कितनी भरोसेमंद होगी एण्टीकोरोना वैक्सीन
कोरोना के बाद अब बारी है एण्टीकोरोना वैक्सीन की । वैक्सीन
बन जाने के समाचारों के साथ ही दुनिया भर में टीकाकरण की कल्पनायें की जाने लगी
हैं । अगले दो-तीन महीने बाद कोरोना के जींस हमारी कोशिकाओं में होंगे जहाँ
कोशिकाओं को उनसे दोस्ती करनी होगी और फिर पहले से तय युद्धनीति के अनुसार हमें उनके
रहस्य जानकर कोरोना के किले को ढहाना होगा । लाख टके का एक सवाल फिर भी हमारी ओर
झाँकता है कि आने वाली वैक्सीन्स कितनी भरोसेमंद साबित होंगी ।
फ़ॉर्मा लैब्स से समाचारों के निकलते ही वैक्सीननिर्माता
कम्पनीज़ के शेयर्स ने भागना प्रारम्भ कर दिया है । मॉडर्ना के शेयर्स तो कई महीने
पहले से ही भाग रहे हैं और अब प्फ़ाइज़र, कैडिला
और पैनेसिआ के शेयर्स भी भागने लगे हैं । अभी तक लगभग तेरह प्रकार के एण्टीकोरोना वैक्सीन
अपने क्लीनिकल परीक्षण के अंतिम दौर में पहुँच चुके हैं जबकि क्लीनिकल परीक्षण के
दूसरे और तीसरे चरण की दौड़ में चौवन, और प्रीक्लीनिकल वैक्सीन
के एक्टिव इन्वेस्टीगेशन के चरण में लगभग सत्तासी प्रकार के वैक्सीन अभी भी
प्रयोगशाला स्तर पर अध्ययन और परीक्षण की स्थिति में हैं । इस दौड़ में आगे निकल
चुकी तेरह वैक्सीन्स में भी जो तीन सबसे आगे हैं वे हैं –ऑक्सफ़ोर्ड-एस्ट्राज़ेनेका
की डीएनए बेस्ड वैक्सीन “ChAdOx1 nCoV-19”
जिसके रीसस मैकाक के ऊपर किये गये प्रारम्भिक परीक्षण सफल नहीं हो सके थे; दूसरी है मॉडर्ना की “वैक्सीन mRNA-1273”, और तीसरी वैक्सीन है ज़ायडस कैडिला निर्मित डीएनए बेस्ड “ZyCov-D”
अनुमान है कि क्लीनिकल परीक्षण की दौड़ में सम्मिलित भारत
बायोटेक इंटरनेशनल हैदराबाद द्वारा निर्मित Intranasal ChAd Vaccine
सैद्धांतिक रूप से कहीं अधिक सफल होने की सम्भावना है । एण्टीकोरोना
वैक्सीन बनाने की प्रतिस्पर्धा में सिगरेट बनाने वाली दुनिया की दूसरी बड़ी कम्पनी ब्रिटिश-अमेरिकन
टोबैको (BATS.L) भी शामिल है जिसके लिये काम करने वाली
केण्टुकी बायोप्रोसेसिंग ने वैक्सीन बनाने के लिये तम्बाखू के पत्ते में पायी जाने
वाली एक प्रोटीन का स्तेमाल किया है । इस वैक्सीन का प्रीक्लीनिकल चरण पूरा हो
चुका है और अब क्लीनिकल परीक्षण के प्रथम चरण की अनुमति की प्रतीक्षा की जा रही है
। टोबेको प्रोटीन बेस्ड वैक्सीन एण्टीबॉडीज़ के साथ-साथ टी. सेल्स भी उत्पन्न करती है
इसलिये यह वैक्सीन भी कहीं अधिक सफल होने वाली है ।
नाना प्रकार की इन वैक्सीन्स की रोगप्रतिरोधक क्षमता, सुरक्षा के स्तर और सुरक्षा की अवधि के बारे में अभी भी कोई
अंतिम निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता । सामान्यतः किसी वैक्सीन की गुणवत्ता के
परीक्षणों में तीन मानकों Safety, efficacy और effectiveness
को ध्यान में रखा जाता है, जिसके परीक्षणों और
निष्कर्षों में हड़बड़ी नहीं की जा सकती । ये परीक्षण कई चरणों में पूरे किये जाते
हैं जिसमें कम से कम दो साल तो लग ही जाते हैं । एण्टीकोरोना वैक्सीन के मामले में
कुछ प्रयोगशालाओं ने क्लीनिकल परीक्षण के पहले और दूसरे चरणों को एक साथ निपटाने
की हड़बड़ाहट की है । यह अच्छी बात है कि इस दौड़ में सम्मिलित किसी भी भारतीय कम्पनी
ने कोई हड़बड़ाहट नहीं की है और बड़े धैर्य के साथ सभी चरणों के निष्कर्षों का अध्ययन
किया है ।
आशा है कि अगले दो से तीन माह में कोरोना की वैक्सीन हमारे
लिये उपलब्ध हो जायेगी । यह एक राहत हो सकती है किंतु सजग चिकित्सक का काम तो
वैक्सीन आने के बाद प्रारम्भ होने वाला है । वैक्सीन का उपयोग प्रारम्भ हो जाने के
बाद भी निरीक्षण, परीक्षण, सर्वेक्षण और
विश्लेषण के अध्ययन का सिलसिला समाप्त नहीं होगा ...यह चलता रहेगा और नये निष्कर्ष
प्राप्त किये जाते रहेंगे । सैद्धांतिकरूप से जेनेटिक इन्जीनियरिंग द्वारा तैयार वैक्सीन
को पूरी तरह निरापद नहीं माना जा सकता, दीर्घावधि में इनके उपद्रव
सामने आ सकते हैं । स्पष्ट है कि हमें संक्रमण से बचने के लिये अन्य विकल्पों पर
भी काम करना होगा ।