गुरुवार, 6 अगस्त 2020

हागिया सोफ़िया भी एक प्रमाण है तोड़फोड़ के इतिहास का...


विषय –

इतिहास को नष्ट करने की परम्परा उनके आचरण का एक अहम हिस्सा है ।

संदर्भ –

-      आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड – “आप राम मंदिर बनाइये, हम उसे फिर गिरा देंगे

-      इरफ़ान हबीब लोन – “काला कपड़ा दिखाकर राम मंदिर का विरोध करना मेरा लोकतांत्रिक अधिकार है

-      असदुद्दीन ओवैसी – “बाबरी मस्ज़िद थी, है और रहेगी, इंशा-अल्लाह

 

सवाल जिसका ज़वाब कोई नहीं देगा –

The only question – “Are these people and such organizations Indians?”

 

सिद्धांत –

यदि जीवन का लक्ष्य अनधिकृत विस्तार हो, आतंक ही धर्म हो, आक्रमण और लूटमार ही कर्म हो तो शांति की स्थापना का आश्वासन एक धूर्ततापूर्ण छलावा के अतिरिक्त और कुछ नहीं हो सकता ।

 

प्राचीन इमारतों से छेड़छाड़ कर उनके बलात् रूपांतरणों पर ऐतिहासिक संदर्भों के आलोक में चर्चा –

दुनिया के पास राम मंदिर जैसे न जाने कितने मंदिरों, गिरिजाघरों और अन्य पूजा स्थलों को मस्ज़िदों में बदले जाने का एक दीर्घ इतिहास है । इसी साल, यानी सन् 2020 में टर्की की सुप्रीम कोर्ट ने संग्रहालय में बदले जा चुके इस्तांबुल के हागिया सोफ़िया चर्च को एक बार फिर मस्ज़िद में बदलने का आदेश दे दिया है ।

टर्की के कॉन्स्टेन्टिनोपल (इस्तान्बुल) में स्थित ग्रीक ऑर्थोडॉक्स चर्च हागिया सोफ़िया” (Sophia=wisdom) भी इस्लामिक विजेताओं की मोनूमेंट मॉडीफ़िकेशन स्कीमका शिकार होता रहा है । ग्रीक वास्तुविदों द्वारा निर्मित Byzantine स्थापत्य कला के प्रतीक हागिया सोफ़िया चर्च का मूल नाम Magna Ekklesia है जिसे चर्च के रूप में 15 फ़रवरी सन् 360 को जनता के लिए अर्पित किया गया था । दुर्भाग्य से इस चर्च को राजनीतिक और धार्मिक विवादों के कारण विद्रोहियों के द्वारा अपने निर्माण से अब तक दो बार, पहले सन् 404 में और फिर सन् 532 में आग के हवाले किया जा चुका है । सम्राट कॉन्स्टेन्टाइन प्रथम ने अपने विरुद्ध हुयी बगावत Nika riots को कुचलने के बाद सन् 537 में चर्च का पुनर्निर्माण करवाया और इसे ईस्टर्न Orthodox church में रूपांतरित किया । हागिया सोफ़िया कैथेड्रल का यह तीसरी बार पुनर्निमाण किया गया था । सन् 1453 में मुस्लिम विजेता Ottoman सम्राट Mehmat usman ने टर्की पर आक्रमण किया और इसे जीतने के बाद चर्च की वास्तुकला में भी परिवर्तन करते हुये इसे ओट्टोमन मस्ज़िद में बदल दिया । यह वही मुस्लिम विजेता मेहमत है जिसने कॉन्स्टेन्टिनोपल का नाम बदलकर नया नाम इस्तान्बुल रख दिया था । हागिया सोफ़िया को लेकर होने वाले क्रिस्टो-इस्लामिक विवाद को समाप्त करने के उद्देश्य से मुस्तफ़ा क़माल अतातुर्क ने सन् 1935 में विवादास्पद मस्ज़िद को राष्ट्रीय संग्रहालय में रूपांतरित कर दिया लेकिन अब सन् 2020 में टर्की की सुप्रीम कोर्ट के आदेश से इसे एक बार फिर मस्ज़िद में रूपांतरित कर दिया गया है ।

आल इण्डिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने हागिया सोफ़िया की नज़ीर पेश करते हुये अयोध्या राम मंदिर को फिर से मस्ज़िद में बदल देने का संकल्प प्रस्तुत कर दिया है जिसके समर्थन में असदुद्दीन ओवैसी ने भी बाबरी मस्ज़िद थी, है और रहेगी, इंशा अल्लाहका ऐलान कर दिया है ।

आक्रामक विजेता मुसलमानों की यह ज़िद रही है कि वे जहाँ खड़े होते हैं वहीं से और ठीक उसी वक़्त से दुनिया शुरू होती है । दुनिया न उसके पहले होती है और न उसके बाद, यही कारण है कि वे अपनी सामरिक विजय के ठीक पहले क्षण तक के इतिहास को नष्ट करके एक नया इतिहास शुरू करते हैं । मुस्लिम आक्रांताओं की यही परम्परा उन्हें पूरी दुनिया में बुल्ली और विवादास्पद बनाती है ।

धार्मिक स्थलों की आवश्यकता –

मैं, जन-आस्था के सभी आराधनास्थलों को शक्ति के ऐसे अद्भुत केंद्र के रूप में स्वीकार करता हूँ जो आस्थावानों को, उनकी क्षमता व पात्रता के अनुरूप, जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में संघर्ष के लिए असीम शक्तियाँ प्रदान करते हैं । 

राममंदिर विरोध पर केरल के राज्यपाल के वक्तव्य पर एक वक्तव्य –

“मैं पं. आरिफ़ मोहम्मद ख़ान को एक जलता हुआ दिया मानता हूँ । इस दिए की रोशनी की ज़रूरत हर किसी को है । काश! हमारे बीच कुछ और पंडित आरिफ़ मोहम्मद ख़ान होते” ।


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