क्या अब भारत के लोकतंत्र को मुट्ठी भर दबंग ब्लैकमेलर्स की इच्छा के अनुसार चलना होगा ? क्या अब भारतीय राजनीति में अधोपतन की कुछ और नयी परम्परायें स्थापित हो रही हैं ?
आज, गुरु नानक
देव जी की जयंती के प्रकाशपर्व पर भारत ने स्पष्ट अनुभव किया कि राकेश टिकैत ने
प्रधानमंत्री को आत्मसमर्पण के लिये विवश कर दिया है । प्रधानमंत्री ने “कुछ” अराजक और स्वार्थी लोगों के दबाव में आकर कृषि
कानूनों की भ्रूण हत्या की अनुमति दे दी है ।
दुर्भाग्य
से गुजरात ने भारत को एक और गांधी दे दिया है जो “कुछ” लोगों की संतुष्टि के लिये
“बहुसंख्य” लोगों की बलि देने के लिये तैयार है ?
“कुछ”
लोगों ने, जिन्हें दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का प्रधानमंत्री समझा सकने में असफल
रहा, “बहुत” लोगों के जीवन और भाग्य को बंधक बना लिया है । आज,
अनायास ही छप्पन इंच का एक गर्वीला सीना टिकैत के सीने के आगे बौना
हो गया और एक प्रधानमंत्री ने कुछ अराजक तत्वों के सामने संधि का प्रस्ताव रख दिया
है ।
आज एक बार
फिर जनता का भरोसा टूटा है, …उस जनता का, जो पिछले सत्तर सालों से ठगी जाती रही
है । बात केवल कृषि कानूनों की नहीं बल्कि उस राजकीय संकल्प की भी है जिसमें दृढ़ता
नहीं, बल्कि अवसरवादिता का प्रदूषण मिला हुआ है ।
सुबह-सुबह
भारत के प्रधानमंत्री ने कृषि कानून वापस लेने की घोषणा करके अपने विरोधियों और
समर्थकों को एक साथ चौंका दिया । मोदी की दृष्टि में अपना भरोसा रखने वाले मतदाता
तो जैसे हकबका ही गये, उन्हें लगा जैसे हिंद महासागर में अनायास ही कोई चक्रवात आ गया है ।
विरोध
करना ही जिनका एकमात्र धर्म है वे अब कुछ और बहाने खोजने में लग गये हैं । बक्कल
नोचने की धमकी देने वाले जिस ब्लैकमेलर को जेल में होना चाहिये था वह अब कृषि
कानूनों को वापस लिये जाने का पक्का “कागज” माँग
रहा है । छप्पन इंच ने बावन इंच के समक्ष हथियार डाल दिये जिन्हें तुरंत ही विपक्ष
ने हाथों-हाथ उठा लिया और प्रधानमंत्री पर वार पर वार करने प्रारम्भ कर दिये जिससे
आल्हा में कुछ पंक्तियाँ और जुड़ गयीं ...”जइसेइ मोदी हार मानि कै, सौंपि दयी अपनी तलवार । मोदी के दुस्मन झपटि उठाय लयी, करन लगे वार पै वार”॥
मैंने
मोतीहारी वाले मिसिर जी की प्रतिक्रिया जानने के लिये उनसे सम्पर्क करने का कई बार
प्रयास किया किंतु उन्होंने संध्या छह बजे तक मुझे बिल्कुल भी भाव नहीं दिया ।
अंततः जब सम्पर्क हुआ तो मेरे बोलने से पहले ही मिसिर जी ने अपनी तीखी प्रतिक्रिया
की भूमिका प्रारम्भ कर दी – “आज हम अकदम रिसियाइल
बानी, एही से फुनवा ना उठवलीं”।
मैंने
धीरे से कहा – “मैं आपकी मनःस्थिति समझ सकता हूँ”।
मिसिर
जी मुखर हुये – “अँधेरा कायम रहे हमेसा ...ई है नू सिद्ध कऽइलीं हँ मोदी जी । जवन
हाथ मँ हम राच्छस के बध करे खातिर तलवार दिहले रहलीं ऊ राच्छस के सामने आत्मसमर्पन
कइ देले बा । अतना बड़का देस के परधानमंत्री एगो ठरकी टिकैत से हार गइल बा । आज
किरसी कानून वापिस हो गऽइल, काल्ही “NRC” आ “CAA” वापस हो
जाई । हम त देस आ सनातन धरम के रच्छा खातिर मोदिया के भोट दिहले रहलीं ...हमार
भोटवा के भैलू सतियानास हो गइल बा”।
मैंने
उनके क्रोध को कम करने की कामना से कहा – “हाँ ...देश निराश हुआ है, यह
सिद्धांतों की पराजय के साथ एक अहंकारपूर्ण हठ की जीत है । आज गुरुनानक देव जी के प्रकाशपर्व
के दिन देश का छोटा किसान अपने चारो ओर अंधकार का अनुभव कर रहा है । जनता यह समझ
पाने में असमर्थ रही है कि आख़िर मोदी जी ने ऐसा क्यों किया ? लाल किले पर हमला करके खालिस्तानी झण्डा लहराने वालों की आज एक बार फिर
जीत हो गयी है । ट्रैक्टर से बैरीकेट्स तोड़ने वालों की निरंकुशता को बल मिला है,
आंदोलन के नाम पर आम लोगों के जीवन को बाधित करने वाले उत्साहित
हुये हैं और अराजक शक्तियाँ के मनोबल में बाढ़ आ गयी है”।
मिसिर
जी गम्भीर हुये – “यूँ भी, न्यायालय के निर्णय से कृषि कानून अभी दो वर्ष तक लागू ही नहीं होना था ।
राजकीय निर्णयों के क्रियान्वयन में जिस संकल्प और दृढ़ता की अपेक्षा की जाती है
उसका अभाव आज मोदी के समर्थकों के साथ-साथ विरोधियों ने भी अच्छी तरह देख लिया है
। शासन इस तरह नहीं किया जा सकता, शांति और कल्याणकारी
व्यवस्था के लिये राजकीय कठोरता आवश्यक है, अधिक लोगों के
कल्याण के लिये कुछ लोगों का दमन करना शासन की अपरिहार्य विवशता है । सत्ता हर
किसी को प्रसन्न नहीं कर सकती, सम्भव ही नहीं है । तालिबान
की तरह वामपंथी और सत्तालोलुप भी ऐसे जीव होते हैं जिन्हें लोककल्याण से कोई
प्रयोजन नहीं होता । आज मोदी ने जो किया है उसमें अवसरवादिता का प्रदूषण मिला हुआ
है । अस्तित्व में आने से पहले ही कृषि कानून की भ्रूणहत्या कर दी गयी जो हतोत्साहित
करने वाली है । मोदी ने अराजकतत्वों को, सत्य की हत्या पर उत्सव
मनाने का अवसर दिया है, टीवी पर जो लोग एक-दूसरे को मिठाइयाँ
खिला रहे हैं, मैं दावे से कह सकता हूँ कि उनमें से 99
प्रतिशत लोग किसान नहीं हैं । मोदी के निर्णय से इण्डिया तो ख़ुश हुआ किन्तु भारत को
बहुत बड़ी निराशा हुयी है”।
मोतीहारी
वाले मिसिर जी ही नहीं, आज तो पूरा देश निराश हुआ है ...इसलिये और भी क्योंकि मोदी से किसी को ऐसी
आशा नहीं थी । यूँ, मोदी के चेहरे पर पराजय की गहरी पीड़ा की घनी
काली छाया बहुत स्पष्ट दिखायी दे रही थी ।
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