उत्सव मनाइए, मधुमेह की नई औषधि आ गई है। एक माह में तीन-चार बार शरीर में इंजेक्ट करना होगा, हर महीने पचास से साठ हजार रुपये तक का अतिरिक्त भार पड़ेगा । नाम है मोंजारो । कुछ साइड इफ़ेक्ट भी हो सकते हैं पर चिंता मत कीजिए, उसके लिए कुछ और भी औषधियाँ हैं । अर्थात् आप जो भी कमाएँगे वह सब फ़ार्मा उद्योग और डॉक्टर्स के खाते में ही स्वाहा होते रहने की स्थायी व्यवस्था कर दी गई है ।
टीवी पर मोंजारो
का गुणगान प्रारम्भ हो गया है, बड़े-बड़े चिकित्सा विशेषज्ञ अपने
विचार प्रकट कर रहे हैं । भला हो एक विशेषज्ञ का जिन्होंने बता दिया कि “कई बार प्रारम्भ
में पता नहीं चलता पर डेढ़-दो दशक बाद औषधि के साइड
इफ़ेक्ट्स शरीर में प्रकट हो पाते हैं । इसलिए मोंजारो के बारे में अभी कुछ कहा नहीं
जा सकता“।
विद्वानों के
अनुसार मोंजारो एक साथ कई सिस्टम पर काम करता है, मोटापे से लेकर हृदय, लीवर और पैंक्रियाज़ तक । इसीलिए इसकी
इतनी प्रशंसा की जा रही है । नई औषधि, नया टीका, जाँच की नई तकनीक, नये उपकरण, नये-नये रोग ... ये सब आधुनिक चिकित्सा
जगत के लिए प्रसन्नता के विषय हैं । इन विषयों पर बड़े-बड़े विद्वान तर्क और विमर्श प्रस्तुत
करते हुए देखे जा सकते हैं । कोई भी महान विद्वान इस बात पर चर्चा नहीं करता कि मोटापा, हृदयरोग और मधुमेह को रोकने के लिए क्या किया जाना चाहिए? यद्यपि वे मानते हैं कि ये सभी जीवनशैलीजन्य व्याधियाँ है । इसके
बाद ...वे बुद्ध की तरह मौन हो जाते हैं, आनंद को कोई उत्तर नहीं मिलता क्योंकि यह उसके विवेक का विषय है ।
मुझे लगता है
कि प्रीवेंटिव एण्ड सोशल मेडीसिन को पाठ्यक्रम से निकाल दिया जाना चाहिये। व्यवहार
में उसकी क्या उपयोगिता?
सनातन सिद्धांतों
यानी “द प्रिंसिपल्स व्हिच आर आल्वेज़ ट्रू एण्ड साइंटिफ़िक”, से अनुप्राणित जीवनशैली जिसे सेक्युलर विद्वान हिन्दूजीवनशैली मानते
हैं, मनुष्य को स्वस्थ्य रहने और रोगों से दूर रहने के उपायों से समृद्ध
है । पिज्जा, बर्गर, हॉट डॉग, कोल्ड ड्रिंक्स और न जाने क्या-क्या
खाने-पीने वाले लोग हिन्दूजीवनशैली का अनुकरण न करने के कारण हिन्दू नहीं माने जा सकते
। वामपंथी और आधुनिक उद्योगपति यही तो चाहते हैं, बहुसंख्य लोग हिन्दूजीवनशैली छोड़कर आधुनिक जीवनशैली अपनाएँगे तो
एक दिन भारत में कोई हिन्दू नहीं रहेगा और उद्योगपति चाँदी काटते रहेंगे । कल नयी व्याख्या
की जाएगी, “इंडिया, इटली और ब्रिटेन की जीवनशैली एक जैसी है तो वे सब एक ही धर्म के
अनुयायी माने जाने चाहिए, जब जीवनशैली हिन्दुत्व के अनुरूप
नहीं तो ये लोग हिन्दू भी नहीं, फिर अन्य लोगों के साथ उनका भेदभाव
क्यों! इसलिए इन तीनों देशों की शासनव्यवस्था भी एक जैसी ही होनी चाहिए।
सनातन धर्म
से अनुप्राणित हिन्दूजीवनशैली “सर्वे भवंतु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया:” के उद्देश्य को लेकर चलती है जो चिकित्सा और
फार्मा उद्योग के लिए घातक है । इसे समझना होगा कि इण्डियन मेडिकल असोसिएशन के पूर्व
अध्यक्ष प्रोफ़ेसर जे.ए. जयलाल जैसे सनातनद्वेषी विद्वान संस्कृत भाषा, वेद, आयुर्वेद और सनातन पर निरंतर आक्रमण
क्यों करते रहते हैं!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.