शनिवार, 27 नवंबर 2021

एक सवाल देश के मन का

         लोकतांत्रिक मूल्यों में विश्वास रखने वाली भारत की प्रजा के मन में कुछ दिनों से एक प्रश्न लावा की तरह फूटने लगा है । सर्जिकल स्ट्राइक करने और धारा 370 हटाये जाने के पीछे जो दृढ़ आत्मविश्वास था, क्या राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव ने उसे ढहा दिया है?

साल भर तक दिल्ली की सीमाओं पर आवागमन बाधित करने, उपद्रव करने, सम्पत्ति को क्षति पहुँचाने, हत्या और बलात्कार करने, लालकिला परिसर में पुलिस कर्मियों पर तलवारों से हमले करने और लालकिले पर खालिस्तानी परचम लहराने वाले जिन लोगों को पूरा देश आँखें फाड़-फाड़ कर साल भर तक देखता, भोगता और कोसता रहा है वे अचानक प्रधानमंत्री जी को किसान नहीं होकर भी किसान भाई लगने लगे हैं । प्रधानमंत्री के मन में अचानक हुये इस परिवर्तन का कोई स्पष्ट और तर्कसंगत कारण भारत के आम नागरिक को दिखायी नहीं देता सिवाय इसके कि इसके पीछे उस लचर मानसिकता की बर्फीली ठण्डक रहे होगी जिसने पालघाट संत हत्या, शाहीनबाग का देश विरोधी हठ, और बंगाल चुनावों के बाद बंगाल में हुयी अराजक हिंसा के सामने भारत के लोकतंत्र को लाचार और बेचारा बना दिया था । भाजपा के नेताओं ने ही नहीं, देश के आम नागरिक ने भी दिल्ली की सिंधु सीमा को बाधित करने वाले हठी लोगों को किसान मानने से इंकार कर दिया था, प्रधानमंत्री जी ने अचानक ही उन अराजकतत्वों को भारत का दयालु अन्नदाता स्वीकार कर उनके सामने लोकतंत्र को तड़पते हुये मरने के लिये समर्पित कर दिया । भारत के आम नागरिक और छोटी एवं मध्यम जोत के किसान प्रधानमंत्री जी के इस निर्णय से हताश हुये हैं । प्रधानमंत्री ने भारत की प्रजा के उस अतिआत्मविश्वास को छिन्न-भिन्न कर दिया है जो उसने उनमें व्यक्त किया था ।

प्रश्न अब और भी उठने लगे हैं । क्या भारत के लोकतंत्र का सारथी इसी तरह के अवरोधक पथों पर आगे भी रथचालन करता रहेगा या फिर उसमें कुछ सुधार भी करेगा? समान नागरिक कानून, एक देश एक विधान और जम्मू-कश्मीर-लद्दाख की योजनाओं का अब क्या होगा? क्या सड़क पर इसी तरह नमाज पढ़ी जाती रहेगी? क्या किसी ग़ैरमुस्लिम के घर में घुसकर नमाज पढ़ने वालों की नयी परम्परा अपनी जड़ें मज़बूत करने वाली है? क्या संतों पर हिंसक आक्रमण होते रहेंगे? क्या देश में कहीं भी मजारें और मस्ज़िदें बनती रहेंगी? क्या भारत में हिन्दू-विरोधी गतिविधियों को राजनीतिक प्रश्रय मिलता रहेगा? क्या भारत से हिन्दुओं को समाप्र कर देने वाली मुस्लिम नेताओं की धमकियाँ सच साबित होने वाली हैं? सच यह है कि भारत का सशंकित आम हिन्दू अब और भी भयभीत हो गया है ।     -  अचिंत्य की कलम से

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.