शनिवार, 6 जुलाई 2024

आस्था की भगदड़

            “यदि आस्था का कोई आधार नहीं होता तो आस्था में इतनी दृढ़ता कहाँ से आती है? आस्थावान लोगों को अपनी गम्भीर व्याधियों से पल भर में मुक्ति मिल जाती है। डॉक्टर जिस गर्भिणी को जच्चा-बच्चा में से किसी एक के जीवित बचने की आशंका बताते हैं वह केवल चमत्कारी बाबा की आस्था के बल पर दोनों की प्राणरक्षा में सफल होती है। थंडर-स्टॉर्म इन्जूरी ...यहाँ तक कि उसके कारण हुये गम्भीर बर्न में भी चिकित्सा से नहीं केवल आस्था और आशीर्वाद से लाभ होने का प्रमाण देने वाले भक्तगण भी सामने आ रहे हैं। इन लोगों के पास आस्था के प्रमाण होते हैं, लोग उससे लाभान्वित होते हैं इसीलिए आस्थावान भक्त अपनी आस्था के केंद्र के प्रति इतने समर्पित होते हैं कि उसके लिए हिंसा और आत्मपीड़ा को भी पुण्य मानते हैं। विवेकशील लोगों के लिए यह सब कुतर्क है। यहाँ तर्कों और कुतर्कों के बीच एक स्थायी विवाद है। हर किसी को अपनी बात तर्कयुक्त और दूसरों की बात कुतर्कपूर्ण लगती है। यह चलता रहेगा, भीड़ का यही धर्म है”– मोतीहारी वाले मिसिर जी।

अंधआस्था सभी सम्प्रदायों और वर्गों में देखने को मिलती है। आवश्यक नहीं कि आस्थावान व्यक्ति अशिक्षित, निर्धन और दुःखी-पीड़ित ही हो, वह उच्च-शिक्षित, राजनेता, धूर्त या अर्थसम्पन्न व्यक्ति भी हो सकता है।   

सिकंदरा राऊ के फुलरई मुगलगढ़ी गाँव में दो जुलाई को बाबा सूरज पाल सिंह जाटवउर्फ़ भोले बाबाउर्फ़ साकार हरिउर्फ़ विष्णु के साक्षात अवतार” उर्फ़ परमेश्वरका आशीर्वाद लेने के लिए एक लाख से अधिक लोग पहुँचे थे। सुबह से पहुँची स्त्रियों को भीषण गरमी और उमस में दोपहर बारह बजे तक बाबा के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ी। गरमी और उमस के कारण दूर-दूर से आयी महिलाओं का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा, उन्होंने बाबा के प्रशिक्षित सेवादारों से कहा कि उन्हें बाहर खुले स्थान में पहुँचाने में सहयोग करें। प्रशिक्षित सेवादारों ने स्त्रियों को कोई सहयोग नहीं किया क्योंकि यह काम तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को करना था।  

दोपहर को बाबा रामपाल सिंह जाटव उर्फ़ परमेश्वर ...का प्रवचन हुआ और अंत में जब बाबा प्रस्थान कर रहे थे तब उनके चरणों की रज प्राप्त करने के लिए भगदड़ मच गयी। सुदर्शनचक्रधारी और सूट-बूट-टाई वाले बाबा सूरजपाल सिंह जाटव को ईश्वर का अवतार मानने वाले भक्तों को बाबा की चरण-रज चाहिए थी, उस अमूल्य निधि को लूटने के लिए भक्ति में विह्वल आस्थावानों ने संयम और अनुशासन खो दिया, भीड़ ने अपने भगदड़ वाले स्वभाव को प्रकट किया। भगदड़ में फँसी महिलायें सहयोग के लिए चीखने लगीं तो सेवादारों ने सहयोग के स्थान पर उन्हें परमेश्वर “साकार हरिनाम जपने का मंत्र देते हुये आश्वासन दिया कि “कुछ नहीं होगा, बाबा सब ठीक कर देंगे”। कई आस्थावान अपने परमेश्वर की लीला में घायल हो गये और एक सौ इकत्तीस आस्थावानों की मृत्यु हो गयी। रोते-चीखते आस्थावान भक्तों की रक्षा बाबा और उनके सेवादारों ने नहीं की, क्योंकि यह काम तो मुख्यमंत्री को अपनी पुलिस और डॉक्टर्स से करवाना था।

हठी और अंधविश्वासी लोग किसी की बात नहीं मानते और जब वे लूट लिये जाते हैं या उनके प्राणों पर कोई संकट आ जाता है तो वे इसके लिए कभी पुलिस, कभी कलेक्टर, कभी डॉक्टर तो कभी सत्तापक्ष को उत्तरदायी ठहरा देते हैं। भीड़ का अधर्म-प्रेरित ऐसा चरित्र ही उसके कष्टों का कारण है। आस्थावानों को बिना चिकित्सा के चमत्कारी स्वास्थ्य चाहिए, कोर्ट में विजय चाहिए, बेटी के लिए अच्छा वर चाहिए, बेटे के लिए नौकरी चाहिए... सब कुछ चाहिए, बिना पर्याप्त कर्म किए हुए, केवल कृपा के बल पर।  

भगदड़ प्रभावित आस्थावान अभी भी बाबा को ईश्वर मान रहे हैं, उनके चमत्कारों से अभिभूत होकर बाबा का गुणगान कर रहे हैं, उनके अवतारत्व को सिद्ध करने के हठ पर अड़े हुए हैं, उनकी रक्षा के लिए हर तरह का झूठ बोलने, तथ्यों को छिपाने, सरकार से छल करने और पाप करने के लिए तैयार हैं। ऐसा ही आचरण बाबा आसाराम बापू, बाबा सतपाल और बाबा रामरहीम के आस्थावान भक्तों का हम पहले भी देख ही चुके हैं।

घटना के तत्काल बाद बाबा और उसके मैनेजर देवप्रकाश मधुकर किसी अज्ञात स्थान पर छिप गये। इस बीच बाबा के अधिवक्ता ए.पी. सिंह प्रकट हुए और उन्होंने बताया कि बाबा अस्वस्थ हैं और स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं। आस्थावानों को कैंसर जैसी कई गम्भीर व्याधियों से काली-चाय और हैण्ड-पम्प का जल पिलाकर स्वस्थ्य कर देने वाला बाबा अस्वस्थ्य हो गया। भक्त इसे बाबा की लीला मानते हैं। भगदड़ में एक-सौ-तेईस लोगों की मृत्यु को भक्तगण परमेश्वर बाबा सूरज पाल सिंह जाटव की इच्छा मानते हैं। छह जुलाई को बाबा प्रकट हुये और भक्तों को शासन-प्रशासन पर भरोसा करने का उपदेश दिया। शासन-प्रशासन को धता बताने वाला बाबा अब अपनी कृपा और आशीर्वाद पर नहीं बल्कि शासन-प्रशासन पर भरोसा करने का प्रवचन देकर अपना पल्ला झाड़ रहा है।   

पता चला है कि जिला एटा के गाँव बहादुर नगर, पटियाली निवासी बाबा सूरजपाल जाटव राजस्थान के दौसा में अपने भक्त हर्षवर्द्धन मीणा के घर विश्राम के लिए रुका करता था, जो 2020 में जूनियर इंजीनियर भर्ती परीक्षा पेपर-लीक का मुख्य आरोपी है। ये चमत्कारी बाबा इतने प्रभावशाली होते हैं कि राजनेता उनके पापों के विरुद्ध यथासम्भव कोई कार्यवाही नहीं होने देते। बाबाओं के रक्षकों में उनकी चमत्कार विह्वल प्रजा ही नहीं होती, प्रभावशाली राजनेता भी होते हैं जो किसी अभेद्य दुर्ग की तरह बाबा की रक्षा करते हैं। यहाँ निश्चितरूप से सत्तापक्ष और स्थानीय प्रशासन पूर्री तरह दोषी होता है। जब ये बाबा अतिक्रमण करके अवैधरूप से अपने भव्य आश्रम बना रहे होते हैं, चमत्कार दिखा रहे होते हैं, मूर्खतापूर्ण कृत्यों से जनता के साथ छल कर रहे होते हैं तब सरकार और उनके अधिकारी कोई कार्यवाही क्यों नहीं करते? वे किसी गम्भीर घटना होने तक प्रतीक्षा क्यों करते हैं? यह कहने से काम नहीं चलेगा कि वे किसी की आस्था पर आपत्ति नहीं कर सकते। क्यों नहीं कर सकते? यदि संविधान आपको ऐसा करने की अनुमति नहीं देता तो क्या संविधान में संशोधन नहीं किया जाना चहिए? यदि शासन-प्रशासन मूर्ख्तापूर्ण आस्था को संरक्षण देते रहेंगे तो ऐसी घटनायें होती रहेंगी।

जो अतिबुद्धिजीवी, प्रगतिशील, वामपंथी और विपक्षी नेता ब्राह्मणों को समाज का शोषक, अंधविश्वास फैलाने वाले, पाखण्डी और हर तरह के अपराध के लिए उत्तरदायी मानते नहीं थकते उन्हें बाबा आसाराम बापू, बाबा राम रहीम, बाबा रामपाल और बाबा सूरजपाल सिंह जाटव जैसे चमत्कारी बाबाओं से ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। 

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