वह
कढ़ी-चावल बेचकर रोज रात को दस हजार रुपये की आय लेकर घर जाता है, यानी उसकी आय है तीन लाख रुपये प्रतिमाह । उसे एक धेला भी आयकर
नहीं देना पड़ता । आज वह करोड़ों की सम्पत्ति का धन्नासेठ है ।
एक लाख रुपये मासिक वेतन पाने
वाला अपनी आय के बारे में कुछ भी छिपा नहीं सकता इसलिए उसे झूठ न बोलने के दण्ड
स्वरूप भारी-भरकम जजियाकर देना पड़ता है । भारत में अपनी आय के बारे में जो भी सच
बोलेगा उसे जजियाकर देना होगा ।
छोटा-मोटा
व्यापार करने वाले लोगों की आय बहुत अच्छी हुआ करती है, उनकी आय का कहीं कोई डिजिटल अभिलेख भी नहीं होता जिसके कारण वे
आयकर से मुक्त हैं । दूसरी ओर सरकार को अपने मतदाताओं को साधने के लिए कई ऐसी
योजनायें चलानी पड़ती हैं जो एक तरह से दानस्वरूप हुआ करती हैं । यानी स्कूटी, लैपटॉप, छात्रवृत्ति, गेहूँ, चावल, गुड़, दाल आदि के निःशुल्क वितरण के अतिरिक्त छूट, और ऋणमुंचन योजनाएँ भी हैं जो पूरी तरह जनता से लिये जाने वाले
विभिन्न करों पर आधारित होती हैं । आयकर दाताओं में सर्वाधिक संख्या उन
अधिकारियों-कर्मचारियों की होती है जिनका वेतन उनके बैंक खाताओं में सीधे जमा किया
जाता है । वे चाहकर भी अपनी आय छिपा नहीं सकते जिसका उन्हें पाँच से तीस प्रतिशत
तक आयकर के रूप में भरपूर दण्ड दिया जाता है । आप इसे “सच बोलने” का अथवा “झूठ न
बोलने का जजियाकर कह सकते हैं ।
निश्चित ही, इसे न्यायोचित लोकतांत्रिक व्यवस्था नहीं कहा जा सकता जहाँ कुछ
लोग दिन-रात परिश्रम करके पैसे कमाते हैं, दूसरी ओर कुछ लोग अपनी अकर्मण्यता के पुरस्कार स्वरूप जीवन भर
दान प्राप्त करते रहते हैं ।
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