निरंतर नकारात्मक समाचारों के विशाल पर्वत के पीछे एक ओर उपेक्षित से खड़े इस समाचार ने धीरे से मुझे बताया कि 2015 में भारत ने फ़्रांस के साथ मिलकर सौरऊर्जा के क्षेत्र में काम करने के लिये जिस “अंतरराष्ट्रीय सूर्य गठबंधन” की स्थापना की थी उसके सदस्य देशों की संख्या अब 124 तक पहुँच गयी है, और हाल ही में अमेरिका ने भी इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली है । प्रदूषण रहित ऊर्जा का उत्पादन और सन् 2050 तक ग्रीन हाउस गैसेज़ को शून्य स्तर तक लाना इस संस्था के मुख्य उद्देश्य हैं । संस्था का नारा है – “एक सूर्य, एक विश्व और एक ग्रिड” । वसुधैव कुटुम्बकम का इससे बड़ा अनुप्रयोग और क्या हो सकता है!
प्रारम्भ
में इस संस्था का नाम रखा गया था – “अंतरराष्ट्रीय सौर प्रौद्योगिकी एवं अनुप्रयोग
अभिकरण” (International
Agency for Solar Technology and Applications), जिसे बाद में बदलकर “अंतरराष्ट्रीय सूर्य गठबंधन”
(International Solar Alliance) कर दिया गया । इस तरह भारत सौरऊर्जा
की वैश्विक राजधानी बन गया ।
इस
गठबंधन के उद्देश्यों के क्रियान्वयन से सर्वाधिक लाभ उन देशों को मिलता है जो कर्क
और मकर रेखा के मध्य स्थित हैं । सूर्य की किरणों से सर्वाधिक आप्लावित रहने वाले इन
देशों को “सूर्यपुत्र देश” कहा गया है, वहीं भारत को सौर-ऊर्जा निर्माण
के लिये एक आदर्श देश माना जाता है । वैश्विक स्तर पर सौर-ऊर्जा के लिये भारत की इस
महत्वाकांक्षी योजना की सराहना विश्व भर में की जा रही है । 2015 से अब तक इस
गठबंधन के कई सम्मेलन आयोजित किये जा चुके हैं । नवम्बर 2021 में ग्लास्गो में
हुये “अंतर-राष्ट्रीय सूर्य गठबंधन” के
सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा – “सूर्य
देवता गठबंधन में सबसे बड़े साथी” हैं । वैदिक साहित्य में सूर्य
की उपासना से सम्बंधित ऋचाओं की प्रचुरता देखी जा सकती है, सूर्य-ऊर्जा
उसी का एक व्यावहारिक अनुप्रयोग है ।
सौर-ऊर्जा
के बारे में दशकों से चर्चा होती रही है किंतु इसके निर्माण, समायोजन और उपयोग में कई चुनौतियाँ भी हैं । सबसे बड़ी
चुनौती है सौर-ऊर्जा का अस्थिर स्वरूप जिसके कारण इसे ग्रिड में समायोजित कर पाना
एक बड़ी समस्या है । भारत ने इन समस्याओं को पहचाना और 2015 में इनके वैज्ञानिक समाधान
के लिये पहल करने का निर्णय लिया । इतना ही नहीं, इस क्षेत्र
में उल्लेखनीय कार्य करने वाले देशों को प्रोत्साहित और सम्मानित करने के उद्द्श्य
से विश्वेश्वसरैया पुरस्कार, कल्पना चावला पुरस्कार और दिवाकर
पुरस्कार जैसे पुरस्कारों की घोषणा कर भारत के प्रधानमंत्री ने भारतीय मेधा और भारतीयता
की विश्वस्तर पर एक पहचान बनाने का भी सराहनीय कार्य किया है ।
हर्ष की
बात यह है कि भारत को सौर-ऊर्जा की अंतरिम वैश्विक राजधानी भी बनाया गया है जिसका
अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय गुरुग्राम में है । इसके साथ ही विश्वबंधुत्व और वसुधैव
कुटुम्बकम के आदर्श को लेकर चलने वाले भारत ने एक और वैश्विक कीर्तिमान स्थापित कर
लिया है ।
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