शनिवार, 6 जुलाई 2024

हम ख़ुशी-ख़ुशी विदेशियों को अपना देश सौंप दिया करते हैं

            काल ईसवी सन् ७१२, स्थान चच राजवंश का सिंधराज्य। चच राजवंश के कुल राजाओं की संख्या तीन।

आठवीं शताब्दी में भारतीयों ने अपना पश्चिमी सीमांत राज्य अरब के सत्रहवर्षीय आक्रामक मोहम्मद-बिन-कासिम को सौंप दिया था। आज उसी सिंध के लोग आक्रामक और यौनदुष्कर्मी कासिम को अपना आदर्श मानते हैं और सिंध के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले राजा दाहिर को मानते हैं अपना शत्रु। राजा दाहिर अपने शासनकाल में सिंध पर हुये दो अरबी आक्रमणों को विफल कर चुके थे पर सिंध नदी के किनारे अरोर के अंतिम युद्ध में अपने राज्य के बौद्धों के विश्वासघात के कारण वीरगति को प्राप्त हुये।

ईसा छठी शताब्दी में भारत की ईरान सीमा को स्पर्श करते सिंध के राजा साहसी राय निःसंतान थे। उनकी मृत्यु के बाद उनके मंत्री, जो कि कश्मीरी ब्राह्मण मंत्री थे, वहाँ के राजा बने और चच वंश की स्थापना की। चच के बाद उनके बेटे दाहिर के अल्पवयस्क होने के कारण चच के भाई चंदर ने सन् 637 से 644 तक सिंध पर राज्य किया और बौद्ध-धर्म ग्रहण कर अपने राज्य का राजधर्म भी बौद्ध घोषित कर दिया जिससे सिंध के ब्राह्मण उनसे अप्रसन्न हो गये। दाहिर ने राज्यारोहण के बाद सनातन को पुनः सिंध का राजधर्म घोषित किया जिससे वहाँ के बौद्ध कुपित हो गये।

भारत की नई पीढ़ी जिनका नाम भी नहीं जानती, भारत के लिए सपरिवार बलिदान हो जाने वाले उन्हीं राजा दाहिर का सोलह जून को १३१२वाँ बलिदान दिवस था। ईसवी सन् ७१२ में जब अरबी आक्राणकारी मोहम्मद-बिन-कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया तो राजा दाहिर से अप्रसन्न वहाँ के बौद्धों ने निरोनकोट और सिवस्तान में स्थान-स्थान पर कासिम के स्वागत की तैयारियाँ की थीं।

अरब में अपने ख़लीफ़ा के विरुद्ध विद्रोह करने वाले दो भाइयों माविया-बिन-हारिस-अलाफ़ी और मोहम्मद-बिन-हारिस-अलाफी, जो कि रिश्ते में पैगम्बर साहब के सम्बंधी थे, ने सिंध के मकरान शहर में राजा दाहिर से शरणप्राप्त की थी पर युद्ध के समय हम इस्लाम से गद्दारी नहीं कर सकतेकहकर सिंध छोड़ कर चले जाने वाले अल्लाफ़ी भाइयों ने कासिम से मिलकर उसे सहयोग न किया हो, ऐसा नहीं हो सकता (इस्लाम के प्रति मुसलमानों के समर्पण और काफ़िरों के विरुद्ध अलतकिया अभियान उनका दीर्घकालीन इतिहास रहा है जिसकी हमारे नेताओं और सामाजिक ठेकेदारों द्वारा सदा से उपेक्षा कर गंगा-जमुनी तहज़ीब की बयार बहायी जाती रही है)।

राजा दाहिर की सेना में ज्ञानबुद्धि और मोक्षवासव नामक दो बौद्ध भी थे जिन्होंने युद्ध में अपने राजा के साथ विश्वासघात किया और जब कासिम की सेना हार रही थी तभी पूर्वनियोजित षड्यंत्र के अनुसार राजा दाहिर पर अग्निबाणों की वर्षा कर दी जिसके कारण उनका हाथी नदी की ओर भागा और सेना में भगदड़ मच गयी। महाराज दाहिर हाथी के हौदे से नीचे गिर गये फिर घेर कर बंदी बनाने के बाद उनकी हत्या कर दी गयी। चच राजवंश के तीसरे और अंतिम शासक राजा दाहिर की हत्या में उन दो बौद्धों की भूमिका ने भारत के इतिहास को सदा के लिए बदल कर रख दिया। इस्लामी परम्परा के अनुसार ब्राह्मणराजा का सर तन से जुदाकरके अरब ले जाया गया।

धोखा करके युद्ध जीतने वाला मोहम्मद-बिन-कासिम जब भारत से वापस गया तो उसके साथ था महाराजा दाहिर का कटा हुआ सिर, जंजीरों में जकड़ी उनकी महारानी एवं दोनों राजकुमारियाँ सूर्यकुमारी एवं परमाल, सिंध की सैकड़ों युवा स्त्रियाँ, हजारों युद्ध बंदी, और अकूत सम्पत्ति। रास्ते भर में और अरब पहुँचने के बाद महारानी, दोनों राजकुमारियों और अन्य बंदी स्त्रियों के साथ क्या-क्या नहीं किया गया होगा इसकी कल्पना भी हम लोगों के लिए अकल्पनीय है। आज भारत में चचवंश के अंतिम शासक का नाम भी लेने के लिए कोई राजनेता तैयार नहीं है।

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