शुक्रवार, 12 नवंबर 2021

मृत्यु का छायांकन

         वसंत ऋतु का आगमन हो चुका था, बुग्याल पर बिछी सफ़ेद हिमानी चादर के पिघलते ही धरती के भीतर से घास झाँकने लगी थी, धीरे-धीरे हिमालय के बुग्याल हरी-हरी लम्बी घास से भर गये और जहाँ-तहाँ रंग-बिरंगे फूल भी मुस्करा उठे । पश्मीना बकरियों, नौरों, भेंडों, घोड़ों, खच्चरों, याकों और गायों के लिये यह सबसे अधिक आनंददायक ऋतु हुआ करती है । पशुओं के नन्हें शावक लम्बे-लम्बे बुग्यालों में इधर से उधर उछल-कूद मचाते रहते । उनमें से अधिकांश ने अपने जीवन में पहली बार बुग्याल की यात्रा की थी और इतनी सारी घास को एक ही स्थान पर उगे हुये देखा था ।

दोपहर हो चुकी थी, पशुपालक ने तीन पत्थर रखकर एक चूल्हा बनाया और सूखी झाड़ी की टहनियों से आग जलाकर थनेर की छाल और याक के मक्खन वाली नमकीन चाय बनाने लगा । नौर (भारल, ब्ल्यू-शीप) चरते हुये दूर निकल गये, कुछ इधर कुछ उधर ...जिन्हें टकटकी लगाये देख रहे थे कुछ लोग ...दूर एक पहाड़ी चोटी की आड़ से । 

घास का वह अंतिम कौर था जिसे उसने हिमालय के बुग्याल में चरने का प्रयास किया था । झुण्ड के अन्य नौर भी आसपास ही चर रहे थे । अचानक वह उछला और वहीं गिर कर तड़पने लगा । पहाड़ी चोटी की आड़ में छिपे लोग ख़ुशी से झूम उठे । तड़पने वाला पशु था ..झुण्ड का एक युवा नौर और झूमने वाले सभ्य थे ...कुछ मनुष्य । शिकारियों का दल तड़पते हुये नौर के पास आया, और उसके चारो ओर घेरा बनाकर नाचने लगा । इस बीच गोली से घायल हुये नौर ने अपने जीवन की अंतिम साँस ली, घास के अंतिम बार चरे गये ग्रास का कुछ हिस्सा उसके मुँह में था और कुछ बाहर झूल रहा था ...जैसे कि खाने की चेष्टा कर रहा हो । असभ्य नौर की नश्वर काया ने सभ्य मनुष्य की उदरपूर्ति के लिये स्वयं को तैयार कर लिया था ।

नाचने के बाद फ़ोटो-सेशन शुरू हुआ मृत्यु में आनंद का छायांकन । शिकारियों ने मृत नौर को विभिन्न मुद्राओं में पकड़कर खूब सारे फ़ोटो खीचे । अपने मित्रों को शिकारगाथा सुनाने के लिये यह सब उन्हें आवश्यक लगता है ।

स्यूडोइस वंश के एकमात्र सदस्य नौर का शिकार करना हिंसक हिम तेंदुये की पहली पसंद है । किंतु आज तो अहिंसा पर चर्चा करने वाले सभ्य मनुष्य ने नौर का शिकार किया था । मृत्यु में आनंद के छायांकन के बाद शिकारियों ने मृत नौर की देह को एक बड़े से थैले में भरा और पीठ पर लादकर चल दिये ।

हिमालय में इस बार फिर ...पहले हिम-स्खलन हुआ और फिर भू-स्खलन । हिम के भीतर की अग्नि को तुम अभी भी नहीं देख पा रहे हो न!

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