भारत पर मोहम्मद बिन कासिम के आक्रमण के साथ ही इस्लामिक विस्तारवाद ने सन् 712 में भारत में प्रवेश किया। महाराजा दाहिर के वध और भारत के दुर्भाग्य के साथ युद्ध का अंत हुआ। पड़ोसी राजाओं ने सिंध के राजा को सहयोग नहीं किया, वहीं सिंध के बौद्धों ने स्थान-स्थान पर कासिम और उसकी सेना का स्वागत करके यह बता दिया कि अपने देश के साथ विश्वासघात करने में भी कोई बुराई नहीं। यद्यपि बाद में उनकी यह धारणा उनके लिए भी आत्मघाती ही सिद्ध हुयी। मोहम्मद बिन कासिम सिंध की महारानी के साथ-साथ राजकुमारियों और रनिवास की अन्य स्त्रियों को भी बंदी बनाकर अपने साथ दमिश्क ले गया। देवल के मंदिर को ढहा कर कासिम ने भारत में इस्लाम की नींव रख दी। बौद्धों ने ब्राह्मण राजा से अपना राजनीतिक बदला तो ले लिया, लेकिन भारत को उसकी बहुत बड़ी कीमत आज भी चुकानी पड़ रही है।
सन् 669
में जन्मे चच वंश के तीसरे और अंतिम राजा की आज जयंती है जिसे पाकिस्तानी सिंधी कई
वर्षों से मनाते आ रहे हैं। पाकिस्तान में आज भी कुछ ऐसे राष्ट्रवादी मुस्लिम हैं जो
भारत को अपना राष्ट्र मानते हैं और सनातनियों को अपना पूर्वज। वे राजा दाहिर पर गर्व
करते हैं, जबकि अरबों
से लड़ते हुये भारत के लिए बलिदान होने वाले सनातनी राजा को भारत ने भुला दिया। भारत
में अरबों के प्रवेश का विरोध करने वाले प्रथम राजा के प्रति अपनी कृतघ्नता के लिए
हम दोषी हैं।
आज जबकि
अरबी अपसंस्कृति भारत के अस्तित्व के लिए ही चुनौती बन गयी है, हमें अपने
राष्ट्रपुरुषों का स्मरण कर अरबी प्रतिकार के लिए तैयार होना होगा। कोई मनाये या न
मनाये, हम तो प्रतिवर्ष राजा दाहिर की जयंती मनाने के लिए संकल्पित
हैं।
चचवंशी महाराजा
दाहिर अमर रहें।
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