एक भारतीय नेता उवाच - “ऑपरेशन ‘सिंदूर’ एक धर्म विशेष का प्रतीक है, ऑपरेशन का कोई धर्मनिरपेक्ष नाम होना चाहिये था”।
बिहार की एक
महिला विधायक उवाच - “पहलगाम नरसंहार हुआ ही नहीं, यह तो केवल जुमलेबाज
का दुषप्रचार है”।
ऐसे लोगों को
क्यों नहीं कारागार में डाला जाना चाहिये ? हम जानते
हैं कि कोई भी मीलॉर्ड इन भारतविरोधी कृत्यों पर स्वसंज्ञान नही लेगा, यह तो भारत
के नागरिकों को ही करना होगा । हमारे न्यायालय सफेद हाथी हैं जिनकी आम नागरिक के
लिये उपयोगिता को समझना और स्वीकार करना कठिन है । स्वातंत्र्योत्तर भारत की
न्यायव्यवस्था सर्वाधिक भ्रष्ट और अन्यायपूर्ण व्यवस्था ही सिद्ध होती रही है ।
पहलगाम
नरसंहार पर आरोपों=प्रत्यारोपों की शृंखला का कोई अंत नहीं है । धरती पर असुरों और
दैत्यों की परम्पराओं के पोषक सदा से रहते आये हैं । पाकिस्तान के अपराधों और
कुकृत्यों को मोदी का झूठा प्रचार मानने वालों की कमी न भारत में है, न पाकिस्तान
में और न विश्व के अन्य देशों में ।
छल, प्रपंच और
द्वेष जैसे दुर्गुणों के आधार पर निर्मित पाकिस्तान के नेता अपने कुकृत्यों को सदा
से नकारते रहे हैं । वहाँ के लोग भारत को अपना शत्रु मानते रहे हैं, इसीलिये वे
लोग भारत पर अत्याचार और आक्रमण करना अपना धर्म मानते हैं । संचार माध्यमों पर चल
रहे वीडियोज़ में अधिकांश भारतीय मुसलमान भी पहलगाम नरसंहार को झूठ और ऑपरेशन
सिंदूर को मोदी का मुसलमानों पर अत्याचार बताने में लेश भी लज्जित नहीं होते ।
भारत के ऐसे अभारतीय और पाकिस्तानप्रेमी नागरिकों को भारत में रहने का कोई भी
नैतिक, सामाजिक या राष्ट्रीय अधिकार क्यों होना चाहिये? हम भी तो इसके
विरुद्ध कभी कोई आंदोलन नहीं करते ।
पाकिस्तान
की आरजू काज़मी चर्चा में रहती हैं, उन्हें खुलकर पाकिस्तान के विरोध में और भारत के पक्ष में बोलते
हुये सुना जाता है पर हमने उन्हें भारत के विरोध में और मोदी का अपमान करते हुये
भी सुना है । सीमा हैदर एक बार पुनः चर्चा में हैं, कई लोग
उन्हें पाकिस्तान की जासूस मान रहे हैं, उनके पास
इसके तर्क भी हैं पर वे भारत में चैन से रह रही हैं । त्रिया चरित्र को समझना इतना
सरल है क्या ! पर हमें यह भी नहीं भूलना चाहिये कि भारत में अंबर जैदी, सुबुही खान, याना मीर और
नाज़िया इलाही खान जैसी विवेकशील नारियों की भी कमी नहीं है ।
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