुख़्ता होने में एक
लम्बा समय लगता है । इस लम्बे समय में पूर्वनियोजित रणनीति के अंतर्गत षड्यंत्रों को
अंजाम दिया जाता रहा, केरल को कश्मीर का विकल्प बना दिया गया
और हम बाख़बर होते हुए भी बेख़बर बने रहने का नाटक करते रहे । हम केरल की वामपंथी सरकार
को इसके लिए दोषी नहीं ठहरा सकते । वामपंथी सरकार अपने आयातित उद्देश्यों और दुर्नीतियों
के पथ पर आगे बढ़ती रही है, यही उसका धर्म है । यह दायित्व हमारा
है कि हम भारत की अखण्डता के विरुद्ध हो रहे षड्यंत्रों को निर्मूल करने का प्रयास
करते जो हमने नहीं किया । हमें विदेशी सूचनातंत्रों से सूचनायें मिलती हैं,
तब हम बेशर्मों की तरह जागते हैं । यानी विदेशी सूचना तंत्र हल्ला न
करे तो हम कभी न जागने के लिए दृढ़ संकल्पित बैठे हैं । यह कैसा राष्ट्रप्रेम है ?
यह कैसा अखण्ड भारत का स्वप्न है ? क्या हमारा
राष्ट्रप्रेम प्रदर्शन केवल एक पाखण्ड है ?
दोष हमारा-आपका कहीं अधिक है । हम कभी किसी पापाचार का विरोध नहीं करते, सोचते हैं कि यह सब राजनीतिक दलों का काम है । जे.एन.यू. में अफ़ज़ल गुरु
की बरसी को लेकर कन्हैया और उमर ख़ालिद आदि के द्वारा मचाये गये हंगामे के समय मैंने
प्रयास किया कि हमारे शहर में भी बुद्धिजीवियों की ओर से इस सबका तथ्यात्मक और तर्कसम्मत
विरोध करने के लिए एक कार्यक्रम आयोजित किया जाय । लेकिन हम अपने शहर से एक भी बुद्धिजीवी
को इसके लिए तैयार नहीं कर सके । यहाँ तक कि तथाकथित राष्ट्रप्रेमी संस्थाओं को भी
नहीं ।
राजा दाहिर के युग से लेकर अब तक हम निरंतर पतन की ओर ही बढ़ते रहे हैं । हमने
कुछ भी अच्छा नहीं सीखा सिवाय घटिया बातों, मक्कारियों और गद्दारी के । हमने हर चीज में केवल व्यापार को देखा और अब हम भ्रष्टाचार
की प्रतिमूर्ति बन चुके हैं ।
कुछ साल पहले जब केरल से "किस फ़ॉर लव" आंदोलन की शुरुआत हुयी थी उसके
बाद केरल में आइसिस के लोगों की सक्रियता की बात सामने आयी थी । किंतु भारत के अन्य
प्रांतों को इसकी पहली ख़बर भारतीय ख़ुफ़िया संस्थाओं से नहीं बल्कि विदेशी संस्थाओं से
मिली । सूचना मिलने के बाद भी हमने कभी ध्यान नहीं दिया ...ज़रूरत ही नहीं समझी । “कोऊ
नृप होय हमहिं का हानी” हमारा शुतुर्मुर्गियाना आदर्श सिद्धांत रहा है ।
पिछले कुछ सालों से समय-समय पर केरल में आइसिस के झण्डे लहराने की ख़बरें भी आती
रही थीं । सीरिया युद्ध के समय केरल से आइसिस में शामिल होने के लिए गये लोगों की ख़बरें
भी आई थीं । ...हम फिर भी सोते रहे, भारत की
केंद्रीय और प्रांतीय सरकारों के सभी कर्णधार सोते रहे ।
हम निहायत बेशर्म कुम्भकर्ण बन गये हैं । यदि आम नागरिक जाग्रत नहीं हुआ तो एक
दिन हम केरल को खो देंगे ।
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