*कौन हारा कौन जीता*
जब दो
योद्धा अपनी-अपनी जीत के प्रमाण प्रस्तुत करने लगें और कोई निष्पक्ष निर्णायक
अनुपस्थित हो तो भ्रम स्वाभाविक है । प्रायः होता यह है कि जिसके
प्रमाण अधिक सजे-सँवरे लगें वह सत्य के नहीं, झूठ के अधिक
समीप होता है । पाकिस्तानी समाचार चैनल – “365 News Live” में अपनी जीत और भारत की पराजय के समाचार परोसने वाले लोगों के
ठहाके, उनका आत्मविश्वास, विरोधाभासी
वक्तव्य और भारत की पराजय के कूटप्रमाण सारी पोल खोल कर रख देते हैं । ऐसी
निर्लज्जता अन्यत्र दुर्लभ है ।
झूठ को सत्य
की तरह प्रस्तुत करने में तकनीक की भूमिका ने कई विवादों और भ्रमों को जन्म दिया
है । यह आधुनिक समाज का सर्वाधिक कलंकित पक्ष है । “अश्वत्थामा हतो नरो कुंजरो वा”
जैसे भ्रम उत्पन्न करना युद्ध के समय रणनीतिकौशल के अंश हैं, पर अपने ही
लोगों के समक्ष झूठ पर अड़े रहना किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं होना चाहिये । पाकिस्तान
ने यही किया है, वह सदा से ऐसा ही करता रहा है । वह कभी अपनी पराजय को स्वीकार
नहीं करता प्रत्युत अपने शत्रुपक्ष की जीत को उसकी पराजय बताकर और उसके कूटरचित
प्रमाण प्रस्तुत कर पूरी दुनिया के साथ-साथ अपनी जनता के साथ भी छल करता रहा है ।
विडम्बना यह है कि ईरान, तुर्की और अजरबैजान जैसे मुस्लिम देशों के साथ-साथ चीन भी इस छल के
लिये पाकिस्तान का ही समर्थन करता रहा है । चीन की एक समृद्ध दार्शनिक परम्परा रही
है, उसका छलपूर्ण व्यवहार चिंताजनक है ।
हर बात में
प्रतिकूल टिप्पणियाँ करने वाला अतिदुर्बल विपक्ष पूछता है कि अचानक युद्ध रुका
क्यों ? रुका तो ट्रम्प के कहने से क्यों रुका ? पाक अधिकृत
कश्मीर वापस लिया क्यों नहीं ? बलूचिस्तान को स्वतंत्र कराया क्यों नहीं ? पाकिस्तान
को खण्ड-खण्ड किया क्यों नहीं ?
*युद्ध रुका क्यों?*
भारतीय सेना
और प्रधानमंत्री के वक्तव्यों के बाद स्थिति अब पूरी तरह स्पष्ट हो चुकी है । यह
युद्ध पाकिस्तान के विरुद्ध तो था ही नहीं, यह तो
पाकिस्तानी सेना समर्थित आतंकवादियों के विरुद्ध था । हम ही इसे पाकिस्तान के विरुद्ध
समझ बैठे थे । पाकिस्तान में भारत समर्थक बलूच हैं, पख़्तून हैं, सिंधी हैं, हम अपने समर्थकों
से युद्ध कैसे कर सकते हैं!
पहलगाम नरसंहार
के बाद हुये इस प्रत्याक्रमण में शत्रु को भरपूर क्षति पहुँचाने के बाद और
पाकिस्तान की सेना की ओर से युद्धविराम की पहल के बाद युद्ध करते रहने का कोई अर्थ
नहीं था, विशेषकर तब और भी जब शत्रु महामूर्ख, आत्महंता और
जनहित के कल्याण से निष्प्रयोजित भी हो ।
युद्ध के
समय पाकिस्तान में दो बार भूकम्प के झटकों का अनुभव किया गया । यह पाकिस्तान का
भूमिगत परमाणुपरीक्षण था । उसे पता है कि भारत पर परमाणु बम डालने के बाद उसका भी
अस्तित्व बच नहीं सकेगा किंतु इससे उसे कोई प्रयोजन नहीं, उसका तो
सारा प्रयोजन गजवा-ए-हिंद के लिये शहीद होकर अल्लाह की गोद में बैठकर अंगूर की
शराब पीने और बहत्तर हूरों की सेवायें प्राप्त करने तक ही सीमित है ।
विशेषज्ञों
के अनुसार पाकिस्तान के परमाणु बम त्रिस्तरीय हैं जिनके एक
स्तर का नियंत्रण अमेरिका के पास है । समाचार है कि अमेरिका की चिंता इस बात को
लेकर है कि आतंकनियंत्रित पाकिस्तान का न्यूक्लियर नियंत्रण कहीं अन्य आतंकी
समूहों ने तो नहीं ले लिया । सर्वविदित है कि पाकिस्तान की राजनीति आतंक और अल्लाह
के नाम पर ही चलती है, वहाँ की कठपुतली सत्ता आतंकवादियों को कभी भी न्यूक्लियर
नियंत्रण को दे सकती है जिससे एशिया के अन्य देश भी संकट में पड़ सकते हैं । भारत
ने पाकिस्तान के परमाणु बम की धमकी को देखते हुये उसके सैन्य केंद्र को लक्ष्य
बनाकर आक्रमण किया जिससे वहाँ के तकनीकी संयत्रों को भारी क्षति हुयी है और वहाँ
रेडिएशन होने की आशंका व्यक्त की जाने लगी है । अभी तो पाकिस्तान इस स्थिति में
नहीं रह गया कि वह निकट भविष्य में कहीं परमाणु बम डाल सके ।
भारत ने विश्वबंधुत्व
के उत्तरदायित्व की महती भूमिकाओं का निर्वहन किया है । हमें केवल अपने ही नहीं, दूसरों के कल्याण
के बारे में भी सोचना होता है । पाकिस्तान एक ऐसा झोलाछाप डॉक्टर है जो किसी औषधि के
साइड-इफ़ेक्ट्स की चिंता किये बिना रोगियों को औषधि देने तक ही सीमित है, फिर उसका परिणाम
कुछ भी क्यों न हो, उससे पाकिस्तान को कोई प्रयोजन नहीं । भारत के पास चिकित्सा की वैश्विक
उपाधियाँ हैं, इसलिये उसे तो हर बात की चिंता करनी ही होगी न!
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
टिप्पणियाँ हैं तो विमर्श है ...विमर्श है तो परिमार्जन का मार्ग प्रशस्त है .........परिमार्जन है तो उत्कृष्टता है .....और इसी में तो लेखन की सार्थकता है.