“तमसोमा ज्योतिर्गमय एक शुभेक्षा और संकल्प ही नहीं प्रत्युत
भौतिक रचना प्रक्रिया का एक सिद्धांत भी है । तमस से ज्योति, यिन से याँग, प्रकृति से
पुरुष, फ़्रॉम नथिंग टु एवरीथिंग... जगत की यही गति है । यहाँ कोई बिंदु
अंतिम नहीं होता, जिसे आप अंतिम मान बैठे हैं वह संक्रांति बिंदु है । डॉक्टर
फ़्रिट्ज़ॉफ़ काप्रा आपके अंतिम बिंदु को टर्निंग प्वाइंट मानते हैं । यी ज़िंग में भी यही वर्णित है । यह शून्य का वह काल है
जो एकोऽस्मि बहुस्यामः की यद्रच्छा के साथ ब्रह्माण्डीय सृजन को अभिव्यक्त करता है”। – मोतीहारी
वाले मिसिर जी
हिंदुओं का
हिंदुओं के प्रति निरंतर विश्वासघात, एकता और
दूरदर्शिता का अभाव, भारतीय मूल्यों से विद्रोह, विदेशी
मूल्यों का अनुकरण और विदेशी दासता के लिये उद्दाम लालसा आदि ऐसे तथ्य हैं जिनसे
हिंदू समाज के अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग गये हैं, क्या इस
रुग्ण समाज की प्रॉग्नोसिस शून्य है ?
पहलगाम
आक्रमण के पश्चात् ऐसी-ऐसी सच्चाइयाँ सामने आ रही हैं जिनसे लोग आशंकित हो रहे हैं
। लाखों भारतीय लड़कियों की पाकिस्तान में ससुराल होने के बाद भी भारत में ही निवास
और संतानोत्पादन से परिवर्तित हो रहे जनसांख्यिकीय असंतुलन के प्रति सरकारें कैसे
और क्यों अनभिज्ञ बनी रहीं, राजनेताओं और अतिबुद्धिजीवियों द्वारा पहलगाम की घटना को मनगढंत
सिद्ध करने के प्रयास, कश्मीरी जनता का पाकिस्तान प्रेम और भारत से शत्रुता का भाव, विपक्षी
नेताओं द्वारा घटना की वास्तविकता को छिपाने के प्रयास कि धर्म पूछकर हत्या नहीं
की गयी ...आदि ऐसी सच्चाइयाँ हैं जो भारत पर इस्लामिक शासन के बढ़ते वर्चस्व को
प्रमाणित करती हैं । ...तो क्या भारत एक असहिष्णु इस्लामिक देश में परिवर्तित होता
जा रहा है ? क्या धरती हिंदूविहीन हो जायेगी ? क्या भारत में
एक ऐसा तंत्र विकसित होकर सशक्त हो चुका है जो मानवीय मूल्यों और नैतिकता को निगलता
जा रहा है ?
छह हजार
वर्ष प्राचीन चीनी दर्शन शास्त्र यी ज़िंग (आई चिंग) में भी सभी प्रकार के परिवर्तनों
को सतत और अवश्यंभावी मानते हुये उनकी भवितव्यता को स्वीकार किया गया है – “After a time of decay comes the turning point. The powerful
light has been banished returns. There is movement, but it is not brought about
by force. The movement is natural, arising spontaneously. For this reason the
transformation of the old becomes easy. The old is discarded and the new is
introduced, both measures accord with the time; therefore no harm results.”
ऐसा कुछ भी नहीं
जो सदा के लिये समाप्त हो पाता हो । जो हो पाता है वह परिवर्तन भर है । क्वांटम फ़िज़िक्स
से भी सबने यही सिद्ध किया है । तमस भी उतना ही आवश्यक है जितना कि प्रकाश । मात्र
तीन प्रतिशत दृष्टव्य ब्रह्माण्ड की सृष्टि उस अंधकार के गर्भ से ही हो पाती है जो
कुल ब्रह्माण्ड का ९७ प्रतिशत है । यह जो बृहदाकार धर्मच्युत समाज है उसी में से प्रस्फुटित
होगें सनातन के सिद्धांत को जानने और मानने वाले । तमस ही रूपांतरित होगा प्रकाश में
। आज जो दृष्टव्य है, प्रकाशित है, शक्तिशाली है... वह विलुप्त हो जायेगा तमस के गर्भ में । विश्वासघातियों, स्वार्थियों, मिथ्याचारियों
और मानवतापीड़कों को एक दिन तमस में समाहित होना होगा ...परंतु संक्रांति के उस बिंदु
पर हर किसी को अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी ही होगी जिससे हम और आप भी उस टर्निंग प्वाइंट
के साक्षी और सहभागी बन सकें ।
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