शुक्रवार, 17 दिसंबर 2021

मोतीहारी वाले मिसिर जी की चार बकबक

 १-   

कविता लिखा कर

      

सो जा मोहन प्यारे!

जागा मत कर

सोये-सोये कविता लिखा कर ।

गीतकार है

तो प्रेम के गीत लिख

कोई कितने भी जड़ता रहे तड़ातड़ तमाचे

प्रतिक्रिया मत कर 

खिलखिलाकर हँसा कर 

कविता लिखा कर ।

 

उत्कर्ष के गीत गा

पीड़ा को भूल जा ।

साहित्यकार है न!

तभी तो तेरी सोच निगेटिव है

पॉज़िटिव बन

बकबक मत कर

डाटा सजाया कर 

प्रशंसा के लेख लिखा कर

ऐश किया कर, ज़िंदगी जिया कर

कविता लिखा कर ।

 

तू साहित्यकार है

तो सच क्यों बोलता है बे! 

कल्पना के पर लगाकर

आसमान में उड़ा कर 

तुझे राजनीति से क्या लेना देना!

मुझ से कुछ सीख

कभी सच मत बोल

तोल मोल कर नहीं 

झूठ को सच बनाकर बोल

भाँति भाँति के रूप धरा कर

आइने तोड़

तुमुल को शांति कहा कर

कविता लिखा कर ।

 

२-  

पहला हक

 

आज़ादी तो मिल गयी

बिना खड्ग बिना ढाल

हक नहीं मिला

वह भी दिला दे बाबा 

बिना खड्ग बिना ढाल ।

 

मालिक ने दे दिया उन्हें

पहला हक

जिन्होंने किया था ऐलान कि वे

नहीं रह सकते

साथ हमारे ।

ले लिया ओसारा

उन्होंने हमारा

मगर रहते हैं आज भी, साथ हमारे

भूनते हुये होरा छाती पर हमारी

दलते हुये मूँग छाती पर हमारी

नहीं गये वे कहीं भी 

और ले लिये सारे हक

हमारे, हमारे बाप दादों के । 

हमने पूछा

हमारा हक कहाँ है

उन्होंने खींच लीं तलवारें

ख़ामोश! तुझे पता नहीं

काफ़िरों का हक नहीं होता

हमने पूछा – “हम कहाँ रहें?”

उसने कहा जहन्नुम में

और फिर चला दी तलवार ।

मेरे ज़िस्म से फूट पड़ा

ख़ून का फव्वारा

ठीक तभी खिल उठा

उनके ग़ुलदस्ते में

एक और काला ग़ुलाब

गुलाब ने गीत गाया

सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा...।

 

३-

उसी नम्बर पर

 

सरकार की बात

रिश्वत न दें

रिश्वत की माँग की शिकायत

इस फोन नम्बर और ई मेल पर करें ।

 

बात मान ली हमने

कर दी शिकायत

दो साल हो गये

नहीं मिल पाया समयमान वेतन

बाबू कहता है, ले लो न

उसी नम्बर पर बात करके ।

 

४-

न्योछावर

 

मेरा ड्राइविंग लायसेंस

री-न्यू करवा दे कोई

तो जानूँ

बिना दिये न्योछावर।

4 टिप्‍पणियां:

टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.